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फूड डिलीवरी : 25 हजार की फौज, खाना पहुंचाने की होड़

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Published on: 28 Aug 2023 5:37 PM GMT
फूड डिलीवरी : 25 हजार की फौज, खाना पहुंचाने की होड़
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फूड डिलीवरी : 25 हजार की फौज, खाना पहुंचाने की होड़

लखनऊ: छोटे शहरों व कस्बों की गलियों और गांवों के खेत-खलिहानों से निकलकर हजारों युवा राजधानी लखनऊ की सड़कों पर सुबह-शाम-देर रात तक दिखाई देते हैं। बाइक पर एक थैला लादकर भागते हुए इन नौजवानों का एक ही मकसद है कि किसी तरह से शाम तक ज्यादा से ज्यादा ऑर्डर पूरे कर लें, जिससे हफ्ते के अंत में कंपनी की ओर से मिलने वाला इंसेन्टिव पाया जा सके। ये फौज है ई कामर्स कंपनियों के डिलीवरी ब्वायज की। क्या है इनकी जिंदगी और किस तरह ये सिस्टम काम करता है। इस पर पेश है अपना भारत की स्पेशल रिपोर्ट।

राजधानी लखनऊ के गोमतीनगर के एक रेस्टोरेंट के बाहर बाइक पर खाना गर्म रखने वाले बैग के साथ कंपनी के लोगो वाली टीशर्ट पहने डिलीवरी ब्वॉय दिनेश कुमार की नजरें अपने मोबाइल पर टिकी हैं। इन निगाहों में आस है ऑर्डर की। अचानक मोबाइल पर मैसेज आता है और दिनेश कुमार की आंखों में चमक आ जाती है। पूछने पर बताता है कि ऑर्डर आया है और तेज कदमों से बढ़ जाता है सामने रेस्टोरेंट की ओर ऑर्डर पैक कराने के लिए। रायबरेली का मूल निवासी दिनेश आर्ट ग्रेजुएट हैं और डेढ़ साल से ऑनलाइन फूड सप्लाई कंपनी 'स्विगी' के साथ काम कर रहे हैं। दिनेश रोजाना दोपहर 12 बजे काम शुरू करते हैं और रात 11 बजे तक फूड सप्लाई करते रहते हैं। इस दौरान उन्हें आधे-आधे घंटे के दो ब्रेक मिलते हैं, जिसमें वह खुद भी कुछ खाते-पीते हैं। दिनेश बताते हैं कि वह रोजाना 600 से 800 रुपए कमा लेते हैं।

दिनेश जैसे करीब 25 हजार से ज्यादा युवा आज सिर्फ लखनऊ में ही स्विगी, जोमैटो, फूड पांडा, उबर ईट्स जैसी कंपनियों से जुड़े हुए हैं। घर-घर प्रचलित ये कंपनियां उन तमाम युवाओं को फुलटाइम ही नहीं बल्कि एक्स्ट्रा इनकम के मौके दे रही हैं। यहां कमाई की कोई लिमिट नहीं है और कोई किसी का बॉस भी नहीं होता। एक रिसर्च बताती है कि 2018-19 की अंतिम छमाही में भारत में 13 लाख लोगों ने 'गिग इकॉनमी' यानी अल्पकालीन अनुबंध या फ्रीलांस कार्य ज्वाइन किया। पहली छमाही की तुलना में ये 30 फीसदी ज्यादा है। 2019-20 में 14 लाख और लोग इस तरह के कामों को ज्वाइन करेंगे।

मिलता है वीकली पेमेंट

लखनऊ। डिलीवरी ब्वॉय दिनेश के साथ ही स्विगी के लिए काम करने वाले संदीप बताते हंै कि वह एक साल से ये काम कर रहे हैं। इंटर पास कर चुके संदीप कानपुर विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन भी कर रहे हैं। संदीप रोज दोपहर 12 बजे स्विगी पर ऑनलाइन लॉगिन होते हैं और रात 11 बजे तक काम करते हैं। वे बताते हैं कि कंपनी अपने डिलीवरी ब्वायज को वीकली पेमेंट करती है। यह पेमेंट दूरी के आधार पर होते हैं। एक किलोमीटर की दूरी पर प्रति ऑर्डर 15 रुपए से शुरू होकर यह दस किलोमीटर की दूरी का 50 रुपए तक होता है। संदीप बताते हैं कि अगर हफ्ते में 2500 रुपए कीमत का ऑर्डर सप्लाई कर देते हैं तो कंपनी उन्हें 600 रुपए का इन्सेंटिव देती है।

महीने में 20 हजार तक की कमाई

कंपनी ने इन्सेंटिव के लिए कुछ स्लैब तय कर रखे हैं। हफ्ते में 2500 रुपए के ऑर्डर सप्लाई पर 600 रुपए, 3500 रुपए पर 900 रुपए, 4500 रुपए पर 1350 रुपए, 5500 रुपए पर 1800 रुपए तथा 6500 रुपए के ऑर्डर 2200 रुपए का इन्सेन्टिव मिलता है। सभी डिलेवरी ब्वायज की कोशिश होती है कि वह ज्यादा से ज्यादा इन्सेंटिव कमा सके। कंपनी से मिलने वाले वेतन या कमीशन के अलावा इन्सेंटिव को मिलाकर महीने में 15 से 20 हजार रुपए तक की कमाई हो जाती है।

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आसानी से मिलता है काम

स्वीगी, जोमैटो, फूड पांडा और ऊबर ईट्स प्लेटफार्मों पर ऑनलाइन ऑर्डर किए गए खाने को ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए फुलटाइम और पार्टटाइम काम दिया जाता है। जो भी इन प्लेटफार्मों पर काम करना चाहता है, उसके लिए किसी विशेष योग्यता की जरूरत नहीं होती। हां, बाइक, स्कूटी या स्कूटर और ड्राइविंग लाइसेंस होना जरूरी होता है। साथ ही आवेदक के पास एंड्राइड मोबाइल होना भी जरूरी है क्योंकि सब काम एप आधारित होता है। अधिकतर फूड सप्लाई कंपनियां डिलीवरी ब्वायज का वेतन सीधे बैंक में भेजती है। इसलिए आवेदक का बैंक खाता और आधार कार्ड होना आवश्यक है। डिलीवरी ब्वॉय की कमाई उनके द्वारा किए गए काम पर निर्भर करती है। उन्हें प्रत्येक डिलीवरी पर 15-20 से 30 रुपए तक मिलते हैं। जाहिर है कि अगर कोई रोज 25 से 30 डिलीवरी करता है तो वह हर महीने एक अच्छी रकम कमा लेता है।

कैसे करें आवेदन

आवेदक इन कंपनियों के कार्यालय जाकर या ऑनलाइन आवेदन कर सकता है। जरूरी दस्तावेज जमा करने के बाद इंटरव्यू होता है। पास होने पर कंपनी ट्रेनिंग देती है। आवेदक को एक आईडी दी जाती है जिस आईडी से ही डिलीवरी ब्वाय रोजाना काम शुरू करने पर लॉगिन करते हैं और काम खत्म करने पर लॉग आउट। इस आईडी से ही विभिन्न रेस्टोरेंट से डिलीवरी ब्वॉय को आर्डर किया गया खाना दिया जाता है। रेस्टोरेंट के पास फूड सप्लाई कंपनी से मैसेज भेजा जाता है, जिसमें डिलीवरी ब्वॉय की आईडी बतायी जाती है। कई बार ग्राहक ऑनलाइन भुगतान कर देता है तो कई बार खाना पहुंचने पर भुगतान का विकल्प चुनता है।

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दिक्कतें भी कम नहीं

इस काम में कुछ व्यवहारिक दिक्कतें भी हैं। कई बार ग्राहक का पता ढूंढने में दिक्कत आती है तो ऑर्डर पहुंचाने में देरी हो जाती है। देर होने पर ग्राहक आर्डर कैंसिल कर देता है। डिलीवरी ब्वायज को सप्ताह में केवल छह ऑर्डर ही कैंसिल की मंजूरी कंपनी देती है, इससे ज्यादा ऑर्डर कैंसिल होने पर डिलीवरी ब्वाय को स्वयं ही भुगतान करना होता है। एक दिन से ज्यादा अवकाश लेने पर साप्ताहिक इन्सेंटिव नहीं मिलता है। जल्द से जल्द ऑर्डर पहुंचाने में कई बार एक्सीडेंट भी हो जाते हैं या ट्रैफिक नियमों की अनदेखी हो जाती है जिसका नतीजा चालान के रूप में भुगतना पड़ता है। हालांकि फूड सप्लाई कंपनियां डिलीवरी ब्वॉय का बीमा कराती हैं, लेकिन यह केवल बड़ी दुर्घटना के लिए होता है।

बदलती रहती हैं कंपनी की नीतियां

फूड डिलीवरी कंपनियां अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए अपनी नीतियां और स्कीमें भी बदलती रहती हैं। डिलीवरी ब्वायज के इन्सेंटिव और प्रति ऑर्डर पेआउट में कटौती भी होती रहती है। इसके विरोध में बीते दिनों स्विगी के डिलीवरी ब्वायज की हड़ताल हो चुकी है। फिलहाल जोमैटो में भी डिलीवरी ब्वायज हड़ताल पर हैं।

राम सिंह का एक दिन

बछरावां निवासी रामसिंह के मां-बाप का देहांत हो चुका है, गांव में कुछ जमीन थी जिस पर दबंगों ने कब्जा कर लिया। पहले ट्रक ड्राइवर की नौकरी करते थे लेकिन एक दुर्घटना के बाद ये काम छोड़ दिया। करीब चार महीने पहले आ गए लखनऊ और यहां एक फूड सप्लाई कंपनी में काम करने लगे। रामसिंह रोज सुबह पौने छह बजे उठ जाते हैं। नित्यकर्म से निवृत होने के बाद पत्नी द्वारा बनायी हुई चाय को बिस्कुट के साथ पीते हैं। इस बीच पत्नी खाना बना कर रख देती है और अपने काम पर निकल जाती है। पत्नी आस-पड़ोस के घरों में बर्तन-कपड़े धोने, खाना बनाने और साफ-सफाई का काम करती है। चाय पी कर राम सिंह सात बजे घर से निकल जाता है पास की कालोनी की ओर, जहां वह गाडिय़ां साफ करने का काम करता है। इससे महीने में तीन-चार हजार रुपए की आमदनी हो जाती है। छह गाडिय़ों की सफाई करने के बाद राम सिंह वापस अपने कमरे पर आता है। घड़ी में साढ़े दस बज रहे होते हैं। नहा-धो कर पूजा-पाठ करने के बाद राम सिंह कंपनी की वर्दी पहनता है और भोजन करके अपने स्मार्टफोन पर कंपनी का एप खोल कर लॉग-इन करता है और उसकी डयूटी शुरू हो जाती है।

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दोपहर 12 बजे से रात 11 बजे तक अपनी सेंकेड हैंड मोटरसाइकिल से लोगों के घर उनके आर्डर पहुंचाने निकल पड़ते है। शाम को पांच बजे वह एक ठेले पर रुकते हैं और चाय व बिस्किट लेते हैं। करीब आधे घंटे के ब्रेक के बाद वह फिर डिलिवरी पर निकल जाते हैं। रात 11 बजे तक आर्डर पहुंचाने का सिलसिला पूरा करने के बाद वह अपने फोन पर फिर कंपनी का एप खोलते हैं और लॉग आउट करके निकल पड़ते हैं अपने कमरे की ओर। कमरे पर पहुंच कर पत्नी के साथ खाना खाते हैं और फिर बिस्तर पर, अगली सुबह सुबह 5:45 पर उठने के लिए।

यह पूछने पर कि क्या उनका मन नहीं करता है कि वह भी उस लजीज खाने को खाएं, रामसिंह कहते हैं कि दिन भर रेस्टोरेंट पर तरह तरह का खाना देखकर मेरा तो मन नहीं करता है। मुझे तो घर का सादा खाना ही अच्छा लगता है। लेकिन कभी-कभी जब आर्डर रिजेक्ट हो जाता है तो वह खाना घर ले आता हूं, अपनी पत्नी को खिलाने के लिए।

आसमान की ओर निहारते हुए राम सिंह बताते हंै कि अभी वह 28 साल के हैं और यहीं समय है पैसा कमाने का। वह और उनकी पत्नी मिल कर महीने में करीब 30 हजार रुपए कमा लेते है। कुछ पैसा जोड़ा है और जोड़ लूं तो कुछ धंधा-पानी कर लूंगा या फिर ई-रिक्शा खरीद कर चलाऊंगा, अगले दो-तीन साल में ही जीवन को ढर्रे पर ले आऊंगा।

दास्तान डिलीवरी ब्वायज की

गोंडा के 22 वर्षीय रामअवतार मौर्या हाईस्कूल पास हैं। गोंडा के रहने वाले रामअवतार लखनऊ में दो महीने से फूड सप्लाई का काम कर रहे हैं। रोजाना 11 घंटे काम करते हैं और 100 से 150 किमी बाइक चला कर 25 ऑर्डर पहुंचा देते हैं। महीने में करीब 20 हजार रुपएकी आमदनी हो जाती है।

चिनहट निवासी 20 वर्षीय श्याम इंटर पास हैं और इसी साल अप्रैल माह से यह काम कर रहे हैं। श्याम हर सप्ताह 4000 रुपए कमा लेते हैं। श्याम बताते हंै कि जल्दी से जल्दी ऑर्डर पहुंचाने और ज्यादा इन्सेंटिव कमाने के लिए कई बार एक्सीडेन्ट हो जाते है।

जोमैटो से जुड़े संजय सिंह गोंडा के रहने वाले हैं। ग्रेजुएशन भी कर रहे हैं और साथ-साथ डिलीवरी का भी काम करते हैं। संजय बताते हैं कि पहले कंपनी हर ऑर्डर पर 30 रुपए और 12 ऑर्डर पर 375 रुपए का इन्सेंन्टिव देती थी, लेकिन अब इसे कम करके प्रति ऑर्डर 20 रुपए तथा 12 ऑर्डर पर 120 रुपए कर दिया है। इसके विरोध में कई दिनों से सभी डिलीवरी ब्वॉय हड़ताल पर हैं।

स्विगी में बीते 3-4 महीने से काम कर रहे 40 वर्षीय संजय निगम ने एमए किया हुआ है। संजय हर महीने 15 से 20 हजार रुपएतक कमा लेते हैं। वह कहते हैं कि जब तक शरीर साथ दे रहा है तब तक यह काम करेंगे। आगे जो होगा,देखा जाएगा।

बाराबंकी के हरिपाल हाईस्कूल पास हैं। गांव में कोई काम नहीं था सो लखनऊ चले आए। एक मोटरसाइकिल फाइनेंस करवा ली और डिलीवरी का काम करने लगे। हरिपाल महीने में 15 हजार रुपए कमा लेते हैं।

औरैया के अभिलाष इंटर पास हैं। हाल ही में स्विगी के लिए डिलीवरी का काम शुरू किया है। कंपनी से उन्हेंहर ऑर्डर 20 रुपए और हफ्ते में 2500 रुपए का ऑर्डर सप्लाई करने पर 600 रुपए का इन्सेन्टिव देने को कहा है। उन्होंने कहा कि हफ्ता पूरा होने पर ही पता चलेगा कि उन्हें कितना पैसा मिलता है।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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