×

आडवाणी की जगह गांधीनगर से अमित शाह की उम्मीद्वारी के मायने

राम केवी
Published on: 23 March 2019 5:47 PM IST
आडवाणी की जगह गांधीनगर से अमित शाह की उम्मीद्वारी के मायने
X

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी के पुरोधा लालकृष्ण आडवाणी का टिकट काटकर उनकी अजेय सीट से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का चुनाव मैदान में उतरना उनका कद बताता है।

अमित शाह का पित्रोदा के बयान पर वार, कहा- देश और सेना से माफी मांगे राहुल गांधी

भाजपा को इससे फायदा यह होगा कि गुजरात में मोदी और शाह की पकड़ मजबूत रहेगी दूसरे गुजरातियों में यह संदेश जाएगा कि केंद्र की सत्ता उनसे दूर नहीं हो रही है। क्योंकि पिछली बार मोदी बडोदरा से चुनाव लड़े थे बाद में उन्होंने वह सीट छोड़ दी थी लेकिन इस बार मोदी गुजरात से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। गुजरातियों के बीच की गलत संदेश न जाए इसलिए इस बार उनके जोड़ीदार अमित शाह मैदान में हैं। शाह की गुजरात में अच्छी पकड़ है। मोदी के मुख्यमंत्री के रूप में शासनकाल में वह ताकतवर नेताओं में गिने जाते थे और भाजपा अध्यक्ष के रूप में उनका यह रुतबा आज भी कायम है।

PM मोदी और अमित शाह ने ट्विटर पर नाम के आगे जोड़ा चौकीदार

गांधीनगर से अमित शाह का उतरना विपक्ष के लिए भी संदेश है कि सुश्री मायावती ने हाल ही में कहा था कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगी क्योंकि उन्हें चुनाव प्रचार करना। अखिलेश यादव भी अभी तक तय नहीं कर पाए हैं कि वह कहां से चुनाव लड़ेंगे। इसी तरह कांग्रेस में प्रियंका गांधी किस सीट से मैदान में उतरेंगी यह एलान नहीं हुआ है। ऐसे में गांधीनगर से अमित शाह के ताल ठोंककर मैदान में उतरने से इन सभी विपक्षी नेताओं पर चुनाव के मैदान में उतरने का दबाव बनेगा और इनके लिए मुश्किल पैदा होगी।

भाजपा ने जब जितनी सूचियां जारी की हैं उससे एक बात बिल्कुल साफ हो गई है कि आडवाणी की राजनीतिक रूप से सेवानिवृत्ति हो गई है। काफी पहले एक बार आडवाणी ने खुद भी कहा था कि वह सक्रिय राजनीति से संन्यास ले रहे हैं लेकिन बाद में वह पलट गए लेकिन अब शाह के केंद्रीय राजनीति में अवतार से एक बात और साफ हो गई है कि यह पुरानी पीढ़ी की विदाई का संकेत है। पहली और दूसरी सूची में डा. मुरली मनोहर जोशी का नाम न आने का भी संकेत समझ लिया जाना चाहिए कि उनकी भी विदाई हो गई है। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी और कलराज मिश्र मौके की नजाकत को भांपते हुए पहले ही कह चुके हैं कि उन्हें चुनाव नहीं लड़ना है। सुषमा स्वराज और उमा भारती भी चुनाव न लड़ने का एलान कर चुकी हैं।

उत्तराखंड के एक और पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी भी आने वाली हवाओं को भांप गए और बेटे के साथ कांग्रेस में जाकर अपना भविष्य सुरक्षित करने का काम किया।



राम केवी

राम केवी

Next Story