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जहरीली सब्जियां- बढ़ी हैवी मेटल्स की मात्रा, खतरे में झांसी वासी
महानगरों में प्राकृतिक संसाधनों एवं जैव विविधता का बुरी तरह से दोहन किया जा रहा है। जिसकी वजह से यहां की भूमि के साथ हवा और पानी प्रदूषित हो गये हैं।
झांसी: झांसी महानगर सहित देश के तमाम बड़े शहरों के समीपवर्ती क्षेत्रों में उगाई जाने वाली सब्जियां जिनकी सिंचाई गन्दे नाले के पानी से की जाती है उनमें हैवी मेटल्स जैसे आर्सेनिक, कैडमियम, लेड की मात्रा 100 से 200 पीपीएम तक पहुंच गई है। वहीं खेतों में रासायनिक खाद, फसल सुरक्षा रसायन, कीटनाशक आदि के बेतहाशा प्रयोग से स्थिति और भयावह हो गयी है। ऐसे में यह सब्जियां गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के लिये हानिकारक साबित हो रहीं हैं। वहीं शहरों से दूर सामान्य फसलों के उत्पादन में भी फसल सुरक्षा रसायनों का प्रयोग बहुत अधिक मात्रा में किया जा रहा है, ऐसे में इनका सेवन स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक साबित हो सकता है।
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प्राकृतिक संसाधनों एवं जैव विविधता का बुरी तरह से दोहन किया जा रहा है
महानगरों में प्राकृतिक संसाधनों एवं जैव विविधता का बुरी तरह से दोहन किया जा रहा है। जिसकी वजह से यहां की भूमि के साथ हवा और पानी प्रदूषित हो गये हैं। वहीं फसलों के उत्पादन में एवं आधुनिक जीवन शैली में खतरनाक रसायनों का उपयोग बढ़ता जा रहे है। वर्तमान समय में देश की कृषि योग्य भूमियों में, जलाशयों में रसायनों की मात्रा इतनी अधिक बढ़ गयी है कि भूमि और पानी जहरीला होता जा रहा है। इसकी वजह से भूमि एवं पानी मे रहने वाले जीव जंतुओं की बहुत सी प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं।
भोजन एवं पानी में जहर है
देश मे जैविक खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग एवं घरों में पानी को शुद्ध करने के लिए आरओ लगाए जा रहे हैं जोकि इस बात को प्रमाणित करते हैं कि भोजन एवं पानी में जहर है। पेड़ों की संख्या कम होने एवं जंगलों का क्षेत्रफल कम होने साथ ही आधुनिक जीवन शैली में भौतिक संसाधनों की बढ़ती मांग से वायुमण्डल में हानिकारक गैसों की मात्रा बढ़ने से ऑक्सीजन की कमी होती जा रही है,जबकि मनुष्य को शुद्ध ऑक्सीजन, पानी एवं भोजन चाहिए।
vegetable (PC: social media)
व्यवस्था को सुधारने की दिशा में कार्य करना प्रारम्भ करना पड़ेगा
बीते कुछ वर्षों में किये गये सर्वे में पाया गया कि बड़े शहरों के आस पास उगाई जाने वाली सब्जियां जिनकी सिंचाई गन्दे नाले के पानी से की जाती है उनमें हैवी मेटल्स जैसे आर्सेनिक, कैडमियम, लेड की मात्रा 100 से 200 पी पी एम तक पहुंच गई है। इस संबंध में कृषिविद् वी के सचान का कहना है कि भूमि, वायु और जल के प्रदूषित होने से मानव जीवन समस्याओं से घिरता नजर आ रहा है। इसका उपाय सिर्फ यही है कि न केवल किसान को बल्कि हमें भी प्रकृति की व्यवस्था को सुधारने की दिशा में कार्य करना प्रारम्भ करना पड़ेगा।
रसायन आधारित खेती से दूर रहना होगा
जहां तक हो सके हमें रसायन आधारित खेती से दूर रहना होगा। क्योंकि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं जैव विविधता के संवर्धन का काम किसी एक व्यक्ति का नहीं है और न ही कोई एक व्यक्ति इन्हें नष्ट कर रहा है, प्रकृति के यह संसाधन सभी के हैं और इन्हें बचाने की जिम्मेदारी भी सभी की है। हम सभी का लक्ष्य अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाये रखने का है। कल्पना करें कि जब यहां सांस लेने के लिए शुद्ध हवा नहीं होगी, पीने का शुद्ध पानी नहीं होगा, पेट भरने के लिए शुद्ध भोजन नहीं होगा तो उनकी शिक्षा एवं उनके लिए अर्जित की गई सम्पत्ति का वह क्या करेंगे।
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सब्जियां भी गंदे नाले में धोते हैं- महानगरों के समीपवर्ती क्षेत्रों में किसान सिंचाई के लिए गंदे नाले के पानी का उपयोग करने से नहीं चूकते हैं। वहीं खेतों में उगी सब्जियों को भी इसी गंदे पानी से धोकर सीधे बाजार में भेज दिया जाता है। वहीं लोग बाजार से सब्जियां व फल खरीदकर सीधे उपयोग कर लेते हैं, जिससे जहरीले तत्व सीधे उनके शरीर में चले जाते हैं। यही वजह है कि चिकित्सक बार-बार सब्जियों को भली-भांति धोकर उपयोग करने की सलाह देते हैं।
रिपोर्ट- बी.के.कुशवाहा
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