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Gorakhpur News: अमरमणि बाहुबली वीरेन्द्र शाही से हारे थे पहला चुनाव, वापसी की तो सरकार बनाने-बिगाड़ने की रखने लगे कूबत
Gorakhpur News: गोरखपुर जिला जेल में बंद अमरमणि त्रिपाठी को शासन के कारागार प्रशासन एवं सुधार विभाग के विशेष सचिव मदन मोहन की तरफ से गुरुवार को रिहा करने का आदेश हुआ है।
Gorakhpur News: कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी उत्तर प्रदेश शासन की तरफ से जारी रिहाई के आदेश के बाद एक बार फिर सुर्खियों में आ गए हैं। कभी महराजगंज के लक्ष्मीपुर विधानसभा के राबिन हुड की छवि रखने वाले अमरमणि के रसूख का ऐसा था कि वह सरकार बनाने और गिराने की कूबत रखते थे। वैसे तो वह 1981 में वह पहला चुनाव महराजगंज के लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से बाहुबली वीरेन्द्र प्रताप शाही से हार गए थे, लेकिन 1989 में जब उन्होंने इसी विधानसभा से जीत हासिल की तो वह महराजगंज की सियायत के पर्याय बन गए।
गोरखपुर जिला जेल में बंद अमरमणि त्रिपाठी को शासन के कारागार प्रशासन एवं सुधार विभाग के विशेष सचिव मदन मोहन की तरफ से गुरुवार को रिहा करने का आदेश हुआ है।
अमरमणि त्रिपाठी महराजगंज के फरेन्दा तहसील के हरपुर गांव के रहने वाले हैं। किन्तु कर्मभूमि के रूप में उन्होंने अपना राजनैतिक क्षेत्र नौतनवा चुना। अमरमणि त्रिपाठी ने 1981 में लक्ष्मीपुर विधानसभा में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया। इसके बाद तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1985 में पहली बार निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे और 8426 मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे। इस चुनाव में जीत का सेहरा निर्दल बाहुबली प्रत्याशी विरेन्द्र प्रताप शाही के सिर बंधा था और शाही 37537 मत पाकर विजयी हुए थे। अमरमणि 1989 में पहली बार विधायक बने दोबारा 1991 में चुनाव हुआ तो अमरमणि त्रिपाठी चुनाव लडे, हार गए। कुछ दिनों बाद सरकार गिर गई और 1993 में चुनाव हुआ तो अमरमणि को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1996 में विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर लड़े और विजयी हुए। इसके बाद 2002 और 2007 के विधानसभा चुनाव में भी अमरमणि त्रिपाठी विधायक चुने गए। 1997 में अमरमणि लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी में जा मिले और फिर कल्याण सरकार में मंत्री बने। अमरमणि भाजपा, सपा से लेकर बसपा तक के प्रिय रहे। गेस्ट हाउस कांड में वह मायावती के आंखों की किरकिरी बने लेकिन मुलायम से उनकी करीबी हो गई। 2003 में मधुमिता हत्याकांड के मामले में यह जेल चले गए।
बेटे अमन ने संभाली पिता की विरासत
2012 के विधानसभा चुनाव में अमरमणि त्रिपाटी के पुत्र अमन मणि त्रिपाठी मैदान में उतरे, लेकिन चुनाव हार गए। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की लहर में भी अमनमणि त्रिपाठी चुनाव जीतकर विधायक बने। लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में यह बसपा से लड़े, पराजित होना पड़ा। अमनमणि पर अपनी पहली पत्नी सारा की हत्या के आरोप लगे और उन्हें जेल भी जाना पड़ा। हालांकि इसका उनके राजनैतिक जीवन में कुछ फर्क नहीं दिखा। जेल में रहकर भी अमरमणि का नौतनवा सीट पर रुतबा कायम था। 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अमनमणि को जीत दिलवाने में कामयाबी हासिल की। इस बार वो निर्दलीय चुनाव जीते। हालांकि 2022 के चुनाव में पहली बार नौतनवा सीट अमरमणि के परिवार के कब्जे से बाहर हुई। अमरमणि की बेटी तनुश्री भी राजनीति में दिलचस्पी रखती हैं।