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खड्डा विधायक जटाशंकर त्रिपाठी: निधि में भ्रष्टाचार करने वाले मचाते हैं हल्ला

खड्डा विधायक जटाशंकर त्रिपाठी कहते हैं, रही बात बतौर विधायक मैने क्या किया तो इसका जवाब है, विधायक का मतलब सिर्फ सरकार का हिस्सा है। बदलाव के लिए विधायक नहीं हैं। देखिये, कुशीनगर में बाढ़ के लिए पिछले चार वर्षों में एक रुपये नहीं मिले हैं।

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Published on: 18 Aug 2020 12:10 PM GMT
खड्डा विधायक जटाशंकर त्रिपाठी: निधि में भ्रष्टाचार करने वाले मचाते हैं हल्ला
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खड्डा विधायक जटाशंकर त्रिपाठी: निधि में भ्रष्टाचार करने वाले मचाते हैं हल्ला

पूर्णिमा श्रीवास्तव

बचपन के दिनों में क्रिकेट के मैदान में दिखने वाले जटाशंकर त्रिपाठी युवा अवस्था में सामाजिक कार्यों में सक्रिय दिखने लगे थे। वर्तमान में वे कुशीनगर जिले की खड्डा विधानसभा सीट से भाजपा के विधायक हैं। वे क्षेत्र में भ्रमण के दौरान युवाओं को किक्रेट खेलते देखते हैं, तो खुद को नहीं रोक पाते हैं।

सरोकार से जुड़े मुद्दों पर मुखर

राजनीति में आने से पहले वह सामाजिक कार्यों में जुड़े रहे। भारत-नेपाल बार्डर पर गरीब नेपाली लड़कियों की तस्करी के खिलाफ मिशन के रूप में काम करने वाले जटाशंकर अभी भी सरोकार से जुड़े मुद्दों पर मुखर दिखते हैं।

मुसहरों की समस्या हो या फिर बाढ़ पीड़ितों की, वे दीर्घकालिक और समग्र योजना बनाने पर विश्वास करते है। कुशीनगर में बाढ़ से प्रभावित इलाकों के लिए उन्होंने जो कार्ययोजना बनाई है, उसे पूरे प्रदेश में लागू करने की योजना है। उनका मानना है बाढ़ प्रभावित इलाकों में 40 साल के लिए योजनाएं बननी चाहिए।

हमेशा सक्रियता दिखी

गोरखपुर एम्स आंदोलन हो या अन्ना आंदोलन जटाशंकर की सक्रियता हमेशा दिखी। अपने काम के भरोसे ही वर्ष 2012 में उन्होंने गोरखपुर शहर सीट से स्वराज पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें महज 10 हजार वोटों पर संतोष करना पड़ा।

खड्डा विधायक जटाशंकर त्रिपाठी: निधि में भ्रष्टाचार करने वाले मचाते हैं हल्ला

इसके बाद वह भाजपा के दिग्गज नेताओं के संपर्क में आए और कुशीनगर के खड्डा विधानसभा को अपना कर्मक्षेत्र बनाया। पार्टी ने भी भरोसा जताते हुए टिकट दिया। राष्ट्रीय पार्टी पर चुनाव लड़ने वाले जटाशंकर को अच्छे मतों से जीत मिली।

अफसरों से विरोध

अब वे विधायक निधि से लेकर अफसरों के विरोध को लेकर सुर्खियों में रहते हैं। अपना भारत/ न्यूजट्रैक की गोरखपुर संवाददाता पूर्णिमा श्रीवास्तव ने जटाशंकर से तमाम मुद्दों पर लंबी बातचीत की। उन्होंने सभी मुद्दों पर बेबाकी से जवाब दिया। प्रस्तुत है प्रमुख अंश।

-आप समाजसेवा में तो थे ही, ऐसे में राजनीति में आने की जरूरत क्यो पड़ी?

-ठीक कहा आपने, राजनीति में आने से पहले पूरी तरह समाजसेवा में था। राजनीति भी समाजसेवा का ही अंग है। हो सकता है कि औरो के लिए यह बात गलत हो। बाल अधिकार, पर्यावरण, खेती-किसानी, आपदा, मानव तस्करी के रोकथाम समेत सभी ज्वलंत मुद्दों पर काम किया है।

भ्रम और मिथ तोड़ने राजनीति में आया

समाजसेवा से संतुष्ट था, और हूं भी। लेकिन मुझे समाज में बुद्धिजीवी, प्रमुख किसान, उद्योगपति, एक्टिविस्ट, यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर, व्यापारी समेत समाज के बड़े वर्ग की वो बात ठीक नहीं लगती थी कि राजनीति गंदी चीज है। वहां सामान्य लोग नहीं जा सकते। इस मिथ और भ्रम को तोड़ने के लिए राजनीति में प्रवेश किया।

वर्ष 2012 में स्वराज पार्टी से गोरखपुर सीट से चुनाव लड़ा, सफलता नहीं मिली लेकिन मिशन में जुटा रहा। कुशीनगर के खड्डा विधानसभा से भाजपा ने चुनाव लड़ने का मौका दिया। मजबूती से लड़ा, और रिकार्ड वोटों से जीता।

कोसने वाले राजनीति में आएं

मुझे लगता है कि जो भी लोग राजनीति को बाहर से बैठकर कोसते हैं, गंदा बताते हैं, उन्हें सक्रिय राजनीति में आना चाहिए। संपूर्ण परिवर्तन के प्रणेता के गर्भगृह कहे जाने वाले लोकतंत्र के मंदिर में जाकर गरीबों, वंचितों और शोषितों की आवाज बनना चाहिए और उनके लिए काम करना चाहिए।

-वर्ष 2017 के चुनाव में प्रचंड लहर थी योगी-मोदी की। सभी विधानसभा में भाजपा प्रत्याशी लंबे अंतर से जीते। आप का योगदान?

-नि:संदेह 2017 के चुनाव में देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लहर थी। लेकिन बतौर कार्यकर्ता अपनी मेहनत से वोटों के जोड़ को और बढ़ाया।

खड्डा विधानसभा भाजपा का गढ़ है, बावजूद वहां पार्टी को कम वोट मिलते थे। वर्ष 2012 में वहां भाजपा प्रत्याशी को बमुश्किल दस हजार वोट मिले। 2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रचंड लहर में पार्टी प्रत्याशी को विधानसभा में 65 हजार वोट मिले।

चुनाव लड़ना और जीतना अलग विधा

2017 में मुझे 85 हजार से अधिक वोट मिले। इसमें मेरा भी योगदान है, ऐसा मैं समझता हूं। चुनाव जीतने के लिए साम, दाम, दंड, भेद सभी कुछ अपनाया। मेरा अनुभव है कि चुनाव लड़ना अलग विधा है, जीतना अलग।

-अब आप जनता के बीच हैं। आपको लगता है कि जनता की अपेक्षाएं नेता से बढ़ती जा रही है? आप इसे कैसे देखते हैं।

-लोगों से ही तो लोकतंत्र हैं। ऐसे में लोगों की जनप्रतिनिधियों से अपेक्षाएं होनी ही चाहिए। एक अलग विषय यह हो सकता है कि चुनाव के बाद जनता को लगता है, कि हमनें नेता चुन लिया अब सबकुछ उसी को करना है, इसे जायज नहीं ठहराया जा सकता है।

एक तिहाई निर्दल चुने जाएं

मुश्किल यह है कि जनता और नेता के बीच जैसा संबंध होना चाहिए वह नहीं दिख रहा है। चुनाव में पैसा, परिश्रम, वादा, दावा कर प्रत्याशी जीत हासिल कर लेता है।

80 फीसदी ऐसी जनता है, जो टैक्स नहीं देती है, वह नेताओं पर भरोसा कर लेती है। ऐसी ही परिस्थितियों में हालात बिगड़ते हैं। मेरा मानना है कि जनता को वन थर्ड अच्छे लोगों को निर्दल के लिए रूप में चुनना चाहिए। जिससे मजबूत प्रतिपक्ष खड़ा हो सके।

योजनाओं में भ्रष्टाचार तो उजागर होती है, लेकिन इसके खिलाफ मुखरता नहीं दिखती। ऐसा क्यों?

योजनाओं में भ्रष्टाचार होता है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। भ्रष्टाचार से सभी पीड़ित हैं। सभी इसे बुरा भी मानते हैं। सभी इससे पीड़ित हैं, लेकिन मुश्किल यह है कि कोई मुखर होकर बोलता नहीं है। सारा का सारा दोष सिर्फ नेताओं पर थोप देना ठीक नहीं है।

अधिकारियों से लेकर जनता के बीच खुद का बोध कराना जनप्रतिनिधि के लिए जरूरी है। जनता के बीच रहता हूं। इसे लेकर मेरे अंदर जज्बा और जज्बात दोनों है। यह हर कोई देख रहा है। देख सकता है।

-आप कोरोना संक्रमितों के बीच पहुंचे हैं। कोबिड से बचाव को लेकर सरकार की तरफ से जो सुविधाएं मिलनी चाहिए, वह मिल रही हैं क्या?

-कोरोना संक्रमितों के बीच जान जोखिम में डालकर पहुंचा हूं। इस संदर्भ में बड़े आयाम पर अपनी बात कहना चाहता हूं। बड़े प्लेटफार्म पर बात कर ही बदलाव करा सकते हैं। ऐसे में चुप रहना ही बेहतर है। वैसे कमियों को लेकर बराबर अधिकारियों को निर्देश दे रहा हूं।

-आम चुनाव अब काफी महंगे हो गए हैं। चुनाव आयोग सुधार के नाम पर क्या कर सकता है?

-चुनाव महंगा या सस्ता होना कोई विषय नहीं है। लोकतंत्र की हकीकत यही है कि जो जीतता है, वहीं सिकंदर होता है। चुनाव की पद्धति में एक वोट कम पाने पर सरकार नहीं बना सकते हैं। ऐसे में जीत ही अहम होती है।

मेरा सवाल यह है कि गरीब आदमी को चुनाव को लड़ने से रोका कौन है। चुनाव लड़ने के बाद हार भी गए तो आपकी पहचान बनेगी। अच्छे से लड़े तो लड़ाकू की छवि बनेगी।

चुनाव आयोग ने सभी को लड़ने का अवसर दिया है। प्रचार पर होने वाले बेहताशा खर्च पर अंकुश लगा है। वैसे, सुधार की गुंजाइश तो हमेशा बनी रहती है।

-आपकी नजर में विधायक निधि मददगार है या समस्या?

-विधायक निधि बड़ी समस्या है, इसे पूरी तरह बंद कर देना चाहिए। विधायक निधि के इतर मैंने करोड़ों रुपये का काम क्षेत्र में कराया। निधि में भ्रष्टाचार किसी से छिपा नहीं है।

नेता, नौकरशाही के भ्रष्टाचार के साथ ही कुछ रकम टैक्स के रूप में सरकार के पास वापस चली जाती है। ऐसे में निधि से विकास कार्य नहीं हो पाता है। निधि के काम को लेकर विभाग में अच्छे इंजीनियर तक नहीं मिलते हैं।

जो निधि पर निर्भर है शर्म से डूब मरे

जो विधायक क्षेत्र के विकास के लिए सिर्फ निधि पर निर्भर हो उसे शर्म से डूब मरना चाहिए। एक काकस है जो विधायक निधि का दुरूपयोग करता है।

एक वर्ग ऐसा है जो चुनाव जीतने के चंद दिनों बाद ही क्षेत्र में हल्ला करने लगा कि विधायक के नाम पर कोई पत्थर क्षेत्र में नहीं है। वे काम नहीं कराते हैं। मैने निधि का बेहतर उपयोग करना चाहा, लेकिन यह संभव नहीं हो सका।

मैंने निधि से एम्बुलेंस, सोलर लाइट, कुम्हारों के लिए इलेक्ट्रानिक चॉक आदि मांगा लेकिन मुझे कई बातें सुननी पड़ी। केन्द्र सरकार ने कोबिड को लेकर निधि को रोकने का निर्णय लिया तो मैंने तत्काल इसका स्वागत किया।

-नौकरशाही से आप बराबर असहमति रखते हैं। वे रोड़ा अटकाते हैं। आखिर इतना गुस्सा क्यो है।

-नौकरशाही अपने तंत्र के आगे कुछ नहीं चलने देता हैं। विश्वास, पवित्रता, सोच सभी को लूट लेते हैं। जनता के हित में काम नहीं होगा तो विरोध करना लोकतांत्रिक दायित्व है। जब भी अफसरों से टकराव हुआ, जनता के मुद्दों को लेकर ही हुआ।

कुशीनगर में बाढ़ बड़ी समस्या है। बंधों से लेकर राहत कार्यों को लेकर कितने संतुष्ट हैं?

-कुशीनगर में बाढ़ को लेकर कोई बजट ही नहीं है। अफसरों का नियोजन बाढ़ रोकने के लिए नहीं बल्कि बाढ़ लाने वाला है। कुशीनगर में बाढ़ को लेकर कोई नियोजन नहीं हुआ है।

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ये अफसर 40 साल की प्लानिंग की जगह तत्कालीन व्यवस्था पर विश्वास करते हैं। पिछले चार दशकों में जितनी रकम बंधे पर खर्च हुई, उतने में मजबूत, पक्के बंधे बन जाते है।

कुशीनगर को एक रुपया नहीं

रही बात बतौर विधायक मैने क्या किया तो इसका जवाब है, विधायक का मतलब सिर्फ सरकार का हिस्सा है। बदलाव के लिए विधायक नहीं हैं। देखिये, कुशीनगर में बाढ़ के लिए पिछले चार वर्षों में एक रुपये नहीं मिले हैं।

गोरखपुर में बजट मिला है, लेकिन कुशीनगर में नहीं मिल रहा है। बहुत सारे ऐसे गांव हैं जो नदियों के पेट हैं। वहां विकास कराया जाता है, वह भी बिना नियोजन और प्लानिंग में।

बाढ़ के साथ जीना, रहना एक कला है। इसे नए सिरे से डिजाइन किया है। बाढ़ प्रभावित गांवों में हैंडपंप, वाटर सप्लाई, शौचालय, आगनबाड़ी, स्कूल बिल्डिंग को सतह से छह से आठ फिट की ऊंचाई पर स्थापित करने की कार्ययोजना तैयार की गई है। इसे प्रदेश के सभी जिलों में लागू कराने की कोशिश है।

दलबदल आज के दौर में फिर चर्चा में है। आपकी क्या प्रतिक्रिया है।

-लोकतंत्र के इतिहास में सबसे घटिया हथियार है दलबदल। किसी के भाव, मनोभाव, विचार को बेचने का जरिया है ये। दिक्कत यह है कि पूर्व में सत्ता में रहने वाले राजनीतिक दलों ने यही सिखाया है।

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जब पार्टी के नाम पर मुझे वोट मिला है, तो उसे बेचने का अधिकार मेरा कैसे हो सकता है। दलबदल करने वाले अपने वोट का, जन के भरोसे की हत्या कर रहे हैं।

जीवन का वह पल जिससे सबसे अधिक खुश हुए हों।

-न कभी बहुत खुश होता हूं, न कभी दुखी। हॉ, रोज खुशी का अलग एकांउट लिखने की कोशिश करता हूं। एकाउंट हंसने का लिखिये। दुख वाली बात से कोई लेना और देना नहीं रखना चाहता हूं।

परीक्षा और प्रतीक्षा झेल नहीं पाता है। कोबिड अस्तपाल से लौट कर कोरोना को परास्त कर रहा हूं। मैं संक्रमितों से अस्तपाल में मिलने गया। इससे अधिक खुशी कुछ और नहीं हो सकती है।

राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र क़ायम है क्या? इस पर आपकी क्या राय है?

-भाजपा में आंतरिक लोकतंत्र पूरी तरह है। पार्टी में लोकतंत्र का ही नतीजा है कि मेरे जैसे कार्यकर्ता को चुनाव लड़ने का मौका मिला। विधानसभा क्षेत्र में किसी बात पर असहमति होती है, तो अपने प्रमुख नेताओं को जरूर बताता हूं।

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वे हमारी बातों को सुनते हैं, समस्याओं को दूर करने का भरोसा देते हैं। पिछले दिनों सांसद के दावे पर फेसबुक पर अपनी असहमति जताई थी।

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