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जुनूनः करनी थी डीएम बन मानवसेवा, छोड़ दिया आईपीएस का रुतबा और डॉक्टरी

सपने चाहे जितने बड़े हों, मंजिल चाहे जितनी भी दूर हो लेकिन दृढ़ संकल्प और योजनाबद्ध प्रयास सफलता का सबब बनता है।

Roshni Khan
Published on: 24 Jun 2020 6:44 AM GMT
जुनूनः करनी थी डीएम बन मानवसेवा, छोड़ दिया आईपीएस का रुतबा और डॉक्टरी
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तेज प्रताप सिंह

गोंडा: सपने चाहे जितने बड़े हों, मंजिल चाहे जितनी भी दूर हो लेकिन दृढ़ संकल्प और योजनाबद्ध प्रयास सफलता का सबब बनता है। देश में लाखों युवा छात्र आईएएस अफसर बनने के लिए दिन-रात पढ़ाई करते हैं लेकिन सफल कुछ ही हो पाते हैं। पंजाब के एक मेधावी छात्र ने वह सब हासिल कर लिया, जिसे पाने का सपना हर युवा देखता है। 17 साल की उम्र में देश के प्रतिष्ठित प्री मेडिकल टेस्ट(पीएमटी) की परीक्षा से एमबीबीएस के लिए चयनित हुए। पांच साल जमकर पढ़ाई की और डाक्टर बने। फिर डाक्टरी छोड़ यूपीएससी परीक्षा में हाथ आजमाया और आइपीएस बन गए। अगले साल पुनः परीक्षा दी और महज 25 साल की उम्र में आईएएस बन गए।

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यह कहानी पंजाब के भटिंडा से आने वाले आईएएस अधिकारी डा. नितिन बंसल की है। स्कूल से लेकर मेडिकल कालेज तक अच्छे अंक हासिल करने वाले डा. नितिन बंसल ने मानवता की बेहतर सेवा और ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोगों को अशिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, रोजगार की कमी और गरीबी से निजात दिलाने के लिए आइएएस बनने की राह पकड़ ली। उनका मानना है कि डाक्टर और पुलिस अफसर बन कर वे कुछ ही लोगों की सेवा कर सकते थे लेकिन भारतीय प्रशासनिक सेवा में समाज के लिए काम करने के अवसर अधिक हैं। इसलिए उन्होंने यूपीएससी की राह पकड़ी। मानवता की बेहतर सेवा और ग्रामीण क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए यूपीएससी का सफर चुनने वाले असाधारण प्रतिभा के साधारण व्यक्ति आइएएस अफसर डा. नितिन बंसल वर्तमान में उप्र में गोंडा जिले के जिलाधिकारी हैं।

संस्कारी चिकित्सक परिवार में हुआ जन्म

एक प्रतिष्ठित डाक्टर परिवार में 22 अगस्त 1982 को पंजाब के भटिंडा शहर में जन्मे डा. नितिन बंसल पंजाब के भटिंडा जनपद के मूल निवासी हैं। जो कभी चिकित्सा क्षेत्र में जाने वाले छात्रों के लिए राजस्थान के कोटा जैसा हुआ करता था। हर साल सैकड़ों छात्रों का चयन एमबीबीएस के लिए होता था। डा. नितिन बंसल ने अपनी प्रतिभा और मेहनत से यह साबित कर दिया कि दृढ़ इच्छा शक्ति, मेहनत और ईमानदारी से किया गया प्रयास अवश्य सफल होता हैं। वैश्य परिवार के डा. नितिन बंसल के पिता डा. वी.पी बंसल अच्छे चिकित्सक के साथ ही सरकारी सेवा में जिले के मुख्य चिकित्साधिकारी रहे हैं। जबकि ममतामयी मां श्रीमती कुसुम बंसल गृहणी हैं।

अनुज डा. करन और उनकी पत्नी चिकित्सक हैं। इसके अलावा उनके परिवार में माता-पिता पक्ष से डेढ़ दर्जन डाक्टर हैं, जिन्हें चिकित्सा के विभिन्न क्षेत्रों में महारत हासिल है। भारतीय संस्कारों से ओतप्रोत ईश्वर में पूर्ण आस्था रखने वाले डा. नितिन बंसल के माता-पिता भी ईमानदारी और मानवता की प्रतिमूर्ति हैं। डा. नितिन बंसल कहते है कि आज जब वे और उनकी आईएएस पत्नी श्रीमती माला श्रीवास्तव देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा में हैं। तब भी उनके माता-पिता उनका कुशलक्षेम पूंछकर मदद की पेशकश करते रहते हैं। शायद यही कारण है कि आज के इस घोर भौतिकवादी युग में भी वे प्रशासनिक सेवा और व्यक्तिगत जीवन में तमाम बुराइयों से दूर हैं।

शुरुआत से ही पढ़ाई में रहे अव्वल

नितिन बंसल पढ़ने में शुरू से पढ़ाई में अव्वल थे और हर क्लास में 86 फीसदी से अधिक अंक हासिल किया। भटिंडा के सेंट जोसेफ सेकण्डरी स्कूल से हाईस्कूल और एसएसडी कालेज से इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करके महज 17 साल की आयु में ही उनका नाम एमबीबीएस के लिए देश स्तर पर आयोजित होने वाली परीक्षा प्री मेडिकल टेस्ट (पीएमटी) में आ गया। उन्हें पंजाब के राजकीय मेडिकल कालेज पटियाला में दाखिला मिला। उनका नाम सुखिऱ्यों में तब छाया जब उन्होंने 2008 की सिविल सर्विसेज की परीक्षा में 155वीं रैंक हासिल किया। लेकिन अगले साल 2009 में ही उन्होंने 63 वीं रैंक हासिलकर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) में उत्तर प्रदेश कैडर प्राप्त किया।

पिता विदेश भेजना चाहते थे

डा. नितिन बंसल बताते हैं कि पिता डा. वी.पी बंसल उन्हें एमबीबीएस के बाद विदेश भेजना चाहते थे लेकिन पढाई के दौरान उन्हें इंटर्नशिप के दौरान तमाम अभावग्रस्त लोगों से मिलने और गांवांे में रह रहे लोगों की पीड़ा समझने का मौका मिला, जो उनके जीवन के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। इससे पहले उन्होंने बचपन में पिता से गांव के गरीबी, कुपोषण और अशिक्षा जैसे अनेक खराब हालात के बारे में सुना था। मरीजों की सेवा करते उसे महसूस हुआ कि देश में गरीबी से बड़ी कोई बीमारी नहीं है और उसका इलाज करने के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा बेहतर प्लेटफार्म बन सकता है। इसी संकल्प के साथ उन्होंने 2007 में यूपीएससी की परीक्षा दी लेकिन तैयारी के लिए कम समय के चलते उन्हें असफलता मिली।

लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाय 2008 में दूसरा प्रयास किया और 155 वीं रैंक हासिल की और उनका चयन भारतीय पुलिस सर्विसेज (आईपीएस) में हुआ। आईपीएस की ट्रेनिंग के दौरान ही उन्होंने 2009 में तीसरे प्रयास में देशभर में 63 वां स्थान हासिल किया। इस कामयाबी के बाद डा. नितिन पूरे पंजाब में चर्चित हो गए। प्रशिक्षण के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश कैडर मिला और यहीं आईएएस के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अपनी सफलता पर डा. नितिन बंसल कहते हैं कि मैं यह तो महसूस कर रहा था कि मैं परीक्षा में सफल हो जाऊंगा, लेकिन अनारक्षित वर्ग का होने के कारण 63वीं रैंक मिलने की उम्मीद नहीं थी। मुझे आशा है कि मेरी इस सफलता से तमाम छात्रों को संदेश मिलेगा कि वे मेहनत के बदौलत सब कुछ हासिल कर सकते हैं।

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गोरक्षपीठ से शुरु की नौकरी

2009 बैच के आईएएस डा. नितिन बंसल ने देश प्रदेश में विख्यात गुरु गोरखनाथ की नगरी से नौकरी की शुरुआत की। उन्होंने वर्तमान मुख्यमंत्री के गृह जनपद गोरखपुर में करीब दो वर्ष तक प्रशिक्षण लिया। इसके उपरांत कानपुर नगर के संयुक्त मजिस्ट्रेट बने। इसके बाद प्रयागराज के मुख्य विकास अधिकारी का कार्यभार संभाला। सपा सरकार में 09 फरवरी 2013 को कन्नौज का जिलाधिकारी बनाया गया। फिर उसी दिन संशोधित आदेश से उन्हें कानपुर देहात का जिलाधिकारी बना दिया गया। बाद में वह इटावा और मथुरा के जिलाधिकारी रहे। उन्हें विशेष सचिव सिंचाई तथा मिशन निदेशक, राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में भी काम करने का मौका मिला। 29 जून 2017 से प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में नगर आयुक्त के पद की जिम्मेदारी सम्भालते हुए काशी को स्मार्ट सिटी बनाने के मिशन में काम किया। अपने तैनाती वाले स्थलों पर बेहतर काम के लिए कई बार सम्मानित हुए और ख्याति अर्जित किया। उनके प्रशासनिक कौशल और जिले की दशा को देखते हुए फरवरी 2019 में सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने डा. बंसल को गोंडा का जिला अधिकारी बनाया।

फैसलों में सख्त, जीवन में सादगी

चिकित्सक और समाजसेवी पिता डा. वीपी बंसल और देवी तुल्य संस्कारों से परिपूर्ण मां कुसुम बंसल द्वारा दिए गए संस्कार का ही नतीजा है कि डा. नितिन बंसल पर देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा में आईएएस जैसे उच्च पद के ठसक से इतर वे जीवन में 'सादा जीवन उच्च विचार' में विश्वास रखते हैं। लेकिन साफगोई के साथ फैसले लेने में सख्त हैं। स्वेच्छाचारी, भ्रष्टाचारी को बख्शते भी नहीं। तमाम दबाव के बावजूद गोंडा में स्टेशन रोड पर अतिक्रमण कर बनाई गई सैकड़ों दुकानों, आलीशान होटल को चंद घंटों में जमींदोज कराना इसका प्रमाण है। डा. बंसल कहते हैं कि कान्फीडेंस और ईमानदारी से ही बेहतर प्रशासन चल सकता है। उनका कहना है कि उच्चाधिकारियों को जनता के करीब होना चाहिए ताकि लोगों की पीड़ा समझकर उसका निराकरण किया जा सके।

इसीलिए वे कभी भी किसी से मिल सकते हैं और अदना सा आदमी भी बेफिक्र होकर उनसे अपनी पीड़ा कह सकता है। बड़े बुर्जुगों का सम्मान करने की अद्भुत कला ही उनके विराट व्यक्तित्व का आइना है। सार्वजनिक समारोह में भी वे किसी बुर्जुग का पांव छूने में संकोच नहीं करते। अनाथ और वृद्धाश्रमों में परिवार से अलग रह रहे अनाथ, विकलांग बच्चों व बुजुर्गों के बीच जाकर कम्बल, वस्त्र, मिठाई, फल, भोजन और दक्षिणा आदि देने के साथ-साथ उनका दुःखदर्द भी बांटते हैं। कड़ाके की ठंड में रात-रात भर बस स्टेशन, अस्पताल, रेलवे स्टेशन पर बेसहारा लोगों को कम्बल बांटते हैं। प्रशासनिक दायित्व के साथ मानवता की सेवा में जुटे डा. नितिन बंसल को सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं ने अनेकों बार सम्मानित किया है।

पिता से सुनी थी गांव की बदहाली

जिलाधिकारी डा. नितिन बंसल बताते हैं कि उनके पूर्वज पंजाब के ही मोगा जिले के एक गांव के निवासी रहे और उनके पिता ने वहीं से डाक्टरी की पढ़ाई की। इसलिए बचपन में पिता से सुनी गांव और गरीबी की तमाम कहानियां आज भी उनके जेहन में हैं। इसीलिए उन्होंने गांव और गरीबों की पीड़ा दूर करने का संकल्प लिया है। ग्रामीण क्षेत्रों की मुख्य समस्या कृषि उत्पादों की अव्यवस्थित विपणन प्रणाली, रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, अशिक्षा एवं गरीबी है। नतीजन गांव में रहने वाले लोगों का जीवन स्तर शहरों की अपेक्षा अधिक अच्छा नहीं है।

गांव की गरीबी दूर करने का संकल्प

गांव की गरीबी दूर कर वहां खुशहाली लाना उनका संकल्प है। इसलिए अवसर मिलते ही वे इस पर प्रयास अवश्य करेंगे। उन्होंने कहा कि गांव और कृषि में सुधार निचले पायदान से फीडबैक लेकर ही संभव है। गांवों में कुछ ऐसे प्रयास की आवश्यकता है, जो कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण करके उनका सही मूल्य दिलवा सकें। ग्रामीण उद्यमिता के विकास के लिए बिजली की अबाध्य सुविधा, सुरक्षित सड़कें, इंटरनेट संपर्क और शिक्षा के स्तर को ठीक करने की जरूरत है। देश और प्रदेश की सरकार कृषि और ग्रामीण क्षेत्र के विकास को लेकर दृढ़ संकल्पित है और प्रयास भी हो रहे हैं। कान्ट्रैक्ट फार्मिंग योजना इसमें मील का पत्थर बन सकती है। जब कृषि का काम मजबूरी का पेशा नहीं रह जाएगा तब कृषि, विशेषज्ञता आधारित होकर लाभ का व्यवसाय बन पाएगी। यही भारतीय कृषि और ग्रामीण जीवन के पुनरुत्थान का मूलमंत्र हो सकता है।

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व्हाट्सअप, ट्विटर से पीड़ितों को दे रहे राहत

कोरोना महामारी के कारण जब जनता दर्शन, तहसील दिवस आदि कार्यक्रम बंद हुए तो जिलाधिकारी डा. बंसल ने जनता की समस्याओं को सुनने के लिए व्हाट्सअप और ट्विटर का उपयोग शुरु किया ताकि पीड़ित आमजन को घर बैठे ही राहत दी जा सके। उनके त्वरित सुनवाई का ही परिणाम है कि जिलाधिकारी के ट्विटर अकाउंट से 32 हजार से अधिक लोग जुड़ चुके हैं। मीडिया कर्मियों और जिले की जनता को डीएम के ट्विटर पर ही कोरोना मरीजों का अपडेट मिल जाता है। जिलाधिकारी डा. बंसल कहते हैं कि जनता की समस्याओं का समाधान समय से कराना उनकी प्राथमिकता है। कोरोना वायरस का संक्रमण लगातार बढ़ने से तमाम जिला मुख्यालय नहीं आ पाते थे। इसलिए व्हाट्सअप, ट्विटर से जनता को सहूलियत दी जा रही है और इस माध्यम से जो भी जन समस्याएं संज्ञान में आती हैं, उनका समाधान कराया जा रहा है।

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