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'बाबासाहब' के ज्ञान की पूंजी का हम देश के विकास में उपयोग करें: नाईक
मैंने बाबासाहब के सही नाम डाॅ0 भीमराव रामजी आंबेडकर लिखने के संबंध में पहल की। लिखा-पढ़ी में तो इसे सुधारा जाना आवश्यक था ही परन्तु जनमानस में प्रचलित गलत नाम विस्मरण होकर सही नाम का प्रयोग हो, इसके लिये जन-जागृति लाने की भी आवश्यकता थी। यह दो बातें मुझे आजीवन स्मरण रहेंगी। जो भी इन दोनों बातों का ध्यान करेगा, वह मुझे जरूर याद रखेगा।’
लखनऊः राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि डाॅ0 आंबेडकर का जीवन कठिन संघर्षों और उपलब्घियों की गाथा है। वे महान मानवीय गुणों से युक्त एक असाधारण व्यक्ति थे। हमारे संविधान की रूपरेखा तैयार करने के लिये उन्हें भारतीय संविधान के शिल्पी के रूप में सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।
देश को स्वतंत्र कराने एवं स्वतंत्रता के बाद संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिये डाॅ0 आंबेडकर का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। डाॅ0 आंबेडकर ने न केवल देश को संविधान रूपी शक्ति प्रदान की, बल्कि सामाजिक न्याय की दृष्टि भी दी। उन्होंने कहा कि डाॅ0 आंबेडकर ने सामाजिक अन्याय और भेदभाव दूर करने के लिये जीवन भर संघर्ष किया, वास्तव में वे पूरे भारत के लिये सम्मान के प्रतीक हैं।
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राज्यपाल राम नाईक ने आज भारत रत्न डाॅ0 भीमराव रामजी आंबेडकर की 128वीं जयन्ती पर आंबेडकर महासभा द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित होकर प्रदेश की जनता एवं अपनी ओर से श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति वित्त निगम एवं भारत रत्न बोधिसत्व बाबा साहेब डाॅ0 भीमराव आंबेडकर महासभा के अध्यक्ष डाॅ0 लालजी प्रसाद निर्मल, अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के अध्यक्ष भन्ते शान्ति रक्षित, उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बृजलाल, महासभा के कोषाध्यक्ष डाॅ0 सत्यवती दोहरे, महासभा के महामंत्री अमरनाथ प्रजापति तथा अन्य लोग उपस्थित थे।
इस अवसर पर राज्यपाल ने कहा कि ‘राज्यपाल का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। मुझे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के तौर पर पांच वर्ष पूरे हो रहे हैं। आप लोग मुझे दो बातों के लिये याद रखेंगे। एक तो मैंने यहां पर बाबासाहब के अस्थि कलश के बाजू में डाॅ0 आंबेडकर द्वारा स्वःहस्ताक्षरित भारतीय संविधान की मूल ग्रंथ की प्रति अपनी ओर से रखवायी, जिससे सभी लोगों को भारतीय संविधान का अवलोकन करने का अवसर मिले और दूसरा उत्तर प्रदेश में डाॅ0 आंबेडकर का नाम सही कराया।
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राज्यपाल ने कहा कि जब मेरे संज्ञान में आया तो मैंने बाबासाहब के सही नाम डाॅ0 भीमराव रामजी आंबेडकर लिखने के संबंध में पहल की। लिखा-पढ़ी में तो इसे सुधारा जाना आवश्यक था ही परन्तु जनमानस में प्रचलित गलत नाम विस्मरण होकर सही नाम का प्रयोग हो, इसके लिये जन-जागृति लाने की भी आवश्यकता थी। यह दो बातें मुझे आजीवन स्मरण रहेंगी। जो भी इन दोनों बातों का ध्यान करेगा, वह मुझे जरूर याद रखेगा।’
नाईक ने कहा कि डाॅ0 आंबेडकर शिक्षा के क्षेत्र में नई ऊर्जा लाये। कोल्हापूर रियासत के छत्रपति शाहूजी महाराज ने डाॅ0 आंबेडकर की असाधारण प्रतिभा को देखकर उनके शिक्षा ग्रहण करने में सहयोग किया। वास्तव में छत्रपति शाहूजी महाराज को असली सोने की परख थी। डाॅ0 आंबेडकर 6 भारतीय तथा 4 विदेशी भाषाओं के ज्ञाता थे। बाबासाहब के प्रत्येक भाषण में उनकी असामान्य विद्वत्ता एवं दूरदर्शिता का परिचय मिलता है।
उन्होंने कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की। डाॅ0 आंबेडकर का मानना था कि जब तक शिक्षा नहीं मिलेगी समाज आगे नहीं बढ़ेगा। सामाजिक आन्दोलन में व्यस्त होने के बावजूद बाबासाहब का ज्ञान-प्रवाह लेखन अद्भुत था। उनकी पुस्तकें, निबंध और लेखों का संग्रह प्रेरणा देने वाला है। कालान्तर में विचार बदलते हैं, परन्तु लिखा हुआ शब्द ‘अक्षर’ होता है। उन्होंने कहा कि बाबासाहब के ज्ञान की पूंजी का हम देश के विकास के लिये उपयोग करें।
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इस अवसर पर उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति वित्त निगम एवं भारत भारत रत्न बोधिसत्व बाबा साहेब डाॅ0 भीमराव आंबेडकर महासभा के अध्यक्ष डाॅ0 लालजी प्रसाद निर्मल, अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के अध्यक्ष भन्ते शान्ति रक्षित तथा उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बृजलाल ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान करने वालों को ‘आंबेडकर रत्न’ तथा ‘आंबेडकर सम्मान’ से अंलकृत भी किया गया