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Exclusive: श्रमिकों का पलायन: फिर गांव से शहर की तरफ बढ़े प्रवासी, अब छोड़ रहे घर

वक्त-वक्त की बात है। कुछ माह पूर्व तक प्रवासी श्रमिकों की महानगरों से अपने गांवों की ओर वापसी का मुद्दा सुर्खियों में था और आज तस्वीर बिल्कुल उलट गई है।

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Published on: 29 July 2020 12:11 PM GMT
Exclusive: श्रमिकों का पलायन: फिर गांव से शहर की तरफ बढ़े प्रवासी, अब छोड़ रहे घर
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झांसी: वक्त-वक्त की बात है। कुछ माह पूर्व तक प्रवासी श्रमिकों की महानगरों से अपने गांवों की ओर वापसी का मुद्दा सुर्खियों में था और आज तस्वीर बिल्कुल उलट गई है। प्रवासी श्रमिकों ने दो जून की रोटी की खातिर महानगरों की राह पकड़ ली है। प्रतिदिन हजारों की संख्या में प्रवासी श्रमिक उम्मीदों की गठरी लिए रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के इंतजार में बैठे रहते हैं। कोरोना काल में ही तस्वीर के दो पहलू देखकर लोग भी हैरान हैं। जिन्होंने महामारी से जान बचाने को गांव का रुख किया था, अब वही रोजगार के लिए जान जोखिम में डालकर फिर महानगरों को जाने को मजबूर हैं।

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देश में कोरोना वायरस के मामले प्रकाश में आते ही सरकार ने हरसंभव कदम उठाने शुरू कर दिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 मार्च से पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा कर दी। लॉकडाउन की अवधि बढ़ने से महानगरों में फंसे प्रवासी श्रमिकों के सब्र का बांध टूटने लगा। लॉकडाउन के नियमों की परवाह किए बगैर हजारों की संख्या में प्रवासी श्रमिक सपरिवार अपने घरों की ओर निकल पड़े। प्रवासी श्रमिकों का रेला सड़कों पर उमड़ पड़ा। कई-कई दिनों पैदल चलकर लोग अपने घर पहुंचे तो लगा कि उन्हें नया जीवन मिला है। सरकार को स्पेशल श्रमिक ट्रेन चलानी पड़ी। पर कोरोना काल में चंद महीने ही प्रवासी श्रमिकों का गांवों से मोह भंग होने लगा है। गांवों में रोजगार के उचित अवसर नहीं मिलने से कई परिवारों के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है। ऐसे में लोगों को अब पुनः महानगरों से ही उम्मीद है।

ऐसे ही नहीं छोड़ रहे अपनी माटी

कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान विपरीत परिस्थितियों में भी अनेक कष्ट झेल कर जो लोग अपने घर पहुंचे थे वे यूं ही गांव से फिर पयालन को मजबूर नहीं हुए। सरकार द्वारा इनके लिए कई कदम उठाए गए पर प्रवासी श्रमिकों का मानना है कि इनसे उनका जीवनभर का गुजारा नहीं होगा। उन्हें महानगरों में अपनी मेहनत का जो मूल्य मिलता था वह गांवों में नहीं मिल रहा है। ऐसे में महानगरों में ज्यादा आमदनी हो जाती है। यही कारण है कि अनेक श्रमिक महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब और दक्षिण भारत के कुछ बड़े महानगरों को पलायन कर रहे हैं।

महानगरों में है श्रमिकों की कमी

लॉकडाउन के दौरान सभी कारखानों में ताले पड़ गए थे। सभी उद्योग-धंधे बंद होने के कारण प्रवासी श्रमिकों की नौकरियां समाप्त हो गई थी। इसी बीच प्रवासी श्रमिकों ने गांवों को पलायन कर दिया। लॉकडाउन खत्म होने के बाद जब सरकार के दिशा-निर्देश के अनुसार फैक्ट्रियों के ताले खुले तो वहां काम करने के लिए मजदूर ही नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में फैक्ट्री मालिकों ने अपने पुराने मजदूरों से सम्पर्क साधा और उन्हें पुनः काम पर लौटने को कहा। कुछ मालिक तो अपने मजदूरों को पहले से अधिक सुविधा व वेतन देने का लालच भी दे रहे हैं। इसी कारण प्रतिदिन हजारों प्रवासी श्रमिक महानगरों को जाने को आतुर नजर आ रहे हैं।

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कोरोना से डर हुआ है कम

देश में जब कोरोना के मामले बेहद सीमित थे तो लोगों में इस खतरनाक वायरस के प्रति भय चरम पर था लेकिन जैसे-जैसे देश में कोरोना के केस बढ़ते गए लोगों का डर भी कम हो रहा है। लोगों का कहना है कि इस वायरस से लड़ने के लिए आवश्यक सावधानियां रखी जाएं तो इसके आक्रमण से बचा जा सकता है। इसी प्रकार कोरोना संक्रमितों के स्वस्थ होने (रिकवरी रेट) में लगातार वृद्धि होने से भी लोगों में हौंसला जगा है कि कोरोना को मात दी जा सकती है। लोग अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर कोरोना को परास्त कर रहे हैं।

बी.के. कुशवाहा -झांसी

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