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प्रतापगढ़ से है गुलाबो सिताबो का नाता
अनूप कुमार ओझा
प्रतापगढ़: इशारों-इशारों में बड़ी बात कह देने की कला कठपुतली में होती है। यही कारण है कि सामाजिक संदेश देने के लिए कठपुतली ने सशक्त माध्यम के तौर अपनी जगह बनाई। कठपुतली के माध्यम से मनोरंजक ढंग से समाज के तानेबाने में सामाजिक कुरीतियों की ओर लोगों का ध्यान खींचना इस कला की खासियत है।
आज अचानक से कठपुतली का जिक्र हो रहा है, ऐसा नहीं है। दरअसल कठपुतली कला और प्रतापगढ़ का रिश्ता चोली दामन का है। आज जब गुलाबो सिताबो पर फिल्म बन रही है तो एक बार फिर कठपुतली के पात्रों पर चर्चा करना जरूरी है। महानायक अमिताभ बच्चन गुलाबो सिताबो पर बन रही इस फिल्म में अभिनय कर रहे हैं। इस कारण यह फिल्म लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है।
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ये कठपुतली भी न जाने कितनी परतें खोलने को तैयार है। दरअसल कठपुतली कला अमिताभ बच्चन के पुरखों की धरती प्रतापगढ़ से बहुत गहराई से जुड़ी है। बिग बी प्रतापगढ़ के बाबूपट्टी के हैं और इसी के बगल के गांव नरहरपुर के कायस्थ परिवार में यह कला विरासत के रूप में निखरी और संवारी गई। यहां अब भी ये सिलसिला जारी है।
आइए अब उस यात्रा पर चलते हैं, जिसमें ननद-भौजाई पात्र के रूप गुलाबो सिताबो का जन्म होता है। इसके पीछे एक लंबी कहानी है और उसकी शुरुआत होती है,नरहरपुर गांव के राम निरंजन लाल श्रीवास्तव से।
कुप्रथा को दूर करने का संदेश
निरंजन लाल ने एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट, प्रयागराज में नौकरी के दौरान इस कला को सीखा और गुलाबो सिताबो नामक ननद-भौजाई के पात्र गढ़े। इस नाम से उन्होंने दर्जनों जगहों पर कला का प्रदर्शन करके भारतीय परिवारों में कुप्रथा को प्रतिबिंबित करते हुए इसे दूर करने का संदेश दिया।
जब एक बार निरंजन लाल श्रीवास्तव ने अपना मन इसमें लगाया तो उनके भतीजे अलख नारायण श्रीवास्तव ने इस कला के संरक्षण का कार्य संभाल लिया। उन्होंने इसकी बारीकियों को सीखा और उसे पहचान दिलाई। उनके साथ बीआर प्रजाप्रति समेत कई अन्य लोगों ने भी कठपुतली की बेल को सींचा।
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खास बात ये है कि अलख के मन में कला की ऐसी अलख जगी कि उन्होंने दो-दो बार सरकारी नौकरी से मुंह मोड़ लिया। पं.नेहरू भी उनकी इस कला के मुरीद थे। उनकी कला को देखकर पं.जवाहर लाल नेहरू ने भी तारीफ की थी। अलख नारायण ने सूचना विभाग, दूरदर्शन, सांस्कृतिक विभाग से जुडक़र कला को विस्तार दिया। हजारों लोगों को इसे सिखाया और सेमिनार में लेक्चर दिए।
इस कला को आक्सीजन देगा
अलख नारायण पिछले चार दशक से लखनऊ में रहते हैं, लेकिन अपने गांव नरहरपुर से उन्होंने नाता नहीं तोड़ा है। उनके पारिवारिक मित्र अमितेंद्र श्रीवास्तव बताते हैं कि दशहरे के दौरान रामलीला के मंच पर वह अपनी कला का प्रदर्शन करने जरूर आते हैं। बात जब गुलाबो सिताबो फिल्म की सामने आई तो अलख नारायण श्रीवास्तव का कहना है कि कठपुतली के पात्रों पर हो रहा यह प्रयोग निश्चित रूप से इस कला को आक्सीजन देगा।
इस कला को और संरक्षण मिले
अलख नारायण का मानना है कि इस कला में वो ताकत है कि यह बहुत ही सहज ढंग से समाज, परिवार और देश को विसंगतियों से सावधान व जागरूक करती है। आज की सामाजिक बुनावट में अनेक विसंगतियां व्याप्त हैं।
गुलाबो सिताबो बड़ी उम्मीद के साथ लोगों को दहेज, घरेलू कलह, अशिक्षा, अस्वच्छता आदि से दूर रहने को प्रेरित करती हैं। अलख नारायण ने कहा कि इस कला को और संरक्षण मिलना चाहिए। संगीत नाटक अकादमी की तरह कठपुतली का भी कोई सरकारी संस्थान बनाया जाना चाहिए। इस आशय का पत्र वह प्रधानमंत्री मोदी को लिखेंगे।