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झांसी: जिम्मेदारों की लापरवाही का खामियाजा भुगत रहे बच्चे, सच जान भर आएंगी आंखें

कहने को तो सरकार ने श्रमिकों के लिये कई कल्याणकारी योजनाएं चलायीं हैं, वहीं हर बच्चे को पढ़ाने की बात कही है, परंतु धरातल पर यह दावे और योजनाएं कहीं दिखाई नहीं देती हैं।

Dharmendra kumar
Published on: 4 March 2021 9:58 AM GMT
झांसी: जिम्मेदारों की लापरवाही का खामियाजा भुगत रहे बच्चे, सच जान भर आएंगी आंखें
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निर्माणाधीन अटल एकता पार्क में काम करने वाले मजदूरों और उनके परिवारों की दशा बहुत खराब है। धूप में तपती छोटी-छोटी झोपड़ियों में दम सा घुटता है।

झांसी: जेडीए के निर्माणाधीन अटल एकता पार्क में काम करने वाले मजदूरों और उनके परिवारों की दशा बहुत खराब है। धूप में तपती छोटी-छोटी झोपड़ियों में दम सा घुटता है। माता-पिता जब मजदूरी करने जाते हैं तो उनके बच्चे झोपड़ी में अकेले होते हैं और भूख-प्यास से बिलबिलाते हैं। यहां बच्चों को पढ़ाने, उनके मनोरंजन या खेलने की कोई व्यवस्था नहीं है। जब हमने यहां बच्चों से बातचीत की तो बच्चों ने मासूमियत के साथ कहा कि उनकी भी पढ़ने की इच्छा है पर उन्हें स्कूल में पढ़ायेगा कौन?

कहने को तो सरकार ने श्रमिकों के लिये कई कल्याणकारी योजनाएं चलायीं हैं, वहीं हर बच्चे को पढ़ाने की बात कही है, परंतु धरातल पर यह दावे और योजनाएं कहीं दिखाई नहीं देती हैं। इसकी वजह है कि अटल एकता पार्क में काम करने वाले मजदूरों को किसी भी योजना का लाभ नहीं मिला है, वहीं इनके बच्चे पढ़ाई से वंचित हैं। बच्चे दिन भर निर्माणाधीन भवन में यहां-वहां घूमते नजर आते हैं। मैले-कुचैले कपड़ों में यह नौनिहाल जिन्हें हम देश का भविष्य कहते हैं उनकी आंखों में सिवाय निराशा के और कुछ नजर नहीं आता।

यहां धूप में घूम रहे बच्चों से जब यह पूछा गया कि तुम स्कूल जाते हो तो बच्चों ने जो उत्तर दिया वह उत्तर नहीं बल्कि एक सवाल था, बच्चों का कहना था कि उनकी भी स्कूल जाने की इच्छा होती है पर उन्हें पढ़ायेगा कौन? बच्चों का यह सवाल सवाल हमारे नेताओं और सकारी योजनाओं को आइना दिखा रहा है कि तुम भले ही तमाम दावे कर लो पर हकीकत तो यही है।

Jhansi

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मजदूर और उनके बच्चों तक सरकारी योजनाएं पहुंची ही नहीं। वहीं लगता है कि सरकारी विभागों, कार्यदायी संस्थाओं और ठेकेदारों को श्रमिकों के हितों से शायद मतलब कोई मतलब ही नहीं है। जब उनसे सरकार की श्रमिक हित की योजनाओं की बात की जाती है तो वे एक दूसरे के पाले में गेंद डाल देते हैं।

श्रम विभाग कहता है कि हर मजदूर का पंजीकरण कराना अनिवार्य है, तो ठेकेदार कहता है कि उनका व मजदूरों का पंजीकरण है, जबकि काम कर रहे मजदूर का कहना होता है कि उनका पंजीकरण नहीं कराया गया। वहीं जब विभागीय अधिकारियों से पूछा जाता है तो वह कहते हैं कि यह काम ठेकेदार और श्रम विभाग का है। लापरवाही किसी की भी हो पर सच तो यह है कि यहां काम करने वाले किसी भी मजदूर को किसी भी योजना का लाभ नहीं मिला।

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पिंक न सही, अस्थायी टॉयलेट ही बना देते

आश्चर्य की बात तो यह है कि महानगर में जहां महिलाओं के लिए पिंक टॉयलेट बनाकर करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे हैं तो वहीं यहां काम करने वाली श्रमिक महिलाओं के लिए पिंक तो क्या अस्थायी टॉयलेट तक नहीं बनाई गयी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या श्रमिक महिलाओं को सुविधाएं पाने का हक नहीं है?

रिपोर्ट: बीके कुश्वाहा

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