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केजीएमयू में विकसित किया जा रहा है आयुर्विज्ञान शिक्षा का भारतीय प्रारूप

चिकित्सा शिक्षा का भारतीय प्रारूप तैयार करने के लिए केजीएमयू में देश-प्रदेश के कई चिकित्सा संस्थानों के विशेषज्ञों को आमंत्रित कर उनके सुझाव लिए जा चुके है और अब इन सुझावों को भारत सरकार को भेजा जायेगा, जिससे देश में नई चिकित्सा शिक्षा का प्रारूप तैयार किया जा सकें।

SK Gautam
Published on: 12 Dec 2019 9:57 PM IST
केजीएमयू में विकसित किया जा रहा है आयुर्विज्ञान शिक्षा का भारतीय प्रारूप
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लखनऊ: किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय ने भारतीय चिकित्सा शिक्षा का भारतीयकरण करने के लिए देश के वातावरण के अनुकूल उद्देश्य, नीति तथा संरचना, पाठ्यवस्तु और शिक्षण विधि के आधार पर ‘आयुर्विज्ञान शिक्षा का भारतीय प्रारूप’ विकसित करने की तैयारी शुरू कर दी है।

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सम्बंधित सुझावों को भारत सरकार को भेजा जायेगा

चिकित्सा शिक्षा का भारतीय प्रारूप तैयार करने के लिए केजीएमयू में देश-प्रदेश के कई चिकित्सा संस्थानों के विशेषज्ञों को आमंत्रित कर उनके सुझाव लिए जा चुके है और अब इन सुझावों को भारत सरकार को भेजा जायेगा, जिससे देश में नई चिकित्सा शिक्षा का प्रारूप तैयार किया जा सकें।

नई चिकित्सा शिक्षा के प्रारूप के लिए दिए गए सुझावों के मुताबिक चिकित्सा विद्यार्थियों को उनकी शिक्षा के प्रारम्भिक वर्षों में ही निदान विधियों से परिचित करवाया जायेगा जिससे कि उन्हे सिद्धांतों के व्यावहारिक पक्ष का सही ज्ञान हो सकें। इसके साथ ही छात्रों के समूह बनाकर उन्हें सेवा के लिए किसी बस्ती, गांव या क्षेत्र को गोद लेकर वहां पूर्ण स्वास्थ्य प्रकल्प के संचालन का दायित्व देने की व्यवस्था विकसित की जायेगी।

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इसके साथ ही जिस बस्ती, गांव या क्षेत्र की जिम्मेदारी इन छात्रों को सौंपी जायेगी, उनका एक तय अवधि के बाद स्वास्थ्य परीक्षण किया जायेगा और स्वास्थ्य सुधार के आधार पर छात्र को अंक दिए जायेंगे।

विशेषज्ञों ने अपने सुझाव में प्रमाण आधारित दृष्टि के विकास के लिए छात्रों को उनकी पढ़ाई की शुरूआत से ही अनुसंधान के लिए प्रेरित करने को कहा है और इसके लिए आरएफआरएफ नागपुर के ज्ञान संसाधन केंद्र में आवश्यक शोध क्षेत्र, ज्ञान निधि तथा अध्ययन पाठ का संग्रह विकसित किये जाने की सिफारिश की है।

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चिकित्सक की जीवन शैली समाज के लिए आदर्श

सिफारिश में यह भी कहा गया है कि इस अध्ययन की अवधि केवल सुबह 9 से सायं 5 बजे तक न मानी जाए बल्कि छात्रावास, प्रत्यक्ष कार्यानुभव सहित पूरी दिनचर्या को निर्धारित किया जाये। चिकित्सक की जीवन शैली समाज के लिए आदर्श बनें इसके लिए आहार-शास्त्र जैसे जीवन शैली से जुड़े विषयों का पाठ्यक्रम में शामिल कर सकारात्मक स्वास्थ्य की ओर प्रगति करने का सुझाव भी दिया गया है।

SK Gautam

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