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काश पहले भी पाठा की पाठशाला जैसे कार्यक्रम चले होते तो-हम भी डकैत न होते...
पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार सोहन ने पूछताछ के दौरान बताया कि पाठा की पाठशाला कार्यक्रम को लेकर दस्यु बबुली और लवलेश में अक्सर खूब चर्चा होती थी। उसने बताया कि हम सब गैंग के सदस्य मिलकर इस विषय पर घण्टो बात करते थे।
चित्रकूट: पुलिस द्वारा पकड़े गए डकैत बबुली कोल गैंग के शूटर एक लाख रुपये के इनामी डकैत सोहन कोल ने पुलिस रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में बड़ा खुलासा किया है।
शायद हम भी बीहड़ का रास्ता न पकड़ते
पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार सोहन ने पूछताछ के दौरान बताया कि पाठा की पाठशाला कार्यक्रम को लेकर दस्यु बबुली और लवलेश में अक्सर खूब चर्चा होती थी। उसने बताया कि हम सब गैंग के सदस्य मिलकर इस विषय पर घण्टो बात करते थे। उसने पूछताछ के दौरान बताया कि बबुली और लवलेश का भी कहना था कि अगर इस तरह का कार्यक्रम पहले कभी चला होता तो शायद हम भी बीहड़ का रास्ता न पकड़ते। सोहन कोल ने ये बात भी कबूल की गैंग के सभी सदस्य इस मुहीम से प्रेरित थे और सबका यही मानना था कि काश ऐसी मुहीम पहले चली होती तो हम डकैत न बनते।
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गौरतलब हो कि एसपी चित्रकूट मनोज कुमार झा के निर्देशन में चित्रकूट पुलिस द्वारा समूचे पाठा इलाके में पाठा की पाठशाला कार्यक्रम चलाया था। इस कार्यक्रम की शुरुआत तत्तकालीन मानिकपुर थानाप्रभारी केपी दुबे द्वारा डकैत प्रभावित निहि गांव से शुरू की गई थी। जिसके तहत गांवो में चौपाल लगाकर स्कूल जाने वाले और स्कूल न जाने वाले दोनों तरह के बच्चों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया जाता था। इस कार्यक्रम में बच्चो के साथ उनके अभिभावकों को भी प्रेरित किया जाता था। इस कार्यक्रम के तहत सैकड़ो ऐसे बच्चों का एडमिशन हुआ जो किसी कारणवश स्कूल नही जाते थे।
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पाठा का बीहड़ हमेशा से डकैतों की शरणस्थली रहा है
देश का मिनी चम्बल कहा जाने चित्रकूट के पाठा का बीहड़ हमेशा से डकैतों की शरणस्थली रहा है। इस इलाके में जंगल से सटे गांवो में अधिकांश कोल समुदाय की आबादी निवास करती है। इस समुदाय में शिक्षा का प्रतिशत न के बराबर है। सूबे के मोस्ट वांटेड डकैत बबुली कोल और लवलेश इस समुदाय से ताल्लुक रखते थे और बीहड़ में कदम रखने का कहीं न कहीं सबसे बड़ा कारण दोनो का शिक्षित न होना भी था।
फिलहाल पकड़े गए डकैत सोहन द्वारा ये बात सामने आने के बाद ये तो स्पष्ठ हो गया है की प्रशासन को अब ऐसे सभी इलाको में शिक्षा की जागरूकता बढ़ाने हेतु इसे कार्यक्रम बड़े स्तर पर चलाने लायक है। पाठा की पाठशाला जैसे कार्यक्रम उन बच्चो के टॉनिक साबित हो सकते हैं जो आज भी शिक्षा के मंदिर से कोसो दूर हैं। अगर जंगल से सटे इलाकों सहित समूचे जिले में शिक्षा की जागरूकता के लिए ठोस कार्य किये जायें तो निःसन्देह इस बीहड़ में कभी दूसरा बबुली कोल नही पैदा होगा।