मजदूर दिवस पर छलका दर्द: लॉकडाउन ने छीना रोजगार, नहीं मिल रहा कोई काम-धंधा

महामारी की वजह से उत्तर प्रदेश में लाखों मजदूरों व युवाओं का काम-धंधा छिन गया। लॉकडाउन का दूसरा महीना चल रहा है, ज्यादातर बेरोजगार होकर घर बैठे हैं।

Shivani Awasthi
Published on: 1 May 2020 3:44 AM GMT
मजदूर दिवस पर छलका दर्द: लॉकडाउन ने छीना रोजगार, नहीं मिल रहा कोई काम-धंधा
X

कन्नौज। एक मई यानि आज मजदूर दिवस है। लेकिन लॉकडाउन की वजह से आज का दिन मजदूरों के लिए मुसीबतों भरा है, जो हमेशा याद रहेगा। इस बार कोरोना वैश्विक महामारी की वजह से उत्तर प्रदेश में लाखों मजदूरों व युवाओं का काम-धंधा छिन गया। लॉकडाउन का दूसरा महीना चल रहा है, ज्यादातर बेरोजगार होकर घर बैठे हैं। ये लोग अपने-अपने गांव से आंखों में बड़े-बड़े सपने लेकर दूर के शहरों में गए थे। लेकिन जब महामारी की वजह से मुश्किल आई तो सपनों की जगह आंखों में मायूसी और परेशानी का बोझ झलकने लगा।

मनरेगा के तहत रोजगार देने के सभी इंतजाम फेल

गांव व कस्बों में वापस आए ज्यादातर लोग बेरोजगार हैं, जो ऐसे ही समय गुजार रहे हैं। कोई उधार ले रहा है तो किसी के पास जमा पूंजी ही खर्च हो गई है। मनरेगा के तहत अब तक करीब 350 नए जॉबकार्ड ही बने हैं, जबकि यूपी के सिर कन्नौज में बाहर से आने वाले करीब 35 हजार लोगों की थर्मल स्क्रीनिंग करने की बात जिला प्रशासन कहता रहा है। जबकि रोजगार देने के सभी इंतजाम जमीन पर फेल दिख रहे हैं। बाहर से लौटे लोगों से बात भी की गई, जिसमें मजदूरों का दर्द झलका।

विधवा बहन रहती मायके में, तीन भाई बेरोजगार हुए

मिरगावां निवासी 20 वर्षीय प्रशांत पाठक ने बताया कि दिल्ली में वह ड्राइवरी का काम करते थे। दुकान से पानी की सप्लाई करने के एवज में सात-आठ हजार रुपए महीने कमा लेते थे। छोटे भाई पियूष व राहुल भी काम में लगे थे, लेकिन अब तीनों लोग बेरोजगार हैं।

ये भी पढ़ेंः कोरोना पर कांग्रेस का हल्लाबोल, मोदी सरकार के खिलाफ ‘हर घर तिरंगा’ अभियान शुरू

घर पर आए हुए एक महीना हो गया, मनरेगा का जॉबकार्ड भी नहीं बना है। परिवार में विधवा बहन और मां-बाप भी हैं, जिनका खर्च तीनों भाई उठाते थे, लेकिन अब पड़ोसियों से उधार मांगकर काम चल रहा है।

दिल्ली में जब काम बंद हो गया, जेब में पैसे नहीं रहे तो मजबूरी में आना पड़ा। 26 मार्च को चले थे, 29 तारीख को घर आ सके। करीब 70-80 किमी पैदल भी चले।

गाँव लौटे, लेकिन जॉबकार्ड न बना, घर पर बेकार बैठे

ब्लॉक सदर कन्नौज क्षेत्र के आसकरनपुर्वा निवासी 35 वर्षीय रोहित यादव ने बताया कि वर्ष 2008 से नोएडा में स्पोर्टस कपड़ा सिलाई का काम कर रहे हैं। शुरुआत चार हजार रुपए से हुई थी, अब 10 हजार मासिक मिल रहे थे। लॉकडाउन की वजह से काम छूट गया और 27 मार्च को घर आए।

ये भी पढ़ेंः छात्रों को वापस लाने के लिए इस नेता ने किया 30 बसों का इंतजाम, बोले- धन नहीं है, पर मन है

करीब 50 किमी पैदल भी चले। ट्रक, बाइक जो भी मिला सहयोग से आ सके। कंपनी में करीब एक महीने की सैलरी भी फंसी है। प्रधान अगर मनरेगा का जॉबकार्ड बनवाएं तो वह काम करने को तैयार हैं। डेढ़ बीघा जमीन ही हिस्से में है, माता-पिता के अलावा पत्नी व दो बेटियां भी हैं।

होली पर घर आया, 20 को दिल्ली पहुंचा तो नही मिली फैक्ट्री में इंट्री

ब्लॉक जलालाबाद क्षेत्र के मिरगांवा निवासी 21 वर्षीय कृष्णा पाठक ने बताया कि वह अपने भाई रवी पाठक के साथ दिल्ली में लोहे का काम करते थे। ओवर टाइम करके आठ-नौ हजार मिल जाते थे। होली पर घर आए थे। 20 मार्च को दिल्ली पहुंचे तो दो दिन बाद जनता कफ्र्यू लग गया। कंपनी ने अंदर नहीं लिया। 25 मार्च को चले थे तो 27 को घर आ पाए। करीब 100 किमी से ज्यादा तो पैदल चलना पड़ा। अब काम ठप है, यहां भी कोई काम नहीं मिला है।

ये भी पढ़ेंः महाराष्ट्र में सियासी संकट! राज्यपाल ने चला बड़ा दांव, चुनाव आयोग से की ये मांग

लॉकडाउन खुले तो कुछ सोचा जाए, गांव में तो मनरेगा का जॉबकार्ड नहीं बना, अगर बनेगा तो काम करेंगे। परिवार में छह-सात सदस्य हैं, खेती भी नहीं है, सब प्राइवेट नौकरी पर निर्भर था। अब परेशान हैं।

पिता-पुत्र हुए बेरोजगार, सिर्फ सरकारी राशन से गुजारा

22 वर्षीय मेराज मूल रूप से तहसील सदर क्षेत्र के मिरगावां निवासी हैं। जयपुर में अपने पिता सेराज के साथ सिलाई का काम करते थे। इससे एक लोगों को छह-सात हजार रुपए महीने का बन जाता था। बताया कि लॉकडाउन में जैसे-तैसे घर आए। करीब 60 किमी पैदल भी चलना पड़ा। 14-14 दिन क्वारंटीन भी रहे, अब घर पर आराम कर रहे हैं, कोई काम धंधा नहीं मिला है।

ये भी पढ़ेंः प्रवासी मजदूर: राज्यों की मांग पर सरकार गंभीर, स्पेशल ट्रेनों पर हो सकता है ये फैसला

कोटेदार के यहां से जो राशन मिल जाता है, फिलहाल उसी से गुजारा कर रहे हैं। मनरेगा जॉबकार्ड के लिए न तो उन्होंने किसी से कहा और न ही कोई पूछने आया।

सिलाई से चलता था परिवार, काम करने वाले चारों लोग खाली हाथ

जयपुर में रहकर सिलाई करके परिवार की जिम्मेदाीर संभालने वाले नूर हसन की आंखों में भी बेबसी है। बताया कि वह तीन भाई व पिता जयपुर में काम करके अपने परिवार के आठ सदस्यों का खर्च चलाते थे। लॉकडाउन के बाद किसी तरह घर आ गए। अब सभी लोग घर पर बेकार ही पड़े हैं। पहले 14 दिन सरकारी स्कूल में क्वारंटीन रहे, बाद में 14 दिन होम क्वारंटीन के लिए बोला गया।

ये भी पढ़ेंः मजदूर दिवस स्पेशल: वो सिर्फ मजदूर नहीं, हमारे इमारतों के रचनाकार भी है…

बाहर रहकर तीन-चार सौ रुपए सिलाई का काम कर प्रतिदिन कमा लेते थे। एक कमरे में सभी सदस्य गांव मिरगावां में रहते हैं। खाने को कुछ नही हैं, न ही किसी अधिकारी या जनप्रतिनिधि ने कोई रोजगार देने का आश्वासन दिया है। बेकार ही गांव में इधर-उधर घूम रहे हैं।

अजय मिश्रा

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

Shivani Awasthi

Shivani Awasthi

Next Story