TRENDING TAGS :
Vandam: शास्त्रीय संगीत के प्रचार प्रसार आयोजित हुआ लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम
Vandam: कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य शास्त्रीय संगीत के प्रचार प्रसार के साथ साथ शास्त्रीय विधाओं में गुरु परंपरा का स्मरण और प्रणाम करना था।
Vandam: कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य शास्त्रीय संगीत के प्रचार प्रसार के साथ साथ शास्त्रीय विधाओं में गुरु परंपरा का स्मरण और प्रणाम करना था। भारत की समृद्ध गुरु परम्परा को समर्पित त्रिसामा आर्ट्स और शिष्टस्मृति के संयुक्त तत्वावधान में शास्त्रीय संगीत और नृत्य का कार्यक्रम “वंदन” का आयोजन लखनऊ के संगीत नाटक अकैडमी परिसर के अन्तर्गत वाल्मीकि रंगशाला में आज आयोजित किया गया।
Also Read
शास्त्रीय नृत्य और गायन की प्रस्तुतियां
कार्यक्रम का प्रारम्भ शिष्टस्मृति संस्थान के छात्रों द्वारा कथक नृत्य द्वारा वंदना से हुआ। वंदना में ईश्वर और गुरु का आह्वान हुआ और कार्यक्रम के सांस्कृतिक पक्ष को जनता के सामने रखा गया। लखनऊ घराने के पारंपरिक रंगमंच के टुकड़े के साथ पहली प्रस्तुति छात्रों द्वारा सफलतापूर्वक दर्शायी गयी।
कार्यक्रम की दूसरी प्रस्तुति सोहम मिश्रा के तबला एकल वादन के रूप में हुई । सोहम लखनऊ के प्रसिद्ध तबला वादक पंडित शीतल प्रसाद के पोते हैं और उन्होंने अपने प्रस्तुति में रेला, कायदा, टुकड़े और परन से दर्शकों का मनोरंजन किया । कार्यक्रम की तीसरी प्रस्तुति के रूप में शिष्टस्मृति के छात्रों द्वारा कथक की सामूहिक प्रस्तुति हुई , छात्रों ने अपनी प्रस्तुति में गुण्डीचा बंधुओं द्वारा गये गये सूलताल ध्रुपद की बन्दिश “सूरत सलोनी मूरत मन भाए” पर सामूहिक नृत्य प्रस्तुत किया। प्रस्तुति में श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं और उनके जीवन की घटनाओं का आकर्षक प्रस्तुतिकरण हुआ ।
संध्या की अगली प्रस्तुति लखनऊ के अक्षत अवस्थी द्वारा हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन के रूप में हुई। अक्षत ने राग मारू बिहाग में तिलवाड़ा ताल पर विलंबित की पारंपरिक बंदिश “जागे मोर भाग” से अपने गायन का प्रारम्भ किया। उन्होंने ग्वालियर घराने की परंपरा के अनुरूप राग की प्रस्तुति में मींड, बहलावे और बोल तान से मारू बिहाग के स्वरूप को रसिक दर्शकों को प्रसन्न किया। तदंतर उन्होंने द्रुत तीनताल में “मोरा घुंघरवा बाजो री” प्रस्तुत किया। सावन के सुरम्य मास में आयोजित इस कार्यक्रम में अक्षत ने मध्यलय तीनताल में राग गौड़ मल्हार की बंदिश “बलमा बहार आई” से अपनी प्रस्तुति का समापन किया।
कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति में शिष्टस्मृति की संस्थापिका प्रणिका भट्ट ने कथक के एकल नृत्य के रूप में दी ।उन्होंने विष्णु और कृष्ण वंदना के साथ साथ शुद्ध नृत्य में लखनऊ घराने की पारम्परिक चीज़ों को प्रस्तुत किया। संध्या का समापन प्राणिका और उनके शिष्यों ने एक ओजस्वी तत्कार के साथ किया जिसपर दर्शकों ने करतलध्वनि से उनका अभिवादन किया ।
कार्यक्रम में उपस्थित मुख अतिथि
कार्यक्रम में लखनऊ के कई विशिष्ट और कलाप्रेमी लोग उपस्थित रहे , जैसे लेटे हनुमान मंदिर के महन्त डा. विवेक टाँगड़ी, पंडित शीतल प्रसाद, पंडित संजय रॉय, प्रसिद्ध एडवोकेट सारांश चतुर्वेदी आदि।
गुरु शिष्य की अनिवार्यता को दर्शाया गया
त्रिसामा आर्ट्स के संस्थापक अभिषेक शर्मा ने मंच संचालन करते हुए संगीत में गुरु -शिष्य सम्बंधों की अनिवार्यता और आधुनिक समय में भी उसकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि वे पिछले एक साल से लखनऊ में शास्त्रीय संगीत की बैठकों के माध्यम से संगीत के प्रति युवाओं में रुचि पैदा कर रहे हैं । उन्होंने संगीत और कला की इस पुनीत सेवा में और लोगों के जुड़ने का आह्वान किया।