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मजदूरों के लिए इस संस्था ने किया अच्छा काम, उपलब्ध कराई बकरीयां
परमार्थ संस्था के कार्यक्रम संयोजक सिद्धगोपाल का कहना है कि वर्तमान समय में बकरी पालन ही एक ऐसा व्यवसाय है, जो प्रवासीय मजदूरो को तत्कालिक स्तर पर सहायता कर सकता है, जो कम लागत में अधिक मुनाफे की तरफ आश्वस्थ कर सकता है।
झाँसी। कोरोना के कारण हुए सम्पूर्ण लाॅकडाउन के बाद बडे पैमाने पर मजदूर शहर से गांव की तरफ वापिस लौटे है, अब इन मजदूरों केे सामने अपने भविष्य की चिंताऐं है, गांव में इन दिनों मजदूर भविष्य में अपनी आजीविका चलाने को लेकर चिंतित है, गांव में वह तमाम तरह के जतन करकर रोजगार की सम्भावनाओं को तलाश रहे है, क्योंकि कोरोना काल के बाद वह गांव से शहर नहीं जाना चाहते है।
वह गांव में ही रहकर अपने आजीविका के संसाधनों का विकास करना चाहते है। ऐसे में ललितपुर जिले के आदिवासी समुदाय बाहुल्य क्षेत्र तालबेहट में यह प्रवासीय मजदूर पशु पालन से अपनी आजीविका सुनिश्चित करने के लिए सबसे उपयुक्त समझ रहे है, पशु पालन में सबसे ज्यादा ध्यान बकरी पालन पर किया जा रहा है, क्योंकि बकरी पालन बुन्देलखण्ड के भौगोलिक परिस्थिति के हिसाब से सबसे उपयुक्त आजीविका सम्बर्धन संसाधन है।
इस क्षेत्र का एक बडा हिस्सा पठारी है जहां कृषि नहीं हो सकती है, ऐसे क्षेत्र में पशुओं के लिए उपयुक्त चारागाह उपलब्ध होते है, जिससे पशुओं के खाद्यान्न पर भी ज्यादा पैसा खर्च नहीं करना पड़ता है।
मजदूरों को बकरी पालन का लाभ दिया
ऐसे प्रवासीय मजदूरों को स्थानीय संस्था परमार्थ द्वारा प्रति परिवार तीन बकरियां उपलब्ध करायी जा रही है, इन तीन बकरियों के साल भर पालने से लगभग तीस हजार रूपये के फायदे होने की सम्भावना होती है। जिससे प्रवासीय मजदूरों को खेती से भी बडा आजीविका चलाने का स्त्रोत बकरी पालन होता है। अब जो शहर से प्रवासीय मजदूर आये है, उनको संस्थान के द्वारा इस सन्दर्भ में प्रशि़़क्षण भी लिया जा रहा है और बकरी पालन के कार्य को करने के लिए संस्थान के साथ सम्पर्क करकर इस आजीविका के काम से अपने को लाभान्वित करना चाहते है। हनौता गांव के 6 प्रवासीय मजदूरों को बकरी पालन का लाभ दिया गया है।
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बकरी पालन एक लाभकारी व्यवसाय
इस सन्दर्भ में परमार्थ में बकरी पालन योजना की प्रभारी प्राची कलोरिया बताती है कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र में बकरी पालन एक लाभकारी व्यवसाय है, अगर एक किसान तीन बकरियों को 14 महिने तक रखता है तो वह उन बकरियों के माध्यम से 30 से 35 हजार रूपये कमा लेता है। कोरोना महामारी के बाद वापिस आये प्रवासीय मजदूर जिनके पास गांव में आजीविका के संसाधन नहीं है वह लगातार उनसे बकरी पालन करने के लिए सम्पर्क कर रहे है। उनको बकरीपालन करने के लिए प्रशिक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है।
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एक सैकड़ा मजदूरों को बकरियां उपलब्ध करायी
उनको गांव में ही आजीविका के संसाधन उपलब्ध कराने की कोशिश की जा रही है तथा ऐसे मजदूरो की सूची बनायी जा रही है जो भूमिहीन या एक एकड़ से कम जमीन है, ऐसे लोगों की मदद करने की कोशिश की जा रही है। उनके अनुसार उन्होंने अभी तक एक दर्जन से अधिक गांव में लगभग एक सैकड़ा मजदूरों को बकरियां उपलब्ध करायी है।
इन परिवारों को होगा लाभ
परमार्थ संस्था के कार्यक्रम संयोजक सिद्धगोपाल का कहना है कि वर्तमान समय में बकरी पालन ही एक ऐसा व्यवसाय है, जो प्रवासीय मजदूरो को तत्कालिक स्तर पर सहायता कर सकता है, जो कम लागत में अधिक मुनाफे की तरफ आश्वस्थ कर सकता है। उनका कहना है कि बकरी पालन को वैज्ञानिक ढंग से करने की आवश्यकता है, इसके लिए गांव स्तर पर पशु सखी बनाई जाये साथ ही उन्होंने सरकार से मांग की है कि सरकार जो पैसा दे रही है, उस पैसे से अगर प्रवसीय मजदूरों को बकरी उपलब्ध करायी जाये, तो निश्चित तौर से इन परिवारों को लाभ होगा।
रिपोर्टर- बी के कुशवाहा, झाँसी
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