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Mahoba News: आल्हा-ऊदल के खजाने के रहस्य, ग्रामीण इस जगह जताते हैं दबा होने की उम्मीद, सरकार से जांच की मांग
Mahoba News: इनसे जुड़ी किंवदंतियों के मुताबिक इन 52 युद्धों में विजय स्वरूप हासिल किया गया बड़ी मात्रा में सोना आल्हा-ऊदल ने महोबा के निकट ही सहेजा।
Mahoba News: इतिहास की कहानियां आल्हा और ऊदल की वीर गाथाओं से भरी पड़ी हैं। बुदेलखंड के इन वीर सेनापतियों ने 52 लड़ाइयों की विजय हासिल की थी। इनसे जुड़ी किंवदंतियों के मुताबिक इन 52 युद्धों में विजय स्वरूप हासिल किया गया बड़ी मात्रा में सोना आल्हा-ऊदल ने महोबा के निकट ही सहेजा। उन युद्धों, विजय, सोना सभी का जिक्र इतिहास के पन्नों में दर्ज है, लेकिन ये सोना गया कहां इसका आज तक पता नहीं चल सका है। मूल निवासी ग्रामीणों का मानना है कि ये सोना महोबा की एक पहाड़ी के आसपास के इलाके के आसपास दबा हो सकता है। सरकार अगर इसकी संजीदगी से पड़ताल कराए तो काफी कुछ हासिल हो सकता है।
आल्हा-ऊदल की शौर्य गाथा
कहा जाता है कि आल्हा-ऊदल को चंद्रिका देवी का आशीर्वाद प्राप्त था। वो हाथी पर सवार होकर युद्ध में जाते थे, सभी 52 लड़ाइयों में उन्होंने विजय हासिल की। आल्हा-ऊदल की वीरता से जुड़े किस्से न सिर्फ हिंदुस्तान बल्कि देश-विदेश में सुने और सुनाए जातें हैं।
युद्ध में जीत के बाद महोबा लाया गया था सोना!
52 गढ़ों पर विजय पताका फहराकर वहां से लाया गया सोना चांदी उत्तर प्रदेश के महोबा जनपद में छिपे होने की किंवदंतियां आज भी मशहूर हैं। इतिहास के पन्नों में पहले इसका नाम कैकईनगर, बाद में पाटनपुर और फिर कई बार बदलता रहा है। वर्तमान महोबा के नाम से पहचाने जाने इस नगर ने द्वापर युग से अपने अस्तित्व को जीवंत रखा है। आल्हा, ऊदल जैसे शूरवीरों के नाम से आज भी यह नगर जाना-पहचाना जाता है। कहा जाता है कि चंदेल कालीन राजा परमार के इन सेनापतियों द्वारा 52 गढ़ का खजाना महोबा लाया गया था।
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पारस पत्थर और सोने का रहस्य बरकरार
कहा जाता है कि आल्हा-ऊदल की एक युद्ध में जीत के दौरान लोहे को छूकर सोने में तब्दील कर देने वाला पारस पत्थर हासिल हुआ था। उत्तर प्रदेश के महोबा जनपद में आल्हा-ऊदल से जुड़े खजाने का रहस्य आज भी बरकरार है।
रहस्यमई पर्वत को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं
यहां पर गोरखनाथ की तपोभूमि कहे जाने वाले गोखार पर्वत़ को काफी रहस्यमयी माना जाता रहा है। 52 गढ़ पर जीत दर्ज करने के बाद महोबा की भूमि पर लाए गए खजाने से जुड़े राज गोखार पर्वत के सीने में दफन बताए जातें हैं। आल्हा ऊदल से जुड़ी सदियों पुरानी किंवदतियां आज भी गोखार गिरि पर्वत से जोड़कर सुनी और सुनाई जातीं हैं। नगर महोबा में बने राजकोट मंदिर और आल्हा की बैठक का भी नाम 52 गढ़ के रहस्यमयी खजाने से जोड़कर देखा जाता है। इस खजाने को लेकर अलग-अलग विचार और भ्रातिंयां रही हैं। जहां कई लोगों का मानना है कि खजाना आल्हा की बैठक में बने तहखाने में छिपा कर रखा गया है, तो कई राजकोट मंदिर से इसे जोड़कर देखते हैं। लोगों की अगर माने तो इस खजाने को न तो आज तक कोई देख पाया है और न ही इसे खोजा जा सका है। रायकोट मंदिर का तहखाना और आल्हा की बैठक को आज भी उसी नजरिए से देखा जाता है जैसे गोरखनाथ की तपोभूमि कहे जाने वाला गोखार पर्वत को। इन सभी स्थानों का रहस्य आज भी बरकरार है। कुछ किंवदंतियों में यहां के मदन सागर तालाब के बीचों-बीच बने खखड़ा मठ में नौ लाख सोने की अशर्फियां आज भी होने की बात कही जाती है। इस मठ की कहानी रानी मलहा के महल के जोड़कर देखी जाती है। लोगों का मानना है की पानी से घिरे इस महल में 09 लाख स्वर्ण मुद्राएं आज भी दफन हैं। सरकारी अनदेखी के चलते खस्ताहाल हो चुके इस खखड़ा मठ के सीने में दफन रहस्य आज तक नहीं खुल सके हैं।
खजाने की खोज के लिए सरकार को लिखा गया कई बार पत्र
उत्तर प्रदेश के महोबा जनपद में आल्हा-ऊदल के रहस्यमयी खजाने को खोजने के लिए कई बार सरकार को पत्र लिखा गया है। समाजसेवी दाऊ तिवारी ने पत्र लिखकर प्रदेश एवं केंद्र सरकार को महोबा में दफन खजाने की हकीकत से रूबरू कराया। दाऊ तिवारी की अगर मानें तो एक समाचार पत्र में छपे एक लेख में विदेशी संस्था ने महोबा में एक बड़े खजाने के रहस्य से पर्दा उठाया था। खजाने की खोज के लिए लिखे गए इन संदेशों का अभी तक न तो प्रदेश सरकार ने कोई संज्ञान लिया है और न ही केंद्र सरकार ने। उन्होंने कई बार आप क्षेत्र के भू-वैज्ञानिक सर्वे कर हकीकत सामने लाने की मांग की है। बहरहाल, रहस्य के पर्दे में छिपे इस खजाने के चर्चाएं महोबा के ग्रामीण अंचल से लेकर गली- मोहल्लों में सुनाई देती हैं। हालांकि 'न्यूजट्रैक' ऐसी किसी किंवदंतियों अथवा चर्चाओं की बिना भूगर्भ विज्ञान का आधार मिले बिल्कुल पुष्टि नहीं करता है।