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परंपरागत तरीके से होलिकादहन की तैयारी, शहर के हर चौराहे पर जलाई जाएगी होलीका
भरभोलिए गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं, जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है, एक माला में सात भरभोलिए होते हैं, होली में आग लगाने से पहले इस माला को भाइयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका यह आशय है कि होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी जल जाए।
लखनऊ: समाज की सभी बुराइयों के अंत के लिए 'होलिकादहन' किया जाता है, और ऐसा माना जाता है कि होलिकादहन करने से समाज में व्याप्त बुराइयां, बीमारियां सब होली की आग में जलकर राख हो जाती हैं। इस आग में पांच प्रकार के अनाज जैसे नए गेहूं और अन्य फसलों की बालियां, रोली, अक्षत, साबुत हल्दी, बताशे, गुलाल, बड़ी-फुलौरी, मीठे पकवान या मिठाइयां और फल के साथ आग में उपले व भरभोलिये भी जलाने की प्रथा है।
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क्या है भरभोलिए?
भरभोलिए गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं, जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है, एक माला में सात भरभोलिए होते हैं, होली में आग लगाने से पहले इस माला को भाइयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका यह आशय है कि होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी जल जाए।
होलिका जलाने का कारण
पुराने ऋषियों के अनुसार होली का समय ऋतु परिवर्तन का समय होता है एवं हिन्दु कैलेंडर के अनुसार होली का त्योहार शिशिर और वसंत ऋतु के बीच में पड़ने की वजह से इसे ऋतुओं का संधिकाल भी कहा गया है।
इस बदलाव वाली ऋतु में मनुष्यों को तमाम तरह के रोगों का सामना करना पड़ता है, जैसे सर्दी, खांसी, कफ, खसरा और चेचक जैसी बीमारियां जो कि बदलते मौसम व तापमान में परिवर्तन के कारण हो जाती है। होलिकादहन इन बीमारियों को दूर करने में व इनके प्रभाव को कम करने में अहम भूमिका निभाता है,
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स्वास्थ्य की दृष्टि से होलिकादहन के वक्त, अग्नि परिक्रमा, नाचना, गाना, खेलना आदि शामिल किए गए हैं। जहां अग्नि का ताप रोगाणुओं को नष्ट करता है, वहीं खेलकूद की अन्य क्रियाएं शरीर में जड़ता नहीं आने देती और कफ दोष दूर रखने में सहायक होती हैं, जिससे शरीर की ऊर्जा और स्फूर्ति कायम रहती है और शरीर स्वस्थ रहता है। स्वस्थ शरीर होने पर मन के भाव भी बदलते हैं, मन उमंग से भर जाता है और नई कामनाएं पैदा करता है। इसलिए वसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा कहने के साथ मनोप्रिय, मनमोहक और खुशनुमा वातावरण वाली ऋतु भी कहते हैं।
मुस्लिमों में भी है होलिकादहन का प्रचलन
इसका सबसे प्रामाणिक इतिहास मुगल काल में मिलता है, इस काल में होली के किस्से उत्सुकता जगाने वाले हैं। अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है।
तो अलवर संग्रहालय के एक चित्र में जहाँगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है, शाहजहाँ के समय तक होली खेलने का मुग़लिया अंदाज़ ही बदल गया था। इतिहास में वर्णन है कि शाहजहाँ के ज़माने में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) कहा जाता था। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे और होलिकादहन का भी आयोजन करते थे।
शहर में 2880 स्थानों पर होलिकादहन का इंतजाम
एस.एस.पी. कलानिधि नैथानी के मुताबिक आज राजधानी में 2880 जगहों पर होली जलाई जाएगी जिसमें शहरी क्षेत्र में 1809 एवं देहात क्षेत्र में 1071 दहन स्थल चिन्हित किये गए हैं। जिसके लिए सुरक्षा के इंतजाम भी पूरे हैं, कुछ विवादित जगहों पर 24 गारद व संवेदनशील स्थानों के लिए एलआईयू की 14 टीमें तैनात रहेंगी। वहीं एसएसपी ने कुछ अस्पताल चिन्हित कर वहां पर भी सुरक्षा व्यवस्था का इंतजाम कर दिया है।
होलिकादहन का शुभ मुहूर्त
होलिकादहन का शुभ मुहूर्त रात 08:58 से शुरू होकर 11:34 तक खत्म होगा।