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Meerut News: बजरंग दल के ऊपर पाबंदी का वादा कर्नाटक में, कांग्रेस को मुस्लिम वोटों की निकाय चुनाव में उम्मीद
Meerut News: मुस्लिम बाहुल्य मेरठ महापौर सीट पर कांग्रेस यदि मुस्लिमों की वोट ले पाने में सफल होती है तो यही माना जाएगा कि बजरंग दल के ऊपर पाबंदी का वादा कर मुस्लिमों को अपने साथ जोड़ने की रणनीति में कांग्रेस सफल रही है।
Meerut News: कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के घोषणापत्र में बजरंग दल के ऊपर पाबंदी का वादा दूरगामी असर वाला माना जा रहा है। यह भी माना जा रहा है कि कर्नाटक की सीमा से बाहर पूरे देश में इसका असर महसूस होगा। यूपी में इसका असर कितना होगा या नहीं होगा, इसका खुलासा मेरठ के महापौर चुनाव परिणाम करेंगे। मुस्लिम बाहुल्य मेरठ महापौर सीट पर कांग्रेस यदि मुस्लिमों की वोट ले पाने में सफल होती है तो यही माना जाएगा कि बजरंग दल के ऊपर पाबंदी का वादा कर मुस्लिमों को अपने साथ जोड़ने की रणनीति में कांग्रेस सफल रही है। यही वजह है कि लोगों की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि मतदान के दिन मेरठ के मुस्लिमों का रुझान किस तरफ रहता है।
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भारत जोड़ो यात्रा में धर्मनिरपेक्षता का मुद्दा उठाया
असल में कांग्रेस अपने दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण के अपने पुराने वोट आधार को वापस पाने की कोशिशों में कई सालों से जुटी है। इनमें कांग्रेस को दलित और मुसलमानों के वापस लौटने की अधिक संभावना दिख रही है। मुसलमानों को कांग्रेस के पाले में लाने की कोशिशों के तहत राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा में धर्मनिरपेक्षता का मुद्दा उठाया। वैचारिक स्पष्टता के कई प्रयास किए। इसी कोशिश में उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर के विचारों का आक्रामक तरीके से विरोध किया। दलितों के अपने साथ जुड़ने की उम्मीद के पीछे राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर मल्लिकार्जुन खड़गे हैं।
बसपा से छिटकते दलित वोटों से कांग्रेस को उम्मीद
कांग्रेस के लिए दलितों की वापसी की बड़ी वजह देश में बसपा का लगातार होता पतन भी है। यूपी की ही बात करें तो यहां पिछले साल के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बसपा को 12.88 फीसदी वोट मिले, जबकि 2017 के चुनाव में उसे 22.23 फीसदी वोट मिले थे। उसे 10 फीसदी वोट का नुकसान हुआ। ऐसे में कांग्रेस की दलित वोटो को लेकर उम्मीदें बढ़ गई हैं। गौरतलब है कि दलित पहले कांग्रेस का ही वोट बैंक था, जिस पर बाद में बसपा काबिज हो गई थी। ताजा राजनीतिक हालातों में कांग्रेस की पूरी कोशिश दलित और मुसलमानों को अपने पाले में लाने की हो रही है।
उत्तर प्रदेश में दलित और मुस्लिम 35 फीसदी
कांग्रेस अपने इस पुराने वोट बैंक को लेकर इसलिए भी अधिक गंभीर है क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व अच्छी तरह से जानता है कि दलित और मुसलमान वोट बैंक की वापसी का मतलब प्रदेश में कांग्रेस के अच्छे दिनों की फिर से शुरुआत होगी। ध्यान रहे, उत्तर प्रदेश में दलित और मुस्लिम 35 फीसदी से ज्यादा है। ऐसे में कांग्रेस की सोच गलत भी नहीं है। इसलिए कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस के घोषणापत्र में बजरंग दल के ऊपर पाबंदी का जो वादा है वह कांग्रेस की सोची-समझी रणनीति है। बता दें कि कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान ही कांग्रेस द्वारा बंजारा समुदाय के लिए जो कि दलित समुदाय में आते हैं। कुछ नहीं करने का आरोप भी लगाया जा रहा है। गौरतलब है कि बजरंग दल पर पाबंदी लगाने का वादा करने की हिम्मत करने वाली अकेली कांग्रेस पार्टी है। ममता बनर्जी,लालू प्रसाद और अखिलेश यादव तक ऐसा करने की हिम्मत नहीं कर सके हैं। अब देखना यही है कि यूपी निकाय चुनाव में कांग्रेस की इस हिम्मत का लाभ उसे मिल पाता है या नहीं।
1992 में विवादित ढांचा टूटने के बाद मुसलमान कांग्रेस से छिटके
बता दें कि 1992 में बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा टूटने के बाद से मुसलमान कांग्रेस से इस कदर छिटके की फिर कभी नहीं वापस लौटे। इस दौरान कांग्रेस द्वारा मुसलमानों को जोड़ने की कोशिश भी बहुत हुई। लेकिन इसमें कांग्रेस को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी। अब तक के चुनावों की बात करें तो मुसलमान कांग्रेस को उन्हीं राज्यों में वोट देता है, जहां उसके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं या जहां भाजपा से लड़ने वाली कोई क्षेत्रीय पार्टी मौजूद नहीं है। जहां कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है वहां कांग्रेस को मुस्लिम वोट मिलता है। कर्नाटक में कांग्रेस के वादे के बाद यह स्थिति बदल सकती है। बहरहाल,खड़गे के चेहरे पर कांग्रेस की दलित और मुस्लिम राजनीति को आगे बढ़ाने की रणनीति यूपी में क्या गुल खिलाती है इसकी काफी हद तक खुलासा यूपी के निकाय चुनाव करेंगे।