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हैप्पीनेस क्लासेस से गोरखपुरियों का कनेक्शन

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Published on: 28 Feb 2020 1:49 PM IST
हैप्पीनेस क्लासेस से गोरखपुरियों का कनेक्शन
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पत्नी मिलेनिया ट्रंप 25 फरवरी को दिल्ली के मोतीबाग फेज टू के नानकपुरा में सर्वोदय सह शिक्षा स्कूल में हैप्पीनेस क्लास का जायजा लेने पहुचीं तो वहां के बच्चों की एक्टिविटी देख वह हैरान रह गईं। अचानक दुनिया भर में चर्चा में आ गईं इन क्लासेस की सफलता में गोरखपुर का भी कनेक्शन है। ये कनेक्शन सवाल भी खड़े करता है कि दिल्ली के स्कूलों की तस्वीर पूर्वांचल के लोग बदल सकते हैं तो यूपी के स्कूलों की बदहाली क्यों नहीं दूर हो सकती है? यहां के स्कूलों में भी उतने बच्चे आ सकते हैं, जितने पंजीकृत हैं।

दरअसल, दुनिया भर में सुर्खियां बंटोर रही दिल्ली के स्कूलों की हैप्पीनेस क्लासेज के पीछे गोरखपुर के होनहारों का भी योगदान है। गोरखपुर के झरना टोला निवासी श्रवण शुक्ल ने हैप्पीनेस क्लास का पाठ्यक्रम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वह पिपराइच के चिलबिलवा के पूर्व माध्यमिक विद्यालय में बतौर शिक्षक तैनात थे। 2016 में प्रतिनियुक्ति पर गए श्रवण इस समय 'सेल फॉर ह्यूमन वैल्यू एंड ट्रांसफार्मेटिव लर्निंग' (सीएचवीटएल), एससीईआरटी दिल्ली के सदस्य हैं। श्रवण शुक्ल बताते हैं कि मिलेनिया ट्रंप ने करीब डेढ़ घंटे स्कूली बच्चों के बीच गुजारा। उन्होंने नजदीक से देखा कि दिल्ली सरकार के हैप्पीनेस पाठ्यक्रम में ऐसा क्या है कि जिससे बच्चों का तनाव और अवसाद कम होता है।

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दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया की पहल पर दिल्ली के सरकारी स्कूलों में लागू हैप्पीनेस पाठ्यक्रम के तहत नर्सरी से आठवीं तक के बच्चों का रोज पहला पीरियड होता है। इस 40 मिनट के हैप्पीनेस क्लास में बच्चा वह करता है, जो उसकी मर्जी हो। श्रवण बताते हैं कि हैप्पीनेस क्लास का मुख्य उद्देश्य बच्चों को पढ़ाई के लिए सहज करना है। बच्चा सहज होगा तभी उसका पढ़ाई में मन लगेगा। तभी वह विषय को समझ सकेगा। बच्चों को ज्ञानवर्धक, मानव से मानव और मानव-प्रकृति के बीच के सम्बन्धों और निर्वाह किये जाने वाले मूल्यों पर आधारित कहानियां दिलचस्प अंदाज में सुनाई जाती हैं। इसके बाद इन पर चर्चा होती है। विषय से जुड़ी एक्टिविटी कराई जाती हैं। इसमें बच्चे को परीक्षा नहीं देनी होती है बल्कि बच्चे स्व मूल्यांकन करते हैं। सप्ताह के आखिरी दिन विद्यार्थियों को अपने भावों को व्यक्त करने का अवसर दिया जाता है। वे अपने जीवन में आ रहे सकारात्मक बदलावों को भी साझा करते हैं। श्रवण शुक्ल के मुताबिक इस पाठ्यक्रम के लागू होने के बाद बच्चे पढ़ाई में पहले से ज्यादा ध्यान लगा रहे हैं। अपने माता-पिता और अध्यापकों की पहले से ज्यादा इज्जत कर रहे हैं। साथ ही तनावमुक्त होकर पढ़ाई पर ध्यान दे रहे हैं।

अभिभूत हुईं मिलेनिया

मिलेनिया ने सर्वोदय सह शिक्षा स्कूल में डेढ़ घंटे से अधिक समय गुजारा। इस स्कूल के प्रिसिंपल मनोज पांडेय गोरखपुर के हैं। डेढ़ घंटे तक वह साए की तरह मिलेनिया ट्रंप के साथ नजर आए। मनोज बताते हैं कि मिलेनिया बच्चों के जवाब सुनकर काफी खुश थीं। उन्होंने बच्चों के हैप्पीनेस क्लास के साथ ही योग जैसी एक्टिविटी का जायजा लिया। मिलेनिया ट्रंप देखना चाहती थीं कि हैप्पीनेस पाठ्यक्रम में ऐसा क्या है जिससे दिल्ली के स्कूलों की तस्वीर बदल गई। बच्चों की प्रस्तुति से वह अभिभूत हो गईं। बेटे को मिलेनिया के साथ टीवी पर देखकर स्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत पिता राधेश्याम पांडेय के साथ पूरा परिवार काफी खुश है।

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मां विद्यावती पांडेय, पिता राधेश्याम पांडेय, बहन नीतू मणि और छोटे भाई की पत्नी खुशबू मिश्रा इस बात से खुश हैं, पड़ोसी बेटे की उपलब्धि देख उन्हें बधाई दे रहे हैं। पिता राधेश्याम पांडेय कहते हैं कि बेटे की कोई भी उपलब्धि पिता को खुशियों से भर देता है। हैप्पीनेस क्लास आज पूरे देश की जरूरत है। मनोज के छोटे भाई आनंद पांडेय खुद जानेमाने रंगकर्मी हैं। उनका कहना है कि पहल सरकार को करनी है। पूर्वांचल में मेधा की कोई कमी नहीं है। यहीं का पढ़ा बेटा हैप्पीनेस पाठ्यक्रम की अहम कड़ी है। यहां के शिक्षक हैप्पीनेस क्लॉस को सफल बना रहे हैं, तो यह उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में क्यों नहीं लागू हो सकता है। धर्म और जाति की सियासत से नेताओं की जिस दिन दूरी होगी, प्राइमरी स्कूलों में हैप्पीनेस लौट आएगी।

दलाईलामा ने किया था कोर्स का शुभारंभ

दो जुलाई 2018 को बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने इस पाठ्यक्रम को लांच किया था। वल्र्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2017 के अनुसार 155 देशों में भारत का 122 वां स्थान है। 2018 में यह स्थान गिरकर 133 वां और 2019 में 140 वें तक खिसक गया। हैप्पीनेस पाठ्यक्रम अस्तित्वमूलक मानव केन्द्रित चिंतन (मध्यस्थ दर्शन) पर आधारित है। इस दर्शन के प्रणेता ए.नागराज के अनुसार जब कोई व्यक्ति स्वयं में और बाहरी संसार के साथ समन्वय स्थापित कर लेता है तो वह संघर्षविहीन होता है। सामंजस्य से जीता है। हैप्पीनेस पाठ्यक्रम के तहत ऐसी ही स्थिति को सतत तथा स्थाई बनाए रखने की कोशिश की जाती है।



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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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