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महिला सशक्तिकरण का उदाहरण है बेटियों का आगे निकलना: राज्यपाल

चंद्रशेखर विश्व विद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने 27 मेधावियों को स्वर्ण पदक देकर सम्मानित किया। सभी बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के साथ सफलता के मूल मंत्र भी दिया। सामाजिक हित से जुड़े कार्यों पर चर्चा करते हुए हर किसी को इसमें सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने की भी अपील की।

Dharmendra kumar
Published on: 12 Dec 2019 11:01 PM IST
महिला सशक्तिकरण का उदाहरण है बेटियों का आगे निकलना: राज्यपाल
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बलिया: चंद्रशेखर विश्व विद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने 27 मेधावियों को स्वर्ण पदक देकर सम्मानित किया। सभी बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के साथ सफलता के मूल मंत्र भी दिया। सामाजिक हित से जुड़े कार्यों पर चर्चा करते हुए हर किसी को इसमें सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने की भी अपील की।

राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि स्वर्ण पदक हासिल करने में बेटियों का आगे होना बदलते भारत में महिला सशक्तिकरण का प्रत्यक्ष उदाहरण है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का जो नारा प्रधानमंत्री ने दिया है, उसका प्रभाव अब सुदूर व पिछड़े इलाको में भी दिखाई देने लगा है। शहर के कलक्ट्रेट परिसर में स्थित ऑडिटोरियम में आयोजित समारोह में राज्यपाल ने अपने सम्बोधन की शुरूआत महापुरूषों व साहित्यकारों को याद करते हुए की।

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राज्यपाल ने कहा कि यह कोई सामान्य धरती नहीं है, बल्कि यहां का इतिहास गौरवशाली रहा है। पौराणिक ऋषि-मुनियों के साथ स्वाधीनता आंदोलन के नायकों की धरती है। यहां के लोगों का सौभाग्य है कि ऐसी धरती पर जन्म लिया। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, आचार्य परशुराम द्विवेदी, रघुनाथ शर्मा, अमरकांत व केदारनाथ सिंह जैसे साहित्यकारों के साथ पूर्व पीएम चन्द्रशेखर ने इस उर्वरा भूमि में जन्म लिया है।

राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा समाज व राष्ट्र की ऋण होती है। शिक्षा की शक्ति से सरकार भली-भांति परिचित है। सरकार विशेषकर उच्च शिक्षा में बदलाव नवाचार लाने के लिए प्रतिबद्ध है। पाठ्यक्रम से लेकर आधारभूत ढ़ांचे तक में मूलभूत बदलाव करने की जरुरत है ताकि वैश्विक चुनौतियों व सामाजिक समस्याओं के समाधान करने के लिये योग्य युवा पीढ़ी तैयार कर सकें। हमारी कई गंभीर समस्याओं का समधान तकनीकी शिक्षा में निहित है। पर यह भी ध्यान रखना होगा कि कहीं इस दौड़ में हम शिक्षा के बुनियादी लक्ष्य से भटक न जाएं।

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उन्होंने कहा कि भारतीय चिंतन परंपरा में शिक्षा को चारित्रिक प्रगति का माध्यम माना गया है। आज पूरी दुनिया भारतीय चिंतन प्रणाली की ओर आशा भरी नजरों से देख रही है। उन्होंने अध्यात्म को शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाने की अपील की। उपाधि पाने वाले विद्यार्थियों से कहा कि कक्षाओं में जीवन समाप्त नहीं होता बल्कि यहां से शुरुआत होती है।



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Dharmendra kumar

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