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Meerut News: मलियाना कांड में बरी हुए 40 आरोपी,पीड़ित परिवारों ने कहा हाईकोर्ट में अपील करेंगे
Meerut News: एडीजीसी क्रिमिनल सचिन मोहन ने 36 साल बाद आए फैसले के बारे में स्थानीय मीडिया को बताया कि 23 मई 1987 को मेरठ के मलियाना होली चौक पर यह घटना हुई थी, जिनमें वादी याकूब अली पुत्र नजीर निवासी मलियाना ने 93 लोगों के खिलाफ 24 मई 87 को नामजद मुकदमा दर्ज कराया था।
Meerut News: उत्तर प्रदेश के मेरठ में सन 1987 में थाना टीपीनगर क्षेत्र के अन्तर्गत मलियाना में हुए नरसंहार मामले में करीब 36 साल बाद अपर जिला जज की अदालत के फैसले के बाद आज पूरे दिन पुराने शहर में खासकर घटना वाले इलाके में लोगों में बस 1987 के दंगे की चर्चा रही। लोगों का कहना था कि उनको पहले से मालूम था कि यह सब लोग बरी होने हैं। हालांकि किसी ने भी खुलकर फैसले को गलत नहीं बताया। दबी जुबान में सभी का यही कहना था कानून पर पूरा भरोसा है। अदालत ने जो फैसला सुनाया वह मान्य है। है। वहीं पीड़ित परिवार फैसले से खुश नहीं हैं। उनका कहना है कि वे हाईकोर्ट में अपील करेंगे।
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एडीजीसी ने दी जानकारी
एडीजीसी क्रिमिनल सचिन मोहन ने 36 साल बाद आए फैसले के बारे में स्थानीय मीडिया को बताया कि 23 मई 1987 को मेरठ के मलियाना होली चौक पर यह घटना हुई थी, जिनमें वादी याकूब अली पुत्र नजीर निवासी मलियाना ने 93 लोगों के खिलाफ 24 मई 87 को नामजद मुकदमा दर्ज कराया था। करीब 63 लोग मारे गए थे और 100 से भी ज्यादा घायल हुए थे। रिपोर्ट में वादी ने आरोप लगाया था कि लोग आगजनी, मारपीट और हमला करने आए थे। लोगों को टारगेट बनाया गया और गोलियां बरसाई गईं। टीपीनगर थाने में इस वाद का अपराध संख्या- 136/1987 दर्ज हुआ था।
मुकदमा वादी
एडीजीसी क्रिमिनल सचिन मोहन के अनुसार इस मामले में केस विचारण के दौरान करीब 40 लोगों की मृत्यु हो चुकी है, जिसमें 23 आरोपी भी शामिल हैं। 40 लोग मुकदमे में आ रहे थे, जबकि 30 आरोपियों का कोई अता-पता नहीं चल पा रहा है। इस मामले में वादी सहित 10 गवाहों ने अदालत में अपनी गवाही दी, लेकिन अभियोजन आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य के आधार केस साबित करने में सफल नहीं रहा। अदालत ने गवाहों की गवाही और पत्रावली पर उपस्थित साक्ष्यों का अवलोकन करते हुए मौजूद 40 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी करने के आदेश दिए।
22 मई को हाशिमपुरा नरसंहार हुआ, जिसमें 42 लोगों की हत्या की गई। इसके बाद 23 मई को हुए नरसंहार में अब आए फैसले में किसी को सजा नहीं हुई, जबकि 63 लोग मारे गए थे। करीब 36 सालों (420 महीने) में सुनवाई के लिए 800 से ज्यादा तारीखें लगीं।
पीड़ित परिवार ने बताया
पीडित परिवारों में महताब (40) भी है। मीडिया से बातचीत में महताब ने बताया कि दंगे के दौरान मेरे पिता अशरफ की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। उस वक्त मैं बहुत छोटा था। पिता की लाश मेरे सामने पड़ी थी। जबकि उनका दंगे से कोई लेना देना नहीं था। न्यायालय का फैसला सही नहीं है। बातचीत कर जल्द हाईकोर्ट में अपील करेंगे। महताब की मानिन्द अफजाल सैफी (45) भी न्यायालय के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करने की बात कहता है। अफजाल के अनुसार घटना के दिन उनके पिता यासीन बाहर से घर की ओर लौट रहे थे। तभी रास्ते में दंगाइयों ने गोली मारकर शव शुगर मिल के पास फेंक दिया था। इनके अलावा भी कई पीड़ित हाईकेर्ट जाने की सोच रहे हैं। हालांकि मीडिया के सामने उन्होंने इस बारे में भी खुलकर कुछ नहीं कहा है।
बता दें कि 1987 में हुए मलियाना कांड को याद कर आज भी पीड़ित और मलियाना के लोग कांप उठते हैं। वर्ष 1987 में मेरठ सांप्रदायिक दंगों की आंच में झुलस रहा था। 14 अप्रैल को शब-ए-बरात के दिन सांप्रदायिक दंगा हुआ, जिसमें 12 लोगों की मौत हुई। तब कर्फ्यू लगाकर स्थिति को नियंत्रित कर लिया गया, लेकिन तनाव बना रहा और मेरठ में दो तीन महीनों तक रुक-रुक कर दंगे होते रहे।
22 मई को हाशिमपुरा नरसंहार हुआ, जिसमें 42 लोगों की हत्या की गई। इसके बाद 23 मई को हुए मलियाना नरसंहार में अब आए फैसले में किसी को सजा नहीं हुई, जबकि 63 लोग मारे गए थे। करीब 36 सालों (420 महीने) में सुनवाई के लिए 800 से ज्यादा तारीखें लगीं।