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ये लाइन कब ख़त्म होगी, इसके लिए भूखे-प्यासे खड़े लोग
जिला अस्पताल में पंहुचने पर जो दृश्य देखने को मिला उससे बाहर से आने वाले लोगों की बेबसी व सरकारी महकमें के हवा -हवाई दावे की स्थिति का ही आभास हुआ।
अम्बेडकरनगर: पीठ पर बैग और सड़क पर भूख प्यास से ब्याकुल पैदल चलते लोग, रात हो या दिन, कभी न थकने वाला सफर, इसके बाद स्क्रीनिंग के लिए लाइन में खड़े होकर घंटो इंतजार की जद्दोजहद। यह दृश्य कोई एक दिन का नही है, बल्कि अब यह सामान्य हो चुका है। जिला अस्पताल हो अथवा लोहिया भवन, दोनों स्थानों पर बाहर से आने वाले लोगों को स्क्रीनिंग के लिए घंटो इंतजार करना पड़ रहा है।
स्वास्थ्य विभाग के दावे की निकली हवा
स्क्रीनिंग के लिए लाइन में लगे इन लोगों के लिए यहां पर न तो खाने की कोई व्यवस्था है। न पानी पीने के ही कोई समुचित इंतजाम किए गए हैं। इसके कारण लोग भूख और प्यास से बेहाल देखे जा रहे हैं। कहने को तो स्वास्थ्य महकमा स्क्रीनिंग के लिए 25 टीमें चलाने का दावा कर रहा है। लेकिन लाइन में खड़े लोगों का कहना है कि उन्हें सुबह से खड़े -खड़े दोपहर हो गया है लेकिन नंबर नहीं आया है।
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गुरूवार को दोपहर बाद जिला अस्पताल में पंहुचने पर जो दृश्य देखने को मिला उससे बाहर से आने वाले लोगों की बेबसी व सरकारी महकमें के हवा -हवाई दावे की स्थिति का ही आभास हुआ। यहां की पूरी व्यवस्था तीन होम गार्ड जवानों के ऊपर थी। भीड़ इतनी जिसे काबू में कर पाना आसान नही था। लोग एक दूसरे से धक्का -मुक्की कर रहे थे। इनमें महिलाएं भी थीं और उनकी गोद में नवजात शिशु भी थे।
ऐसी लाइन जो ख़तम ही नहीं हो रही
चिल चिलाती धूप में खड़े यह लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। लेकिन वह कब आयेगा इसका पता किसी को नहीं था। बिना स्क्रीनिंग कराये गांव में जाने पर गांव वाले घुसने नही दे रहे। ऐसे में उनके समक्ष स्क्रीनिंग करवाना हर हाल में जरूरी थी। लाइन में खड़े सुजीत, विनोद, रामजीत, आशीष आदि ने बताया कि वे सब मुम्बई से ट्रक से आये हैं।
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सुबह से लाइन में खड़े हैं लेकिन यह कैसी लाइन है जो कभी खत्म नही हो रही। वे जहां खड़े थे वहां से चन्द कदम आगे ही बढ़ सकें है। ऐसे में स्क्रीनिंग किस गति से की जा रही है, यह समझ से परे है। फिलहाल सभी लोग अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के सहारे भूख और प्यास की व्याकुलता के बीच अपनी बारी के इंतजार में थे।
मनीष मिश्र