Meerut News: बीजेपी के हरिकांत अहलूवालिया ने AIMIM के अनस को एक लाख से अधिक वोंटो के अंतर से हराया

Meerut News: हरिकांत अहलूवालिया को 235953 वोट प्राप्त हुए, वहीं एआईएमआईएम प्रत्याशी अनस को 128547 वोट मिले।

Sushil Kumar
Published on: 13 May 2023 8:09 PM GMT
Meerut News: बीजेपी के हरिकांत अहलूवालिया ने AIMIM के अनस को एक लाख से अधिक वोंटो के अंतर से हराया
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Harikant Ahluwalia

Meerut News: उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में नगर निगम मेरठ से बीजेपी उम्मीदवार हरिकांत अहलूविलया ने अपने प्रतिद्वंद्वी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अनस से एक लाख 7 हजार 406 वोट से जीत दर्ज की। हरिकांत अहलूवालिया को 235953 वोट प्राप्त हुए, वहीं एआईएमआईएम प्रत्याशी अनस को 128547 वोट मिले। चुनाव में खड़ी सपा विधायक अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान को हार का मुंह देखना पड़ा है। मेरठ के काउंटिंग सेंटर के बाहर पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा है. राजनीतिक दलों के समर्थकों को खदेड़ने के लिए थाना परतापुर क्षेत्र के कताई मिल के बाहर पुलिस को लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा है। हालांकि समाचार लिखे जाने समय तक अधिकृत रुप से बीजेपी की जीत ती घोषणा नहीं की जा सकी थी।

हालांकि, शुरुआत में सपा और ओवैसी की पार्टी ने बीजेपी के हरिकांत अहलूवालिया जरूर आंख दिखाई, लेकिन जब बीजेपी के अहलूवालिया ने रफ्तार पकड़ी तो फिर सब बहुत ही पीछे छूट गए। सपा उम्मीदवार सीमा प्रधान जिन्हें चुनाव के दौरान मुख्य मुकाबले में माना जा रहा था। 115964 वोट के साथ बहुत ही पीछे रह गईं। बसपा उम्मीदवार हशमत को 54076 वोट मिले हैं। कांग्रेस उम्मीदवार नसीम कुरैशी को 15473 तो आम आदमी पार्टी की ऋचा सिंह को 6257 वोट ही मिल सके।

बता दें कि मेरठ में 1995 से लेकर अब तक भाजपा दो अपना मेयर बनाने में कामयाब रही है। एक बार दो वर्ष 2006 में जब मधु गुर्जर मेयर बनीं, वहीं, दूसरी बार वर्ष 2012 में जब हरिकांत अहलूवालिया मेयर बने। लेकिन, खास बात ये रही कि दोनों ही बार यूपी में भाजपा की सरकार नहीं थी। यह पहला मौका है जब भाजपा की सरकार प्रदेश में है तो मेयर भी उसका ही जीता है। 2017 के चुनाव में बसपा के पूर्व विधायक योगेश वर्मा की पत्नी बसपा के टिकट पर चुनाव जीत कर मेयर बनीं। हालांकि बाद में वें सपा में शामिल हो गईं। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले नगरीय निकाय चुनाव को प्रदेश के शहरी मतदाताओं के बीच राजनीतिक दलों की स्थिति के आकलन की कसौटी के रूप में देखा जा रहा है।

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