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मोतीलाल नेहरू पुण्यतिथि- देश के सबसे महंगे बैरिस्टर बाबू, लेते थे इतनी फीस

मोती लाल नेहरू ने अपने बेटे जवाहर लाल नेहरू को यह बताते हुए लिखा था, “मेरे दिमाग में स्पष्ट है कि मैं धन कमाना चाहता हूं लेकिन इसके लिए मेहनत करता हूं और फिर धन कमाता हूं।"

Chitra Singh
Published on: 6 Feb 2021 11:21 AM IST
मोतीलाल नेहरू पुण्यतिथि- देश के सबसे महंगे बैरिस्टर बाबू, लेते थे इतनी फीस
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मोतीलाल नेहरू पुण्यतिथि- देश के सबसे महंगे बैरिस्टर बाबू, लेते थे इतनी फीस

लखनऊ: कश्मीरी पंडित परिवार में जन्मे मोतीलाल नेहरू का आज पुण्यतिथि हैं। उनका निधन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 6 फरवरी 1931 को हुआ था। कहा जाता है कि वह अपने जमाने के सबसे वरिष्ठ और महंगे वकील हुआ करते थे।

कश्मीरी पंडित के परिवार में जन्मे थे मोतीलाल नेहरू

मोतीलाल नेहरू का जन्म 6 मई, 1861 को आगरा में कश्मीरी पंडित के परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम गंगाधर था। 1857 में गंगाधर दिल्ली में एक पुलिस अधिकारी के पद पर कार्यरत थे। वहीं मोतीलाल नेहरू के दादा दिल्ली में ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले अधिवक्ता थे। बताया जाता है कि मोतीलाल नेहरू के जन्म के तीन महीने बाद ही उनके पिता की मृत्यु हो गई, जिसके बाद वे अपना बचपन राजस्थान के खेतड़ी में व्यतीत किया था।

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कुश्ती में लगता है था उनका मन

कांग्रेस पार्टी की आधिकारिक वेबसाइट पर मोतीलाल नेहरू के बारे में जानकारी दी गई है कि मोतीलाल नेहरू को बचपन से ही एथलेटिक, आउटडोर खेल के शौक था, खासकर उनका मन कुश्ती में ज्यादा लगता था। बता दें कि वे कानपुर से मैट्रिक पास करके इलाहाबाद के म्योर सेण्ट्रल कॉलेज में दाखिला लिया था। मोतीलाल नेहरू अपने दादा की तरह वकील बनाना चाहते थे।

Motilal Nehru's death anniversary

कैम्ब्रिज से की वकालत

उस दौर में एक सफल वकील बनना एक बड़ी उपलब्धि थी। मोतीलाल नेहरू को कानून की पढ़ाने के लिए उनके बड़े भाई नंदलाल नेहरू ने उनको कैम्ब्रिज भेजा। कैम्ब्रिज में उनहोंने ‘बार ऐट लॉ’ की उपाधि प्राप्त की। उपाधि प्राप्त करने के बाद वह अंग्रेजी न्यायालयों में अधिवक्ता के रूप में अभ्यास शुरू किया।

भाषा शैली थी उनकी पहचान

कहा जाता है कि मोतीलाल नेहरु का रुतबा सबसे अगल था। उनकी भाषा शैली ऐसी थी कि वे जहां भी जाते थे वहां छा जाते थे। उस दौर में बैरिस्टरों का रुतबा भी कुछ अलग हुआ करता था। 1988 में मोतीलाल नेहरू ने जब इलाहाबाद में अपनी प्रैक्टिस शुरु की तब उनके लिए कुछ चीजे आसान नहीं थी। बताया जाता है कि उस समय अंग्रेज भारतीय बैरिस्टरों को ज्यादा महत्व नहीं दिया करते थे, लेकिन मोतीलाल नेहरू की भाषा शैली और मुकदमों की पेशी ने लगभग सभी अंग्रेजों को अपनी ओर आकर्षित कर रखा था।

सदाशिवम ने मोतीलाल के बारे में कही ये बात

मोतीलाल नेहरू के बारे में पी. सदाशिवम लिखते है, “उन्हें हाईकोर्ट में पहले केस के लिए पांच रुपए दिए गए। फिर वो तरक्की की सीढियों पर चढ़ते गए। उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिर बाद में उन्हें एक केस लड़ने के लिए बहुत अधिक पैसे मिलने लगे, जो हजारों में थे। मोतीलाल को जब तरक्की मिलती गई तो उनके पास बड़े जमींदारों, तालुकदारों और राजे-महाराजों के जमीन से जुड़े मामले आने लगे। वो धीरे-धीरे देश के सबसे महंगे वकीलों में शामिल हो गए। उनका रहन सहन यूरोपियन वाला था। वो बिल्कुल यूरोपियन जैसे कोट पैंट, घड़ी पहनते थे और उनकी शानोशौकत भी बिल्कुल वैसी ही थी। 1889 के बाद वो लगातार मुकदमों के लिए इंग्लैंड जाने लगे। मोतीलाल वहां जाकर महंगे होटलों में ठहरा करते थे।”

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सबसे ज्यादा धन कमाना चाहते थे मोतीलाल नेहरु

अपनी वाकपटुता और मुकदमों की पेशी के कारण वे 1900 के बाद कई सालों तक देश के सबसे धनी वकीलों की लिस्ट में शीर्ष पर रहें। उन्होंने खुद ये कहा था कि उन्हें सबसे धनी इंसान बनाना है। मोती लाल नेहरू ने अपने बेटे जवाहर लाल नेहरू को यह बताते हुए लिखा था, “मेरे दिमाग में स्पष्ट है कि मैं धन कमाना चाहता हूं लेकिन इसके लिए मेहनत करता हूं और फिर धन कमाता हूं। हालांकि बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो इससे कहीं ज्यादा पाने की इच्छा रखते हैं लेकिन मेहनत नहीं करते।”

ऐसा था उनका रूतबा

जैसा कि हमने आपको बताया था कि मोतीलाल नेहरू रूतबा सबसे अलग था। उनके पास शानोशौकत की कमी नहीं थी। उनकी इन्ही शानोशौकत के बारे में कहा जाता है कि उनके पहनने वाले कपड़ें लंदन से बनकर आते थे और धुलाई के लिए यूरोप जाया करती थी। इतना ही नहीं इलाहाबाद की सड़कों पर दौड़ने वाली सबसे महंगी का उनके ही परिवार की हुआ करती थी। उनकी कारें विदेश से मंगाई जाती थी।

Motilal Nehru- Mahatma gandhi

वकालत छोड़ शामिल हुए आजादी के आंदोलन में

बताते चलें कि 1920 में मोतीलाल नेहरू ने महात्मा गांधी से मिलें थे। बापू से मिलने के बाद वह वकालत छोड़ देश की आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए। जब मोतीलाल नेहरू ने अपनी बैरिस्टर के पद को छोड़ा, तब वो वकालत के लिस्ट में सबसे शीर्ष थे, उनके पास अथाह संपत्ति थी। कहा जाता है कि कांग्रेस को जब भी पैसेें की कमी होती थी, तो मोतीलाल नेहरू ने पार्टी को आर्थिक सहायता देकर उन्हें उनकी परेशानियों से उबारते थे। बता दें कि मोतीलाल नेहरू कांग्रेस पार्टी के 2 बार अध्यक्ष पद के लिए चुने जा चुके थें।

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