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सरकारें गरीबी नहीं, गरीबों को मिटाने पर तुली: रामगोविन्द चौधरी
उन्होंने कहा है कि कोरोना के मुकाबले के नाम पर देश और राज्यों की सरकारें गरीबी को नहीं, मजदूरों, श्रमिकों , बेरोजगारों, किसानों और गरीबों को मिटा देने पर तुली हैं।
लखनऊ। नेता प्रतिपक्ष उत्तर प्रदेश रामगोविन्द चौधरी ने छात्रों और युवाओं से आगामी 5 जून को जयप्रकाश नारायण और संपूर्ण क्रांति को याद करते हुए 1974 से भी बड़े आंदोलन की तैयारी करने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा है कि कोरोना के मुकाबले के नाम पर देश और राज्यों की सरकारें गरीबी को नहीं, मजदूरों, श्रमिकों , बेरोजगारों, किसानों और गरीबों को मिटा देने पर तुली हैं।
देश आर्थिक तबाही के मोड़ में
ये सरकारें अपने अनियोजित और मनमाने फैसलों से आम आदमी को प्रतिदिन मौत के मुंह में ढकेल रहीं हैं और देश को आर्थिक तबाही के मोड़ पर पहुंचा दिया हैं। इसलिए इनके खिलाफ आज 1974 से भी बड़े छात्र युवा आन्दोलन की जरूरत है। चौधरी ने कहा कि मजदूरों, श्रमिकों, बेरोजगारों, किसानों और गरीबों की रक्षा के लिए लॉकडाउन नियमों का पालन करते हुए 1974 से भी बड़े आंदोलन की तैयारी करें। उन्होंने कहा कि सभी लोग सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और कन्नौज की पूर्व सांसद डिम्पल यादव से प्रेरणा लें और खुद भी दुखीजनों के आंसू पोछें, जुल्म का प्रतिवाद करें लेकिन इस संकल्प के साथ, हमला चाहे जैसा होगा- हाथ हमारा नहीं उठेगा।
जयप्रकाश नारायण को किया याद
लोकनायक जयप्रकाश नारायण को याद करते हुए नेता प्रतिपक्ष रामगोविन्द चौधरी ने गुरुवार को बयान जारी कर कहा है कि देश और राज्य सरकारों की कारपोरेट समर्थक नीति के कारण देश पहले से ही महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, कालाबाजारी और आर्थिक मंदी से जूझ रहा था। किसान रो रहा था। अल्पसंख्यक और धर्मनिरपेक्ष लोग शासन के संरक्षण में भीड़ हिंसा का शिकार हो रहे थे। बैंक दिवालिया हो रहे थे।
देश की कमर तोड़ दी
कोरोना को लेकर विदेशों से आने वाले देश में बिना जांच पड़ताल के चारो तरफ आ जा रहे थे और देश तथा राज्यों की कुछ सरकारें डब्लूएचओ की चेतावनी के बाद भी ट्रम्प के स्वागत और मध्य प्रदेश कब्जा की राजनीति में लगी रहीं तो कुछ सरकारें अपने दलीय हितों में। उन्होंने कहा है कि ऐसे में कोरोना के मुकाबले के नाम पर अचानक और अनियोजित लाकडाउन ने पूरे देश की कमर तोड़ दिया है।
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नेता प्रतिपक्ष ने कहा है कि अनियोजित और अचानक लाकडाउन से देश एक ऐसे आर्थिक तबाही के दौर से गुजर रहा है जिसकी कल्पना करने से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इस अनियोजित और अचानक किए गए लाकडाउन से 15 करोड़ से अधिक बारोजगार लोग बेरोजगार हो गए। किसान खेत में अपना उत्पाद नष्ट करने को मजबूर है।
देश भुखमरी की चपेट में
रोज कमाने खाने वाली देश की बड़ी आबादी भुखमरी की चपेट में है। छोटे रोजगार कर खुश रहने वालों की भी हालत चिंताजनक हो गई है। रेल से कटकर, वाहनों से कुचलकर और रास्तों में भूख प्यास से मरने वालों को छोड़िए, राज्य सरकार और भारत सरकार की देखरेख में चल रही ट्रेनों में 80 मजदूर भूख प्यास से मर गए। उन्होंने कहा है कि आर्थिक तंगी को लेकर आए दिन खुदकुशी की खबरें आ रही हैं और सरकार या तो कान में तेल डाले पड़ी है या केवल कागजी निर्देश, उपदेश जारी कर रही हैं और लाठी-गोली की भाषा बोल रही हैं।
चौधरी ने कहा है कि इन सरकारों ने उन लोगों के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज कराया है जो रास्ते में मजदूरों की मदद किए हैं। उन वाहनों को भी जब्त कर लिया जिन्होंने दया करके मजदूरों को अपने वाहन पर बैठा लिया। यही नहीं, इन असहाय मजदूरों को सरकारों के निर्देश पर पुलिस ने बेरहमी से पीटा, चिलचिलाती धूप में मुर्गा बनाया, इससे अधिक निर्लज्जता क्या सकती है? उन्होंने कहा कि इसे लेकर केवल आलोचना से काम नहीं चलेगा।
रिपोर्टर - मनीष श्रीवास्तव , लखनऊ
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