TRENDING TAGS :
Pandit Harishankar Tiwari: अपराध और राजनीति के क्षेत्र में वर्चस्व का दूसरा नाम थे पंडित हरिशंकर तिवारी
Pandit Harishankar Tiwari News: कहा जाता है कि पंडित हरिशंकर तिवारी का नाम किसी पार्टी के साथ जुड़ते ही पूर्वांचल में उसकी किस्मत बदल जाती थी। गाजीपुर से लेकर वाराणसी तो बाद में माफियाओं का केंद्र बना, लेकिन पंडित हरिशंकर तिवारी ने गोरखपुर से ही इसकी शुरुआत की।
Pandit Harishankar Tiwari Latest Update: प्रदेश की कई सरकारों में मंत्री रहे पंडित हरिशंकर तिवारी के निधन के बाद राजनीति और अपराधीकरण के समिश्रण के एक बड़े युग का अंत हो गया। कहा जाता है कि पंडित हरिशंकर तिवारी का नाम किसी पार्टी के साथ जुड़ते ही पूर्वांचल में उसकी किस्मत बदल जाती थी। गाजीपुर से लेकर वाराणसी तो बाद में माफियाओं का केंद्र बना, लेकिन पंडित हरिशंकर तिवारी ने गोरखपुर से ही इसकी शुरुआत की।
सबसे पहले पंडित हरिशंकर तिवारी ने चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र से 1985 में निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते। इसके बाद उन्होंने 1989, 91 और 93 में कॉन्ग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की। पाँचवी बार वो ‘ऑल इंडिया इंदिरा कॉन्ग्रेस (तिवारी)’ के टिकट पर जीते। 2002 में उन्होंने इसी क्षेत्र से ‘अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कॉन्ग्रेस’ के टिकट पर लगातार छठी बार जीत का स्वाद चखा। मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव हों या फिर कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता हों या फिर राजनाथ सिंह, चाहे वो मायावती ही क्यों न हों, इन सभी की सरकारों में पंडित हरिशंकर तिवारी मंत्री रहे। 2007 में जब प्रदेश मे मायावती सरकार का गठन हुआ तो उनके भतीजे गणेश शंकर पांडेय उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सभापति को सभापति बनाया गया।
2017 में उन्होंने बेटे विनय शंकर तिवारी को बसपा का टिकट दिला कर इस सीट से विधायक बनवाया।
पूर्वाचंल क्षेत्र में बाहुबली के तौर पर तीन दशको तक अपना सिक्का जमाए रखने वाले पंडित हरिशंकर तिवारी चाहे प्रदेश सरकार में मंत्री रहे हों या न भी रहे हो, पूरे प्रदेश में उनके नाम से लोग कांपते थे । चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र के चुनाव का इतिहास खंगालने पर वयोवृद्ध बाहुबली पंडित हरिशंकर तिवारी का नाम बार-बार, उभरकर सामने आता है। पंडित हरिशंकर तिवारी इस सीट से लगातार सत्तर के दशक का वो दौर जब देश की राजनीति काफी तेजी से बदल रही थी। जेपी की क्रांति और कांग्रेस को मिल रहीं चुनौतियों का असर देश के हर राज्य में नज़र आ रहा था। इसी बदलते दौर में जय प्रकाश नारायण के आंदोलन में कई युवा नेता सामने आए। इस दौर में बढ़चढकर छात्रसंघ की राजनीति को नई दिशा दे दी थी और यूपी के छात्र नेता भी इसे अछूते नहीं थे। विश्वविद्यालयों में वर्चस्व की लड़ाई की शुरूआत हो चुकी थी। उस वक्त पंडित हरिशंकर तिवारी, गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्र नेता के रूप में एक बड़ा नाम बनकर उभरे थे।
छात्र जीवन में ही उनके दूसरे गुट से टकराव शुरू हो गया। बलवंत सिंह गुट के चलते ही पंडित हरिशंकर तिवारी ने ब्राह्मणों का गुट तैयार किया। दोनों गुटों का मकसद होता था सरकारी ठेके हथियाना। दरअसल सरकारी ठेके दबंगई के साथ-साथ पैसे कमाने का बड़ा जरिया होता था। रेलवे के ठेके, शराब के ठेके, भू माफिया जैसे कई काले कारोबार में पंडित हरिशंकर तिवारी का दबदबा बढ़ने लगा था।
धीरे धीरे अस्सी के दौर में एक गुट जयप्रकाश शाही का भी तैयार हो चुका था।वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो चुकी थी। हरिशंकर तिवारी गुट में एक बड़ा मोहरा था श्रीप्रकाश शुक्ला, जिसने क्षेत्र के राजपूत नेता माने जाने वाले वीरेन्द्र प्रताप शाही की लखनऊ में सरेआम हत्या कर दी थी। हत्या भले श्रीप्रकाश ने की लेकिन माफिया की दुनिया में पंडित हरिशंकर तिवारी का कद बढ़ गया क्योंकि सब जानते थे कि श्रीप्रकाश उनका खास गुर्गा था।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 1980 के दशक में गोरखपुर के 'हाता वाले बाबा' के नाम से पहचाने जाने वाले पंडित हरिशंकर तिवारी से शुरू हुआ राजनीति के अपराधीकरण का यह सिलसिला बाद के सालों में मुख़्तार अंसारी, बृजेश सिंह, विजय मिश्रा, सोनू सिंह, विनीत सिंह और फिर धनंजय सिंह जैसे कई हिस्ट्रीशीटर बाहुबली नेताओं से गुज़रता हुआ आज भी पूर्वांचल में फल-फूल रहा है।