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नैमिषारण्य तीर्थ का उद्धार होगा
नारदानंद सरस्वती जी महाराज का प्रयागराज के कुम्भ महापर्व पर विशाल शिविर लगा करता था। उनसे मेरा अच्छा परिचय था तथा मैंने उनके कई साक्षात्कार लिए थे।
श्याम कुमार
लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी के वरिश्ठ राजनेता डॉ. अम्मार रिजवी का फोन आया कि आठ मार्च को वह सीतापुर जनपद में स्थित अपने महमूदाबाद क्षेत्र में महत्वपूर्ण आयोजन कर रहे हैं, जिसमें दिन में संगोष्ठियां आदि होंगी तथा अपरान्ह चार बजे मुख्य कार्यक्रम होगा। मुख्य कार्यक्रम में मुख्य अतिथि केरल के राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान होंगे। उन्होंने आयोजन में मुझसे अवश्य आने का अनुरोध किया। आठ मार्च को सूक्ष्म अल्पाहार लेकर एक अन्य पत्रकार के साथ मैंने महमूदाबाद के लिए प्रस्थान किया। वहां पहुंचने पर चूंकि मुख्य कार्यक्रम में विलम्ब था, इसलिए हमने सुविख्यात तीर्थ नैमिषारण्य के दर्शन कर लेना उचित समझा। नैमिषारण्य भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख केंद्र है, जिसे जगदाचार्य स्वामी नारदानंद सरस्वती जी ने यथासंभव संवारने का प्रयास किया था।
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नारदानंद सरस्वती जी महाराज का प्रयागराज के कुम्भ महापर्व पर विशाल शिविर लगा करता था
नारदानंद सरस्वती जी महाराज का प्रयागराज के कुम्भ महापर्व पर विशाल शिविर लगा करता था। उनसे मेरा अच्छा परिचय था तथा मैंने उनके कई साक्षात्कार लिए थे। उनके प्रमुख शिष्य स्वामी विवेकानंद सरस्वती जी ने नैमिशारण्य में भव्य देवपुरी मंदिर का निर्माण कराया। उन्होंने एक हजार शिवलिंगों की भी स्थापना की तथा सरस्वती सरोवर का निर्माण कराया। कई वर्श पूर्व मैं नैमिषारण्य गया था, इसलिए डॉ. अम्मार रिजवी का आमंत्रण पाकर महमूदाबाद की यात्रा में उस प्राचीन तीर्थस्थल पर पुनः दर्षनार्थ जाने की इच्छा बलवती हो गई।
Naimisharanya (PC: social media)
वह दिन में तीन बार अपना रूप परिवर्तित करती है
कथा है कि प्रयागराज के संगम तट पर ऋशि-मुनियों ने भगवान विश्णु को प्रसन्न कर उनसे स्वाध्याय एवं साधना हेतु उपयुक्त स्थान बताने का अनुरोध किया। भगवान विश्णु ने अपने चक्र को सक्रिय कर ऋशि-मुनियों से कहाकि जहां पर इस चक्र की प्रेरणा मिले, वही अपेक्षित उपयुक्त स्थान होगा। भगवान विश्णु का चक्र आगे चलते-चलते जिस स्थान पर नैमिषीर्ण हुआ, उसी स्थान को ऋशि-मुनियों ने उपयुक्त मानकर उसका नामकरण नैमिषारण्य किया। मान्यता है कि श्री चक्रतीर्थ में प्रतिदिन पृथ्वी के सभी तीर्थ एक बार उपस्थित होते हैं। नैमिषारण्य में 88 हजार ऋशियों ने चक्रतीर्थ पर भगवान भूतेष्वर नाम से भगवान शिव की प्रतिश्ठा की थी। उस प्रतिमा की विषेशता है कि वह दिन में तीन बार अपना रूप परिवर्तित करती है।
नैमिषारण्य महर्षि वेदव्यास की तपस्थली रहा है
नैमिषारण्य महर्षि वेदव्यास की तपस्थली रहा है तथा यहीं उन्होंने पुराणों की रचना की थी। यहां अतिप्राचीन वटवृक्ष है, जिसके नीचे बैठकर महर्शि वेदव्यास साधना करते थे। महर्शि सूत जी ने नैमिशारण्य में 88 हजार ऋशियों को 18 पुराणों की कथा सुनाई थी तथा यह स्थल सूत गद्दी के रूप में प्रसिद्ध है। नैमिषारण्य में नर्बदा नामक लघु सरिता के तट पर श्रृंगी ऋशि की तपस्थली थी। माना जाता है कि पांडवों ने नैमिशारण्य में तपस्या की थी।
भगवान राम ने नैमिशारण्य में दश्वाशमेघ यज्ञ किया था
उक्त स्थान सुविख्यात हनुमानगढ़ी परिसर में स्थित है। यह भी मान्यता है कि वहां पांडवों ने एक कुंए का निर्माण किया था तथा महावारुणी पर्व पर उस कुंए का जल दूध हो जाता है। भगवान राम ने नैमिषारण्य में दश्वाशमेघ यज्ञ किया था, जिसके अंत में महर्शि वाल्मीकि के निर्देश पर लवकुश ने भगवान राम के समक्ष सम्पूर्ण रामायण का पाठ किया था। महर्शि दधीचि ने नैमिषारण्य में अपना अस्थिदान किया था।
नैमिषारण्य क्षेत्र में जिस प्रकार हनुमानगढ़ी स्थान का बहुत अधिक महत्व है, उसी प्रकार वहां आदिषक्ति मां ललिता देवी का भी अत्यंत महत्व है। मां ललिता देवी की देशभर में ख्याति है। नैमिशारण्य में उनका भव्य मंदिर बना हुआ है तथा नवरात्र पर वहां बड़ा मेला आयोजित होता है, जिसमें देषभर से भक्तों का आगमन होता है।
अंधेरा हो गया था तथा हमें लखनऊ लौटना जरूरी थी
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार नैमिषारण्य तीर्थ के महत्व को देखते हुए बड़े पैमाने पर उसका कायाकल्प करने जा रही है। नैमिषारण्य के दर्षनोपरांत हम महमूदाबाद लौटे और डॉ. अम्मार रिजवी के आयोजन में सम्मिलित हुए। चूंकि अंधेरा हो गया था तथा हमें लखनऊ लौटना जरूरी थी, इसलिए हमने कार्यक्रम के पूर्ण होने की प्रतीक्षा नहीं की तथा लखनऊ के लिए प्रस्थान कर दिया। दिनभर कुछ खाया नहीं था, इसलिए भूख लगी थी। अतः रास्ते में एक जगह रुककर कुछ खाया। महमूदाबाद में डॉ. अम्मार रिजवी ने अपनी षिक्षण-संस्था का विषाल भवन बनवाया है तथा वहां मौलाना आजाद विश्वविद्यालय खोला जाना प्रस्तावित है।
Naimisharanya (PC: social media)
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डॉ. अम्मार रिजवी के आयोजन में बहुत बड़ी संख्या में प्रतिश्ठित मुसलिम एवं विद्वान एकत्र थे। कट्टरपंथी मुसलिम दीप-प्रज्ज्वलन पर आपत्ति किया करते हैं, लेकिन डॉ. अम्मार रिजवी के आयोजन में यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि आयोजन के आरम्भ में मंचासीन सभी लोगों ने दीप-प्रज्ज्वलन किया।
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