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वटवृक्ष तो हैं कल्याण सिंह, पर फल कहां ?
लखनऊ : पिछले पांच दशकों से यूपी भाजपा की राजनीति में केन्द्र बिन्दु रहे कल्याण सिंह अब एक बार फिर नई भूमिका में है। प्रदेश अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल रहने के बाद अब वह एक सामान्य कार्यकर्ता की भूमिका में इस बार सक्रिय हुए हैं। कहने को भले ही वह सामान्य कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने पार्टी की सदस्यता ली हो पर इतना तो तय है कि वह इस बार वह संगठन और सरकार दोनों में संरक्षक की ही भूमिका निभाने के लिए सक्रिय हुए हैं। वैसे, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 87 वर्षीय कल्याण सिंह का कद भले ही पार्टी में काफी बड़ा हो पर अब पार्टी में उनकी वह उपयोगिता नहीं रही जो तीन दशक पहले करती थी।
बहरहाल, भाजपा की सदस्यता लेने के बाद कल्याण सिंह ने स्पष्ट किया कि वो 2022 के विधानसभा चुनाव में भूमिका निभाने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि कई वर्षों की लम्बी यात्रा के बाद अब भारतीय जनता पार्टी बहुत आगे बढ़ चुकी है। यह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भी बन गई है। उन्होंने कहा कि जिस तरह केंद्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व का कोई विकल्प नहीं है उसी तरह उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का कोई विकल्प नहीं है। कल्याण सिंह ने साफ किया कि उन्हें अब चुनाव नहीं लडऩा है। 'अब एक बार फिर भाजपा सदस्य के रूप में पार्टी की सेवा करूंगा।'
माना जा रहा है कि कल्याण सिंह की इस बार की सक्रियता इस बात को लेकर भी है कि वे अपने पुत्र राजबीर सिंह को अपना उत्तराधिकारी के तौर अपने जैसा ही रुतबा दिलाना चाहते है। राजबीर सिंह के पुत्र संदीप सिंह तो इस समय योगी सरकार में राज्यमंत्री है लेकिन राजबीर सिंह का केन्द्र में मंत्री न बन पाने की कसक पूरे कुनबे में है। राममंदिर आंदोलन में सक्रिय किरदार रहे कल्याण सिंह के बारे में एक बात और कही जा रही है कि वो अब किसी संवैधानिक पद पर नहीं हैं। अयोध्या मसले पर कोर्ट में चल रहे केस में जब तारीखें पड़ेंगी तो कल्याण सिंह पेशी पर आएंगे। इससे मंदिर निर्माण का माहौल बन सकता है।
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क्या है लोगों की राय
भाजपा नेता बी.डी. राय कहते हैं कि कल्याण सिंह के बिना तो भाजपा की कल्पना ही नहीं की जा सकती। हम लोगों ने उनके सान्निध्य में राजनीति का ककहरा सीखा है। रामजन्मभूमि आंदोलन कल्याण सिंह की ही देन है उनके अनुभव का लाभ पार्टी कार्यकर्ताओं को मिलेगा। मुस्लिम बुद्विजीवी नादिर वहाब का कहना है कि मुस्लिम समाज अभी बाबरी मस्जिद विध्वंस को भूला नहीं है। मोदी के आने के बाद इसे भूलने की कोशिश कर रहा था लेकिन अब कल्याण सिंह के फिर से सक्रिय होने से सूखे घाव एक बार फिर हरे हो सकते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल का कहना है कि कल्याण सिंह ने पार्टी को काफी मजबूत किया है। उनकी हिन्दूवादी छवि के कारण ही भाजपा को इसका लाभ मिला है। अयोध्या पर यदि निर्णय आता है और कोई आंदोलन भी होता है तो कल्याण सिंह की इसमें महती भूमिका हो सकती है। वरिष्ठ पत्रकार व लेखक डॉ. दिलीप अग्हिोत्री का कहना है कि कल्याण सिंह रामजन्मभूमि आंदोलन के प्रतीक हैं। उनके आने से नई पीढ़ी को उनके विचारों का लाभ मिलेगा। कभी भाजपा के नेता रहे आई.पी. सिंह का कहना है कि कल्याण सिंह के भाजपा में सक्रिय होने से पार्टी को कुछ लाभ नहीं मिलने वाला। अस्वस्थता के चलते अब उन्हें पूरी तरह से आराम करना चाहिए। जब आडवाणी और विनय कटियार किनारे हैं तो कल्याण सिंह के बारे में कुछ कहना तर्कसंगत नहीं होगा। कल्याण ङ्क्षसंह सिर्फ अपने परिवार के दबाव में आकर ऐसा कर रहे हैं।
गवर्नर पद से हटने के बाद कई नेता लौटे हैं राजनीति में
लम्बे राजनीतिक जीवन के बाद राज्यपाल बने भाजपा के कई बुजुर्ग नेता फिर सक्रिय राजनीति में आने को तैयार हैं। जिनमें कल्याण सिंह और केशरी नाथ त्रिपाठी तथा हाल ही में यूपी के गवर्नर रहे रामनाईक का नाम प्रमुख है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के लिए इन नेताओं का अचानक सक्रिय होना किसी पहेली से कम नहीं है। यूपी के पांच साल साल तक राज्यपाल रहे रामनाईक ने सेवानिवृत होने के दूसरे दिन ही मुंबई पहुंचते ही भाजपा की प्राथमिक सदस्यता ले ली। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रहे केशरी नाथ त्रिपाठी ने भी नाईक की राह पर चलते हुए राज्यपाल के पद से हटते ही पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ले ही। ऐसा ही कल्याण सिंह ने किया है। वैसे, कांग्रेस में मोतीलाल वोरा, सुशील कुमार शिंदे और अर्जुन सिंह ने भी राज्यपाल पद से हटने के बाद सक्रिय राजनीति में वापसी की थी।