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गंगा एक्शन प्लान से नमामि गंगा तक 35 साल का सफर
लखनऊ: गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए पिछले 35 साल से विभिन्न प्रोजेक्ट्स के तहत काम किया जा रहा है। हजारों करोड़ रुपए इस काम पर खर्च किए जा चुके हैं। ‘गंगा एक्शन प्लान’ से ये सफर शुरू हुआ था। अब ‘नमामि गंगे’ प्रोजेक्ट के तहत सरकार का लक्ष्य है कि मार्च २०२० तक गंगा को प्रदूषण मुक्त कर दिया जाए।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 1984 में गंगा बेसिन में सर्वे के बाद अपनी रिपोर्ट में गंगा के प्रदूषण पर गंभीर चिंता जताई थी। इसके आधार पर पहला ‘गंगा एक्शन प्लान’ 1985 में अस्तित्व में आया। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा गंगा एक्शन प्लान या गैप के तहत वाराणसी में गंगा की सफाई का काम शुरू किया गया था। इसके तहत 15 साल तक काम हुआ, 901 करोड़ रुपए खर्च हुए लेकिन आशातीत सफलता नहीं मिली। मार्च 2009 में ये प्रोजेक्ट बंद कर दिया गया। इसी बीच अप्रैल 1993 में तीन और नदियों - यमुना, गोमती और दामोदर के साथ गंगा एक्शन प्लान-दो शुरू किया गया जो 1995 में प्रभावी रूप ले सका।
दिसंबर 1996 में गंगा एक्शन प्लान-दो का राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना में विलय कर दिया गया।
फरवरी २००९ में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन अथॉरिटी का गठन किया गया।
१९९५ से २०१४ तक गंगा की सफाई की योजनाओं पर ४१६८ करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए।
अब तक छोटी-बड़ी ९२७ योजनाओं पर काम करते हुए २६१८ मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) साफ पानी की क्षमता हासिल की गई है।
गंगा की सफाई के लिये किये गए प्रयास
विभिन्न परियोजनाओं और नियम कायदों के जरिए गंगा की सफाई की कोशिशें की गई हैं। जिनमें प्रमुख हैं :
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाना
नदी में कचरा फेंकने पर रोक
नदियों के किनारे पर कंस्ट्रक्शन मैटीरियल फेंकने पर रोक
तालाबों का विकास
जीरो डिस्चार्ज
नमामि गंगे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने गंगा को अविरल बहने और निर्मल करने की महत्वाकांक्षी योजना ‘नमामि गंगे’ मई २०१५ में शुरू की। सरकार ने गंगा पर अतिरिक्त संवेदनशीलता दर्शाते हुए एक अलग मंत्रालय का गठन भी कर दिया। ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम गंगा नदी को बचाने का एक एकीकृत प्रयास है और इसके अन्तर्गत व्यापक तरीके से गंगा की सफाई करने को प्रमुखता दी गई है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत नदी की सतही गन्दगी की सफाई, सीवेज उपचार के लिये बुनियादी ढांचे, नदी तट विकास, जैव विविधता, वनीकरण और जनजागरूकता जैसी प्रमुख गतिविधियां शामिल हैं। गंगा को स्वच्छ करने के लिये तीन दशक में कई योजनाएं आईं। योजनाओं में करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं।
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इसके तहत गंगा नदी की सफाई के लिए दिशानिर्देश बनाए गए थे जिसके तहत नगरों से निकलने वाले सीवेज का ट्रीटमेंट, औद्योगिक प्रदूषण का उपचार, नदी के सतह की सफाई, ग्रामीण स्वच्छता, रिवरफ्रंट विकास, घाटों और श्मशान घाट का निर्माण, पेड़ लगाना और जैव विविधता संरक्षण इत्यादि कार्य होने हैं। अब तक इस कार्यक्रम के तहत 24,672 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से कुल 254 परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई है। इसमें से 30 नवंबर 2018 तक 19,772 करोड़ रुपये की लागत से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की 131 परियोजनाओं (105 गंगा पर और 26 सहायक नदियों पर) को मंज़ूरी दी गई थी। इसके अलावा 4,930 करोड़ रुपये की लागत से 123 परियोजनाओं को रिवरफ्रंट बनाने, घाट बनाने और श्मशान घाट का निर्माण करने, नदी के सतह की सफाई, पेड़ लगाने, ग्रामीण सफाई इत्यादि के लिए आवंटित किया गया है। इस योजना के तहत मार्च २०२० तक गंगा को पूर्णतया प्रदूषण मुक्त करने का लक्ष्य है।
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गंगा का एक परिचय
गंगा का उद्गम स्थल हिमालय पर्वत की दक्षिण श्रेणियां हैं जहां से अलकनन्दा व भागीरथी निकलती हैं। अलकनन्दा की सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी है। भागीरथी गोमुख स्थान से 25 किमी लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। भागीरथी व अलकनन्दा देव प्रयाग में संगम करती है यहां से वह गंगा के रूप में पहचानी जाती है। भारत के विशाल मैदानी इलाके से होकर बहती हुई गंगा बंगाल की खाड़ी में बहुत सी शाखाओं में विभाजित होकर मिलती है। इनमें से एक शाखा का नाम हुगली नदी भी है जो कोलकाता के पास बहती है, दूसरी शाखा पद्मा नदी बांग्लादेश में प्रवेश करती है। इस नदी की पूरी लंबाई लगभग 2507 किलोमीटर है।
गंगा अपने पूरे प्रवाह में नेपाल, भारत और बांग्लादेश से हो कर जाती है। इसके रास्ते में पडऩे वाले मुख्य शहर हैं - हरिद्वार, मुरादाबाद, रामपुर, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना व राजशाही (बांग्लादेश)। गंगा की मुख्य सहायक नदियां हैं - वामांगी, महाकाली, करनाली, कोसी, गंडक, घाघरा, दक्षिणांगी, यमुना, सोन और महानंदा।