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Lok Sabha Elections 2024: लोक सभा चुनावको लेकर दुविधा में जयंत चौधरी, इधर जाऊं या ऊधर जाऊं
Lok Sabha Elections 2024: 13-14 जुलाई को बेंगलुरु में होने वाली विपक्ष की दूसरी बैठक में आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी शामिल होंगे या नहीं इस पर सबकी नजरें लगी हैं। कहा जा रहा है कि इस बैठक के बाद लगभग यह साफ हो जाएगा कि आखिर जयंत चौधरी के मन में क्या चल रहा है।
Lok Sabha Elections 2024: 13-14 जुलाई को बेंगलुरु में होने वाली विपक्ष की दूसरी बैठक में आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी शामिल होंगे या नहीं इस पर सबकी नजरें लगी हैं। कहा जा रहा है कि इस बैठक के बाद लगभग यह साफ हो जाएगा कि आखिर जयंत चौधरी के मन में क्या चल रहा है। बता दे कि जयंत चौधरी 2024 को लेकर गहरी दुविधा में फंसे हैं। उन्हें समझ नहीं रहा है कि मौजूदा समीकरण में पश्चिम उत्तर प्रदेश में किससे दोस्ती की जाए और किस से लड़ा जाए।
जयंत पटना में हुई विपक्षी दलों की बैठक में नहीं गये थे। हालांकि पार्टी की तरफ से इस संबंध में यही सफाई दी गई थी जयंत लंदन में थे, इसलिए नहीं गए। लेकिन,पार्टी की सफाई के बावजूद राजनीतिक हलकों में यह माना गया था कि जयंत विपक्षी नेताओं से अभी दूरी बनाए रखना चाहते हैं। दरअसल, हकीकत यह है कि आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी कोई फ़ैसला ही नहीं कर पा रहे हैं कि उनकी पार्टी राजनीतिक रूप से कैसे वापसी कर सकती है। ऐसे में जयंत चौधरी फिलहाल इधर जाऊं या ऊधर जाऊं को लेकर गहरे असमंजस में हैं। पिछले दो लोकसभा चुनावों में जीरो पर रहने वाली जयंत चौधरी की आरएलडी बीते विधान सभा चुनाव में भी कोई खास प्रदर्शन नही कर सकी थी। सपा गठबन्धन में शामिल होने के बावजूद आरएलडी 33 सीटों पर चुनाव लड़ कर मात्र आठ सीटे ही जीत पाई थी।
इससे पहले 2017 में तो आरएलडी मात्र एक सीट पर निपट गई थी। 2022 विधानसभा के चुनावों के बाद चुनाव आयोग द्वारा अप्रैल में आरएलडी का राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा समाप्त किया जा चुका है। ऐसे में लोकसभा चुनाव जयंत चौधरी की पार्टी द्वारा किसी नए चुनाव चिन्ह के साथ लड़ा जाना है। नए चुनाव चिन्ह के साथ मौजूदा समीकरण में बीजेपी के साथ वें कैसे लड़ सकेंगे। इसकी चिंता उन्हें खाए जा रही है। सपा के साथ गठबंधन टूटा नहीं है लेकिन,जयंत अब उस स्थिति में ही सपा के साथ आगे चल सकते हैं जब सपा के गठबन्धन में कांग्रेस और बसपा या फिर इन दोंनो में से एक पार्टी शामिल हो।
पार्टी का आकलन है कि यूपी में विपक्षी खेमें में कांग्रेस,सपा,बसपा और आरएलडी का गठबन्धन ही बीजेपी को हरा सकता है। असल मुश्किल यही है कि इन चारों दलों के यूपी में एक साथ आने की संभावना फिलहाल कम ही दिख रही है। आरएलडी सूत्रों की मानें तो बीजेपी भी जयंत चौधरी को अपने पाले में लाने में दिलचस्पी दिखा रही है। 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान तो अमित शाह जाट नेताओं के साथ बैठक में जयंत को एक तरह से बीजेपी के गठबन्धन में शामिल होने का खुला निमन्त्रण दे भी चुके हैं। गौरतलब है कि अमित शाह ने जयंत चौधरी के अखिलेश के गठबंधन पर कहा था कि जयंत ने गलत घर चुन लिया है, उन्हें नुकसान होगा। शाह ने तब जाट नेताओं से कहा था कि बीजेपी को आरएलडी से कोई परहेज नहीं है और आप लोग जयंत से अगले चुनाव के लिए बात कर लीजिए।
यहां भी जयंत के लिए यही मुश्किल है कि अगर वें बीजेपी के साथ जाते हैं तो मुसलमान साथ छोड़ देंगे। जो कि आरएलडी की राजनीति सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा। के लिए इससे हालांकि यह भी सच्चाई है कि राजनीति कौन कब किसका दोस्त बन जाए और कब दुश्मन कुछ नहीं कहा जा सकता है। अगर ऐसा नहीं होता तो 2009 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ती। इस चुनाव में बीजेपी से ज्यादा फायदा आरएलडी को मिला था। पश्चिमी यूपी में आरएलडी को पांच सीटें मिलीं जबकि बीजेपी को महज 10 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा था। इसलिए इस बार जैसा कि सूत्रों का कहना है कि बीजेपी जयंत चौधरी को गठबंधन में आने का ऑफर तो दे रही है। लेकिन,शर्त यही है कि जयंत चौधरी को अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय करना पड़ेगा।
यहां यह भी बता दें कि रालोद अभी तक बीजेपी से लेकर कांग्रेस और बसपा सहित सभी प्रमुख दलों के साथ हाथ मिला चुकी है। ऐसे में देखना है कि 13 और 14 जुलाई को बेंगलुरू में होने वाली विपक्षी पार्टियों की बैठक जयंत चौधरी शामिल होते हैं या नहीं। अगर जयंत इस बैठक में भी शामिल नहीं होते हैं तो 2024 के लोकसभा चुनाव में जयंत किस पाले में जाएंगे। इस बारे में काफी कुछ साफ हो जाएगा।