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जानिए पान के बारे में ये रहस्यमयी जानकारी, जिसका शिवपुराण में है उल्लेख
पान का भारत के इतिहास, संस्कृति तथा धार्मिक रीति रिवाजों से गहरा सम्बंध है। आरम्भ में पान का केवल औषधीय एवं धार्मिक महत्व था। धीरे-धीरे जन सामान्य ने इसे मुख रंजक और मुख्य शोधक के रूप में अपना लिया।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: पान का भारत के इतिहास, संस्कृति तथा धार्मिक रीति रिवाजों से गहरा सम्बंध है। आरम्भ में पान का केवल औषधीय एवं धार्मिक महत्व था। धीरे-धीरे जन सामान्य ने इसे मुख रंजक और मुख्य शोधक के रूप में अपना लिया। शिवपुराण में अनेक स्थलों पर ताम्बुल और पुंगीफल का इसी रूप में उल्लेख हुआ है। आदर-सत्कार के प्रतीक के रूप में पान का उल्लेख पुराणों में भी है। वात्सायन के कामसूत्र व रघुवंश आदि ग्रंथों ने ताम्बुल शब्द का प्रयोग है। कथा सरित्सागर तथा बृहत्कथा श्लोक में उल्लेख है कि कौशाम्बी नरेश उदयन ने ताम्बुल लता को नागों से दहेज में प्राप्त किया था। जगनिक रचित लोक काव्य आल्हा खण्ड के अनुसार विख्यात वीर आल्हा ऊदल युद्ध संकल्पों हेतु पान का बीड़ा उठाकर दृढ़-प्रतिज्ञ होते थे। महोबा में पान की खेती का श्रेय चन्देल शासकों को जाता है।
15 सौ वर्ग मीटर क्षेत्रफल में पान की फसल
उत्तर प्रदेश में गुणवत्ता युक्त पान उत्पादन प्रोत्साहन योजनान्तर्गत बरेजा (भीट) निर्माण के 15 सौ वर्ग मीटर क्षेत्रफल में पान की फसल करने वाले किसानों को लागत का 50 प्रतिशत या रूपये 75680 अनुदान दिया जा रहा है। उसी तरह एक हजार वर्गमीटर क्षेत्रफल में पान की फसल करने के लागत का 50 प्रतिशत या 50453 रूपये अनुदान दिया जाता हैं।
उत्तर प्रदेश में व्यवहारिक दृष्टि से इसे बनारस, गोरखपुर, लखनऊ, महोबा, ललितपुर इत्यादि जिलों में उगाया जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पान की केवल 5 या 6 किस्में होती है जैसे- बंगला, देशावरी, कपूरी, मीठा, साॅची आदि हैं। उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य होने के साथ ही औद्यानिक फसलों में पान उत्पादन में अपना विशेष महत्व रखता है जिसमें महोबा का पान उत्पादन के क्षेत्र में पहला स्थान है।
मुगल दरबार को पान प्राप्त होने का उल्लेख
आइने अबकारी में सूबा इलाहाद के अन्तर्गत महोबा मुहाल से भू-राजस्व के रूप में मुगल दरबार को पान प्राप्त होने का उल्लेख है। पान खाने से वायु नही बढ़ता कफ मिटता है, कीटाणु मर जाता है, मुंह से दुर्गन्ध नही जाती, मुख की शोभा बढ़ती है, मुंह का मैल दूर होता है। ये पान के ऐसे गुण है, जो व्यक्ति के लिए लाभदायक माने गये है।
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पाइपर बीटल पान का लेटिन नाम
पान एक द्विबीजपत्री बेल है, पाइपर बीटल इसका लेटिन नाम है, और यह पाइपेरेसी कुल का सदस्य है। डिकैनडल (1884) के अनुसार पान की जन्म-भूमि मलाया प्रायदीप समूह है, जहाॅ लगभग 2000 वर्षो से पान की खेती की जाती है। कुछ मत है कि पान मध्य तथा पूर्वी मलेशिया का पौधा है। भारत में पान के उद्गम का श्रोत तथा खेती कब शुरू हुई इसका अनुमान कठिन है फिर भी ऐसा सिद्ध हुआ है कि यह भारत के पश्चिमी भाग में सर्वप्रथम दक्षिण एशिया से आया है। पान के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु, विस्तृत छायादार और नम वातावरण उपलब्ध होना चाहिए। देश के पूर्व तथा पश्चिमी भागों के उन क्षेत्रों में जहां वर्षा ज्यादा तथा सामान्य रूप में होती है, वहां इसकी पैदावार अच्छी होती है।
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ये राज्य इसी व्यवसाय में लगे है
हमारे प्रमुख कृषि उद्योगों में पान की खेती का एक प्रमुख स्थान है और कुछ इलाकों में यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि खाद्य या दूसरी नकदी फसलें। देश में आजकल यह लगभग 50 हजार हैक्टेयर में उगाया जाता है। और उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में लाखों लोग इसी व्यवसाय में लगे है, हर वर्ष अनुमानतः आठ सौ करोड़ रूपये के मूल्य के पान का उत्पादन होता है।उत्तर प्रदेश के कई जिलों में गर्मी और शुष्क हवाओं तथा जाड़ो में तेज ठंडक और पाले के कारण इसकी खेती भीट (बरेजा) में करते है।