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Meerut News: मलियाना नरसंहार कांड में मेरठ कोर्ट के फैसले के खिलाफ यूपी सरकार ने HC में की अपील, पीड़ितों में न्याय की उम
Meerut News:अतिरिक्त जिला सरकारी वकील (एडीजीसी) सचिन मोहन ने आज न्यूजट्रैक से बातचीत में पुष्टि करते हुए बताया कि राज्य सरकार ने फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की है।
Meerut News: यूपी सरकार ने मई 1987 के मेरठ के मलियाना नरसंहार मामले में सबूतों के अभाव में सभी 39 आरोपियों को बरी करने के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश लखविंदर सिंह सूद की अदालत के 31 मार्च, 2023 के आदेश को चुनौती दी है। अतिरिक्त जिला सरकारी वकील (एडीजीसी) सचिन मोहन ने आज न्यूजट्रैक से बातचीत में पुष्टि करते हुए बताया कि राज्य सरकार ने फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की है। उन्होंने कहा कि मामले की अगली सुनवाई अक्टूबर में होगी। सरकारी वकील सचिन मोहन ने को बताया, अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के निर्णय से सरकार और हम लोग संतुष्ट नहीं थे। इसलिए यूपी सरकार ने हाईकोर्ट में अपील कर दी। उन्होंने बताया कि यह सरकार की वैधानिक प्रक्रिया होती है। हर जजमेंट की एक समीक्षा होती है। समीक्षा के बाद यह देखा जाता है कि इसमें अपील करने का आधार है या नही। इस मामले में अपील करने के आधार पर्याप्त माने गये। जजमेंट से संतुष्ट नहीं थी सरकार तो अपील कर दी गई। इस मामले में सुनवाई अक्टूबर में होगी।
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साल 1987 में मेरठ के मलियाना गाँव में 72 मुसलमानों की हत्या की गई थी और उनके घर जला दिए गए थे। 36 साल के इंतज़ार और 900 सुनवाइयों के बाद बीते 31 मार्च, 2023 को कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया और इस केस में सभी अभियुकत बरी हो गए। "इस साल 21 मार्च को कोर्ट ने मलियाना नरसंहार कांड में 39 आरोपियों को बरी कर दिया था। मेरठ कोर्ट के इस फैसले के बाद से पीड़ित पक्ष में काफी रोष था। बता दें कि 24 मई, 1987 को मोहम्मद याकूब ने मलियाना में हुए नरसंहार को लेकर एफ़आईआर दर्ज कराई थी। इस मामले में 94 लोगों को नामज़द किया गया था। जिन 94 लोगों के नाम लिखे गए, उनमें से कई लोगों की मौत हो गई और कई का कभी पता ही नहीं लग सका। इस मामले में कुछ ऐसे लोगों को भी नामज़द कर लिया गया था, जो घटना के पहले ही मर चुके थे। लिहाज़ा ये ट्रायल 38 अभियुक्तों के ख़िलाफ़ चला।
वरिष्ठ पत्रकार क़ुर्बान अली (जो पूर्व डीजीपी विभूति नारायण राय के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस मामले की पैरवी कर रहे हैं) ने राज्य सरकार के इस कदम का स्वागत करते हुए कहा कि इस मामले में वादी सहित 10 गवाहों ने अदालत में गवाही दी, लेकिन पर्याप्त सबूतों के आधार पर अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ मामला साबित करने में सफल नहीं रहा। इस बीच, 31 मार्च के निचली अदालत के फैसले के खिलाफ सीआरपीसी अधिनियम की धारा 372 के तहत एक आपराधिक अपील भी नरसंहार के तीन पीड़ितों मोहम्मद याकूब, वकील अहमद और इस्माइल खान ने 27 जून को उच्च न्यायालय में दायर की थी और इस पर 11 जुलाई को सुनवाई हुई। उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायमूर्ति नंद प्रभा शुक्ला की पीठ ने मामले में उत्तर प्रदेश राज्य और 39 आरोपियों सहित उत्तरदाताओं को नोटिस जारी करने का आदेश पारित किया।
इस मामले में मुख्य गवाह 63 वर्षीय याक़ूब ने कहा, "मैं 31 मार्च के फैसले के बारे में जानकर हैरान रह गया, इसलिए हमने फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की।". एक अन्य याचिकाकर्ता, 61 वर्षीय वकील अहमद ने कहा, मुझे याद नहीं कि मैं सुनवाई के लिए कितनी बार अदालत गया। निचली अदालत के फैसले ने हमें चौंका दिया। हम आभारी हैं कि उच्च न्यायालय ने हमारी अपील स्वीकार कर ली। हमें उम्मीद है कि हमें न्याय मिलेगा।"