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अब मथुरा की बारीः राम मुक्त, अब कृष्ण की मांग, मांगा 13.7 एकड़ जमीन पर कब्जा
अयोध्या में रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला होने के बाद अब मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को मुक्त कराने को लेकर अदालत में गुहार लगाई गयी है।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: अयोध्या में रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला होने के बाद अब मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को मुक्त कराने को लेकर अदालत में गुहार लगाई गयी है। जानी मानी अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने मथुरा की एक अदालत में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्त कराने को लेकर दस्तक की है।
इससे पहले अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री रामजन्मभूमि विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में हिंदू पक्ष की अधिवक्ता रही हैं। जिसमें हिन्दू पक्ष की जीत हुई थी। श्रीकृष्ण विराजमान ने शुक्रवार को मथुरा की अदालत में दायर मुकदमें में 13.37 एकड़ की कृष्ण जन्मभूमि भूमि का स्वामित्व और शाही ईदगाह को हटाने की मांग की गई है।
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अधिवक्ता हरि शंकर जैन और विष्णु शंकर जैन ने कहा
अधिवक्ता हरि शंकर जैन और विष्णु शंकर जैन ने कहा मुकदमा कथित ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह के प्रबंधन समिति द्वारा अवैध रूप से अतिक्रमण और अधिरचना को हटाने के लिए दायर किया गया है। यह याचिका भगवान श्रीकृष्ण विराजमान, कटरा केशव देव खेवट, मौजा मथुरा बाजार शहर की ओर से उनकी अंतरंग सखी के रूप में अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री और छह अन्य भक्तों की तरफ से दाखिल किया गया है। इस याचिका के जरिये 13.37 एकड़ की कृष्ण जन्मभूमि का स्वामित्व मांगा गया है। जिस पर मुगल काल में कब्जा कर शाही ईदगाह बना दी गई थी। शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई है।
krishna-tempel-mathura (social media)
हांलाकि यह भी कहा जा रहा है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 इस मामले में बाधा पैदा कर सकता है। इस एक्ट के जरिये विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुकदमेबाजी को लेकर मालकिना हक पर मुकदमे में छूट को छोड़कर मथुरा-काशी समेत सभी धार्मिक या आस्था स्थलों के विवादों पर मुकदमेबाजी पर रोक है।
'न्यूजट्रैक' से बात करते हुए अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने बताया
इस बारे में 'न्यूजट्रैक' से बात करते हुए अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने बताया कि कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली है और सोमवार को इसकी सुनवाई होनी है। उन्होंने कहा कि इस केस में प्लेसेज आफ वर्षिप एक्ट कतई आडे नहीं आएगा।
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गौरतलब है कि वर्ष 1991 में कांग्रेस सरकार ने सार्वजनिक आराधना स्थल 1991 को संसद से पारित करवाकर 15 अगस्त 1947 के बाद से जो भी धार्मिक स्थल जिस स्थिति में थे, उनमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। अधिनियम में यह भी शामिल किया गया कि इन स्थलों पर किसी भी तरह का बदलाव गैर कानूनी माना जाएगा और आरोपियों पर कार्रवाई की बात भी कही गयी है।
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