सिसक रही किसानी: भूमि सुधार में करोड़ों की बाजीगरी, मजदूरी को मजबूर किसान   

कोरोना सक्रमण काल में प्रवासी मजदूरों कि वापसी पर रोजगार के लिये मनरेगा में भूमि समतलीकरण का कार्य शामिल होने से किसानों में एक बार फिर उम्मीद जगी है जो पहले कथित भ्रष्टाचार के कारण रेत के महल कि तरह ढ़ेर हो गई थी।

SK Gautam
Published on: 22 May 2020 8:14 AM GMT
सिसक रही किसानी: भूमि सुधार में करोड़ों की बाजीगरी, मजदूरी को मजबूर किसान   
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शरद चंद्र मिश्रा

बांदा: कृषि सहित विभिन्न विभागों ने भूमि समतलीकरण के नाम पर भले ही 43.56 करोड़ रुपये खर्च कर दिए हों मगर जमीनी हकीकत भयावह आश्चर्यजनक से कम नहीं है। हकीकत की तह चौंका देती है। बशर्ते जानने कि कोशिश कि जाये तो। अब हम आपको हकीकत के एक छोटे हिस्से कि बांदा कहानी से अवगत करायेंगे । इस जिले का मिनी पाठा कहे जाने वाले फतेहगंज में ढाई हजार बीघा से ज्यादा ऊबड़-खाबड़ जमीन वर्तमान में आपको परती दिखाई देगी । कोरोना सक्रमण काल में प्रवासी मजदूरों कि वापसी पर रोजगार के लिये मनरेगा में भूमि समतलीकरण का कार्य शामिल होने से किसानों में एक बार फिर उम्मीद जगी है जो पहले कथित भ्रष्टाचार के कारण रेत के महल कि तरह ढ़ेर हो गई थी।

मजदूरी करने को मजबूर किसान

भूमि समतलीकरण के नाम पर भले ही अब तक करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं, लेकिन फतेहगंज के ज्यादातर छोटे किसानों को ऐसी योजनाओं की जानकारी तक नहीं है। उनकी उबड़-खाबड़ टीलेनुमा जमीन पर न तो खेती हो रही है और न अन्य उपयोग हो पा रहा है । जिले का फतेहगंज क्षेत्र अति पिछड़ा है और पड़ोसी जिले चित्रकूट व मध्य प्रदेश की सीमा पर बसा है। इलाका ज्यादातर हिस्सा पहाड़ियों से घिरा है। यहां कई पहाड़ी नदियां भी हैं।

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अधिकांश किसानों का जीवन यापन कृषि एवं जंगली वनस्पतियों पर निर्भर है। समृद्ध किसानों ने तो निजी संसाधनों के जरिए जमीन खेती योग्य बना ली, लेकिन गरीब किसानों की जमीन बंजर है । वह मजदूरी करने को मजबूर हैं। अब सरकार ने मनरेगा योजना में इन लघु-सीमांत किसानों की भूमि को शामिल किया है। इससे किसानों में एक बार फिर उम्मीद की लौ नजर आई जो धूमिल पड़ती दिख रही है़ ।

गांव में लगभग 10 एकड़ जमीन टीलों के चलते बेकार है। यदि कड़ी मेहनत कर बीज डालते हैं तो बीज कि लागत भी वापस नही होती । आर्थिक अभाव के कारण पड़ी जमीन का समतलीकरण किसान को स्वतः करा पाना आसमान से तारे तोड़ने के समान हैं। क्षेत्र में योजनाएं केवल कागजों तक ही सीमित हैं। समतलीकरण का लाभ यदि मिनी पाठा वासियों को मिला होता तो स्थितियां बेहतर हो जातीं। टीले में जमीन है, और उसके मालिक नाम मात्र के किसान कहलाते हैं।

समतलीकरण एवं मेड़बंदी योजना की जमीनी हकीकत चौंकाने वाली

आपको बतादें कि भूमि सुधार संबंधी योजनाएं डेढ़ दशक से बांदा में चल रही हैं। कई क्षेत्रों में भूमि समतल के दावे है। अब मनरेगा योजना से मिनी पाठा की जमीन उपजाऊ बनाने कि भ्रष्टाचार पूर्ण कागजी कार्यवाई को अंजाम देने कि कि कागजी कवायद जारी है़। जबकि आवश्यकता है़ कि इस योजना के तहत जितना भी समतलीकरण का कार्य दिखाया जा रहा है़ उसकी उच्चस्तरीय जांच कराई जाये तो करोडों का घपला उजागर होगा । छोटे से लेकर बड़े अफसर तक इसमें फंसे मिलेंगे !फिलहाल उप कृषि निदेशक एके सिंह कहतें हैं कि कोरोना संक्रमण के चलते आफिसीयल व्यवस्था पटरी पर नहीं है। इसके कारण वास्तविक स्थिति बता पाना संभव नहीं हैं ।

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रिपोर्ट- शरद चंद्र मिश्रा, बांदा (उत्तर प्रदेश )

फोटो परिचय - बांदा का चर्चित मिनी पाठा फतेहगंज की बीहड़ भूमि

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