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सात समंदर पार बनारस: यहाँ पहुंची देव दीपावली की धमक, ऐसे हुई इसकी शुरुआत

उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर देव दीपावली के दिन पूरा देव लोक उतर आता है। पंचगंगा घाट सहित छह घाटों से शुरू हुई देव दीपावली आज पूरी दुनिया के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुकी है।

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Published on: 30 Nov 2020 5:47 AM GMT
सात समंदर पार बनारस: यहाँ पहुंची देव दीपावली की धमक, ऐसे हुई इसकी शुरुआत
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काशी में इस बार देव दीपावली का कुछ ज्यादा ही दिख रहा है क्योंकि इस बार देव दीपावली का आकर्षण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी गंगा तब खींच लाया है।

वाराणसी। काशी में देव दीपावली का उत्सव और महापर्व का रूप ले चुका है और इसकी धमक सात समंदर पार तक पहुंच चुकी है। माना जाता है कि उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर देव दीपावली के दिन पूरा देव लोक उतर आता है। पंचगंगा घाट सहित छह घाटों से शुरू हुई देव दीपावली आज पूरी दुनिया के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुकी है। काशी में इस बार देव दीपावली का कुछ ज्यादा ही दिख रहा है क्योंकि इस बार देव दीपावली का आकर्षण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी गंगा तब खींच लाया है।

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महारानी अहिल्याबाई ने बनवाया था दीपों का स्तंभ

जानकारों का कहना है कि महारानी अहिल्याबाई ने सबसे पहले 1785 के आसपास पंचगंगा घाट पर एक हजारा और 500 दीपों का स्तंभ बनवाया था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन इन स्तंभों पर दीप जलाए जाते थे।

diwali kashi फोटो-सोशल मीडिया

देव दीपावली और गंगा आरती की शुरुआत इसी घाट से मानी जाती है। वैसे कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि 14वीं सदी से ही गंगा किनारे दीपोत्सव के प्रमाण मिलते हैं। बाद के दिनों में दीपोत्सव की इस परंपरा को सहेजने और इसे व्यापक स्वरूप देने के प्रयास किए गए।

काशी नरेश ने भी ली आयोजन में दिलचस्पी

बाद में काशी नरेश विभूति नारायण सिंह ने भी इसमें दिलचस्पी ली और 1983 में काशी नरेश, पंडित विजय शंकर उपाध्याय और अवध बिहारी लाल ने भव्यता के साथ इसे शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पहली बार 20000 दीपों से पूरे घाट को भव्य तरीके से सजाया गया। फिर 1986 में पंचगंगा घाट सहित कुल 6 घाटों पर दीप जलाकर देव दीपावली को और व्यापक बनाने का प्रयास किया गया।

kashi dev diwali फोटो-सोशल मीडिया

इस तरह हुआ आयोजन का विस्तार

1987 में श्रीमद् पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य ने भी देव दीपावली महोत्सव में दिलचस्पी ली और इसे बढ़ाने का प्रयास किया। लोगों के सहयोग और उनके संरक्षण में आसपास के कई घाटों पर देव दीपावली उत्सव का विस्तार हुआ और 6 की जगह 12 घाट दीपों की रोशनी से जगमगा उठे।

अगले साल यानी 1988 में देव दीपावली का यह उत्सव 24 घाटों तक फैल चुका था। बाद के दिनों में लगातार देव दीपावली के इस उत्सव के प्रति लोगों का उत्साह बढ़ता गया और फिर इसकी धमक सात समंदर पार तक पहुंच गई।

dev deepawali फोटो-सोशल मीडिया

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अब तो पूरी दुनिया देव दीपावली की दीवानी

अब तो देव दीपावली का आकर्षण पूरी दुनिया तक फैल चुका है। देव दीपावली के दिन काशी की स्थिति यह हो जाती है कि यहां किसी भी होटल, लॉज और गेस्ट हाउस में कमरा तक मिलना मुश्किल हो जाता है।

कोरोना के संक्रमण के कारण इस बार ज्यादा विदेशी पर्यटक तो नहीं आए हैं, नहीं तो हर साल देव दीपावली को देखने के लिए काफी संख्या में विदेशी पर्यटक भी पहुंचते रहे हैं।

अब इस उत्सव का स्वरूप इतना व्यापक हो चुका है कि न केवल काशी में गंगा घाट दीपों की रोशनी से जगमगा उठते हैं बल्कि शहर के अन्य घाटों और कुंडों पर भी दीप जलाकर लोग अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं।

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रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी

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