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कुंती ने की थी तामेश्‍वरनाथ की स्‍थापना

उत्‍तर प्रदेश के संत कबीर नगर जनपद मुख्‍यालय से करीब आठ किलेमीटर दक्षिण की ओर खलीलाबाद-घनघटा मार्ग पर स्थित तामेश्‍वर नाथ महादेव का मंदिर करोड़ों शिवभक्‍तों की आस्‍था का केंद्र है।

Shreya
Published on: 10 Feb 2020 7:52 AM GMT
कुंती ने की थी तामेश्‍वरनाथ की स्‍थापना
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कुंती ने की थी तामेश्‍वरनाथ की स्‍थापना

दुर्गेश पार्थसारथी

लखनऊ: उत्‍तर प्रदेश के संत कबीर नगर जनपद मुख्‍यालय से करीब आठ किलेमीटर दक्षिण की ओर खलीलाबाद-घनघटा मार्ग पर स्थित तामेश्‍वर नाथ महादेव का मंदिर करोड़ों शिवभक्‍तों की आस्‍था का केंद्र है। यहां स्थित स्‍वयंभू शिवलिंग के दर्शन-पूजन के लिए श्रावण और फाल्‍गुन अर्थात महाशिवरात्रि के दिन भक्‍तों की भारी भीड़ होती है।

यहां जलाभिषेक के साथ मुंडन एवं अन्‍य संस्‍कार भी संपन्‍न किए जाते हैं। शिवरात्रि एवं सोमवार को अद्धरात्रि के बाद शिवभक्‍तों की भीड़ जल, अक्षत, पुष्‍प, भंग, धतूरा आदि से भगवान शंकर का जलाभिषेक करती है। कई भक्‍त लेटकर दूरी तय करके मंदिर तक पहुंचते हैं। मान्‍यता है कि श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान नामेश्‍वरनाथ की पूजा करने से मनोकामनाएं अवश्‍य पूरी होती हैं।

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महाभारत से जुड़ी है कथा

जनश्रुतियों के अनुसार महाभारतकाल में पांडवों ने अज्ञातवास के समय एक वर्ष की अवधि विराटनगर में व्‍यतीत की थी। पांडव छद्म नामों से महाराजा विराट के यहां विभिन्‍न कार्यों के लिए नियुक्‍त थे। छद्म वेशधारी युधिष्ठिर महाराजा विराट को चौसर खेलाते थे। अर्जुन वृहनला के रूप में राजकुमारी उत्‍तरा को नृत्‍य और संगीत सिखाते थे। जबकि भीमसेन पाकशाला में रसोइया और नकुल व सहदेव घुड़साल संभालते थे। तब पांडवों ने इसी स्‍थल पर वन प्रांत में स्थित शिवलिंग की पूजा की थी। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि भगवान तामेश्‍वरनाथ की स्‍थापना पांडवों की माता कुंती ने की थी।

शिवलिंग के बारे में किंबदंती

तामेश्‍वरनाथ महादेव के बारे में प्रचलित किंतदंतियों के अनुसार करीब तीन सौ साल पहले तामा गांसव, जिसे ताम्रगढ़ भी कहा जाता है, के समीप एक टीले में तेनुआ ओझा गांव की एक बुढ़ी महिला ने नैहर जाते जाते समय मार्ग से थोड़ा हट कर जमीन में उभरे हुए भगवान तामेश्‍वरनाथ के शिवलिंग को पहली बार देखा था। जिसके समीप कमल से युक्‍त भव्‍य सरोवर था, जो आज भी स्थित। उस महिला ने गांव वासियों को शिवलिंग की जानकारी दी। बताया जाता है कि जब लोगों ने यह जानना चाहा कि यह शिवलिंग जमीन से निकला है या किसी ने ऊपर से रख दिया है। किंतु लोगों के बहुत प्रयात्‍न के बाद भी यह शिवलिंग टस से मस नहीं हुआ।

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यहीं पर हुआ गौमबुद्ध का मुंडन संस्‍कार

जनश्रुतियों के अनुसार तामेश्‍वरनाथ महादेव मंदिर में ही गौतमबुद्ध का मुंडन संस्‍कार हुआ था। कहा जाता है कि कपिलवस्‍तु के महाराजा शुद्धोधन के पुत्र राजकुमार सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) का मुंडन संकार भी इसी स्‍थान पर हुआ था। उस समय कुदवा नाला के पास उनके सैनिक ठहरे थे। यह स्‍थान मौजूदा समय में चकदेई गांव के दक्षिण में स्थित है। राज्‍य का परित्‍याग कर सिद्धार्थ धर्मसिंहवा कोपिया, अनुपिया होते हुए आमी नदी को पार कर उतरावल में कुछ देर रुके थे। इसके बाद महाथान होते हुए पुन: तामेश्‍वरनाथ के रास्‍ते से सारनाथ की ओर प्रस्‍थान कर गए।

खुदाई में मिली है बुद्ध प्रतिमा व सिक्‍के

यही इस स्‍थल की धार्मिक आस्‍था के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्‍व भी है। मंदिर के आसपास के क्षेत्रों में हुई पुरातात्विक खुदाई से से दो हाजार साल पुरानी बुद्ध कालीन मूर्तियां, कुषाणकालीन सिक्‍के और धर्म चक्र चिह्न्‍युक्‍त पक्‍की मिट्टी के अवशेष भी मिले हैं। जो इस क्षेत्र की ऐतिहासक महत्‍वा को रेखांकित करते हैं।

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