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दल बदलने में माहिर हैं नरेश अग्रवाल व संजय सिंह

seema
Published on: 2 Aug 2019 8:18 AM GMT
दल बदलने में माहिर हैं नरेश अग्रवाल व संजय सिंह
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दल बदलने में माहिर हैं संजय सिंह व नरेश अग्रवाल

लखनऊ: यूपी की राजनीति के दो धुरंधरों की इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। चर्चा उनकी जनसेवा की नहीं बल्कि इन दोनों नेताओं के दल बदलने को लेकर हो रही है कि दल बदलने की होड़ में कौन आगे है। यहां हम बात कर रहे हैं संजय सिंह और नरेश अग्रवाल की। ये दोनों ही नेता मूल रूप से कांग्रेसी हैं और कई दलों में शामिल होने के बाद इन दिनों भाजपा में हैं।

पांच बार दल बदल चुके हैं संजय सिंह

संजय सिंह 1989 से अब तक 5 बार दल बदल चुके हैं। उनका सफर जनता दल, सजपा, भाजपा, फिर कांग्रेस और अब फिर वापस भाजपा पर आकर टिक गया है। 1977 में संजय गांधी के साथ दोस्ती को लेकर चर्चा में रहे संजय गांधी 1980 में पहली बार चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे। 1989 में जब वीपी सिंह की हवा चली तो उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और वीपी सिंह के हमराही हो गए। भाजपा की मदद से सतीश शर्मा को हराया। इसके बाद जब केंद्र में चंद्रशेखर की सरकार गठित हुई तो वह उनकी पार्टी सजपा में शामिल हो गए। जब प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार बनी तो 1998 में वह भाजपा में शामिल हो गए और अमेठी से चुनाव लड़कर कांग्रेस के सतीश शर्मा से उनकी सीट छीन ली।

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सोनिया से हारकर फिर कांग्रेसी हुए

1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर एक बार फिर उन्होंने अमेठी से अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन तब तक गांधी परिवार की बहू सोनिया गांधी का राजनीति में पदार्पण हो चुका था। इस चुनाव में वह सोनिया गांधी से चुनाव हार गए। जब सोनिया गांधी अमेठी से सांसद बन गईं तो संजय सिंह ने कांग्रेस के साथ चलने का फैसला लिया। इस बीच 2004 में अटल सरकार गिर चुकी थी और केंद्र में कांग्रेस सरकार का गठन हो चुका था। 2009 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से राहुल गांधी के चुनाव लडऩे के कारण उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर सुलतानपुर का रुख किया और इस सीट से चुनाव जीता।

मोदी लहर में फिर भाजपाई हुए संजय

जब 2014 में मोदी लहर दिखाई पड़ी तो कहा गया कि वह भाजपा में जा रहे हैं। इस पर कांग्रेस में दबाव बढ़ा और उन्हें पार्टी ने असम से राज्यसभा भेजा। जब 2019 में लोकसभा चुनाव हुए तो उन्होंने अपनी किस्मत सुलतानपुर से आजमाई, लेकिन कभी पारिवारिक मित्र रहे स्व.संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी से बुरी तरह से चुनाव हारे। यहां तक कि इस चुनाव में वह अपनी जमानत भी नहीं बचा सके। अब उन्होंने फिर भाजपा का दामन थाम लिया है।

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भाजपा के मददगार बने नरेश अग्रवाल

2009 में मुलायम सिंह यादव की नीतियों में आस्था व्यक्त कर अपने कुनबे समेत सपा में शामिल होने के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव के पहले नरेश अग्रवाल ने जब मुलायम सिंह के खिलाफ मुंह खोला तो राजनीति के जानकारों को तनिक भी अचरज नहीं हुआ।

नरेश अग्रवाल मूलरूप से कांग्रेसी परिवार से राजनीति में आए। 1997 में उन्होंने लोकतांत्रिक कांग्रेस बना ली और बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री भी बने। 2002 का चुनाव उन्होंने सपा के टिकट पर लड़ा और फिर मुलायम की अगुवाई वाली प्रदेश सरकार में परिवहन मंत्री भी बने। 2007 का चुनाव भी वह समाजवादी पार्टी से जीते, लेकिन प्रदेश में जब मायावती की सरकार बनी तो उन्होंने सपा से नाता तोड़ लिया और बसपा में शामिल हो गए। बसपा में शामिल होने के बाद मायावती ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया। जब वह लोकसभा का चुनाव हार गए तो उन्हें राज्यसभा भेजा गया।

2012 के विधानसभा चुनाव में हवा का रुख भांपकर उन्होंने बसपा से मुंह मोड़ लिया और कुनबे समेत फिर सपा में शामिल हो गए। बाद में वह सपा के दम पर 2012 में एक बार फिर राज्यसभा पहुंच गए।

बयान देकर भी बहन जी को छोड़ा

28 मई 2008 को जब वे बसपा में शामिल हुए थे तो उन्होंने कहा था कि अब पूरा राजनीतिक जीवन बहन जी को अर्पित कर रहा हूं। मायावती देश की भावी कर्णधार हैं। इसके बाद जब 30 दिसंबर 2011 को सपा में शामिल हुए तो कहा कि मुलायम सिंह को सीएम बनाकर ही चैन लूंगा। इसके बाद जब 2017 में अखिलेश यादव की प्रदेश सरकार चली गयी और देश में मोदी का जादू चलना शुरू हो गया तो उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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