Ghosi By Election: बहनजी का वोटर तय करेगा घोसी की किस्मत, पिछले चुनाव से कम मतदान, वोटिंग का गणित क्या कर रहा इशारा

Ghosi By Election 2023: बसपा मुखिया मायावती की ओर से उपचुनाव में प्रत्याशी न उतारे जाने से दलित मतदाताओं के रुख पर ही सबकी निगाहें लगी हुई हैं।

Anshuman Tiwari
Published on: 6 Sep 2023 5:18 AM GMT
Ghosi By Election: बहनजी का वोटर तय करेगा घोसी की किस्मत, पिछले चुनाव से कम मतदान, वोटिंग का गणित क्या कर रहा इशारा
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मायावती (फोटो: सोशल मीडिया)

Ghosi By Election 2023: घोसी के सियासी रण में मंगलवार को मतदान समाप्त होने के बाद अब सबकी निगाहें चुनाव के नतीजे पर टिक गई हैं। मंगलवार को मतदान के दौरान सपा-भाजपा खेमों की ओर से एक-दूसरे पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगाए गए। हालांकि प्रशासन की ओर से शांतिपूर्ण मतदान का दावा किया गया है। दोनों खेमों की मतदान प्रतिशत बढ़ाने की तमाम कोशिशें के बावजूद घोसी विधानसभा क्षेत्र में सिर्फ 50.30 प्रतिशत ही मतदान हुआ। 2022 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार इस विधानसभा क्षेत्र में 6.57 प्रतिशत कम मतदान हुआ है।

सपा और भाजपा का वोट बैंक माने जाने वाले समुदायों की ओर से जमकर मतदान किए जाने के बाद अब दलित मतदाताओं का रुख ही घोसी में निर्णायक माना जा रहा है। बसपा मुखिया मायावती की ओर से उपचुनाव में प्रत्याशी न उतारे जाने से दलित मतदाताओं के रुख पर ही सबकी निगाहें लगी हुई हैं। सियासी जानकारों का भी मानना है कि मतदान में सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह और भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान के बीच कांटे का मुकाबला दिखा है। ऐसे में बहनजी का कर वोटर ही घोसी का अगला विधायक तय करेगा।

2022 के चुनाव से कम हुआ मतदान

घोसी विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में मंगलवार को कड़े सुरक्षा बंदोबस्त के बीच 50.30 प्रतिशत मतदान हुआ है। एक-दो स्थानों पर हल्की नोंकझोंक को छोड़कर पूरे क्षेत्र में शांतिपूर्ण मतदान हुआ है। इस मतदान के साथ ही भाजपा और सपा समेत 10 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है। अब आठ सितंबर को मतगणना के बाद चुनाव नतीजे की घोषणा की जाएगी।

इस बार के मतदान में एक उल्लेखनीय बात यह रही की 2022 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार 6.57 फ़ीसदी कम मतदान हुआ है। हालांकि सपा और भाजपा दोनों खेमों की ओर से ज्यादा से ज्यादा मतदान करने की कोशिश की गई मगर करीब 2.16 लाख वोटर मतदान करने के लिए घरों से बाहर नहीं निकले।

दोनों पार्टियों के वोट बैंक ने जमकर किया मतदान

मतदान के दौरान एक उल्लेखनीय बात यह भी नजर आई कि सपा और भाजपा के वोट बैंक से जुड़े मतदाताओं ने मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। भाजपा के समर्थित माने जाने वाले राजभर, निषाद, कुर्मी, चौहान और नोनिया जाति के मतदाताओं ने जमकर मतदान किया है।

वहीं दूसरी ओर मुस्लिम और यादव समाज के मतदाताओं को सपा का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है और इन दोनों समुदायों के मतदाताओं ने भी मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह के सजातीय मतदाताओं ने भी पूरे जोश के साथ मतदान किया।

सपा की ओर से मतदाताओं को भयभीत करने का आरोप जरूर लगाया गया है मगर मतदान के दौरान मुस्लिम, यादव और ठाकुर बहुल इलाकों के मतदान केदो पर भारी भीड़ दिखाई पड़ी। दोनों खेमों से जुड़े वोट बैंक के मतदाताओं के बढ़-चढ़कर मतदान करने से घोसी के सियासी रण में सपा और भाजपा के बीच कांटे के मुकाबले की उम्मीद जताई जा रही है।

जातीय समीकरण से उलझा गणित

घोसी के चुनावी अखाड़े में सपा और भाजपा की ताकत को समझने के लिए यहां के जातीय समीकरण पर भी गौर करना जरूरी है। इस इलाके में सबसे ज्यादा 95 हजार मुस्लिम मतदाता हैं। उसके बाद दलित मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा 90 हजार है। घोसी में राजभर मतदाताओं की भूमिका भी काफी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस बिरादरी से जुड़े हुए करीब 50 हजार मतदाता हैं।

इस क्षेत्र में 50 हजार नोनिया,30 हजार बनिया, 19 हजार निषाद और 15-15 हजार क्षत्रिय और कोइरी मतदाता हैं। भूमिहार मतदाताओं की संख्या करीब 14 हजार और ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या करीब सात हजार है। इनमें से सभी बिरादरी के मतदाता मतदान के दौरान दोनों खेमों में बंटे हुए दिखे। इसी कारण माना जा रहा है कि ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है।

बहनजी का वोटर तय करेगा अगला विधायक

घोसी के सियासी रण में अब दलित मतदाताओं की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण माने जा रही है। हालांकि चुनाव से पहले बसपा ने भाजपा और सपा दोनों प्रत्याशियों से दूरी बना ली थी। बसपा ने दोनों में से किसी भी प्रत्याशी को समर्थन न देने का ऐलान किया था। पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को संदेश दिया था कि वे या तो घर बैठें और यदि बूथ तक जाएं तो फिर नोटा का बटन दबाएं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना था कि दलबदल कानून को मजाक बनाने के कारण हमने चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला किया है। बसपा मुखिया मायावती के इस सियासी दांव से दोनों खेमों की चिंताएं बढ़ा दी थी।

अब मायावती का कोर वोट बैंक माने जाने वाले दलित समुदाय की भूमिका ही इस चुनाव में निर्णायक मानी जा रही है। यह देखने वाली बात होगी कि कितने मतदाताओं ने नोटा का बदन दबाया है। सियासी जानकारों का मानना है कि घोसी में जिस तरह सपा और भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला दिखा है, उसे देखते हुए अब मायावती का वोटर ही घोसी का अगला विधायक तय करेगा।

अब हर किसी को नतीजे का बेसब्री से इंतजार

अब हर किसी को 8 तारीख का बेसब्री से इंतजार है जिस दिन घोसी का चुनावी नतीजा घोषित किया जाएगा। इस उपचुनाव को इंडिया और एनडीए गठबंधन के मुकाबले के रूप में भी देखा जा रहा है। इस उपचुनाव में कांग्रेस और माकपा ने सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह को समर्थन दिया था।

इस उपचुनाव के नतीजे से अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भी बड़ा सियासी संदेश निकलेगा। चुनाव के बाद दोनों खेमों की ओर से अपनी-अपनी जीत के दावे किए जा रहे हैं। इस कारण हर किसी को चुनावी नतीजे का बेसब्री से इंतजार है।

Anshuman Tiwari

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