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मुहर्रम में होली: अवध के नवाब का था ये नवाबी शौक
नवाब वाजिद अली शाह बेहद उत्साह के साथ होली खेलते थे । होली से उन्हें इतना प्रेम था कि उन्होंने होली पर कई कविताएं तक रच डाली थीं । उनके जीवन से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा होली के लिए उनके प्यार और अवध के लोगों के बीच भाईचारे को बताने के लिए काफी है ।
लखनऊ: होली का त्यौहार उत्साह, प्रेम और सौहार्द्र का है साथ ही हिन्दू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है । उत्तर प्रदेश में होली खेलने का प्रचलन कोई नया नहीं है । यह त्यौहार अवध के कुछ नवाबों ने भी अपने ही अंदाज में खेला है । दुनिया उनके होली खेलने के अंदाज से भी जानती है । ऐसे ही थे अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह ।
नवाब वाजिद अली शाह को होली खेलना काफी पसंद था । उनसे जुड़ा एक किस्सा भी काफी प्रचलित है । बताया जाता है कि मुहर्रम का मातम भी इस नवाब को होली खेलने से नहीं रोक पाया था ।
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नवाब वाजिद अली ने होली पर कई कविताएं भी रची हैं...
नवाब वाजिद अली शाह बेहद उत्साह के साथ होली खेलते थे । होली से उन्हें इतना प्रेम था कि उन्होंने होली पर कई कविताएं तक रच डाली थीं । उनके जीवन से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा होली के लिए उनके प्यार और अवध के लोगों के बीच भाईचारे को बताने के लिए काफी है ।
नवाब वाजिद अली शाह के शासन में एक बार ऐसा हुआ.....
नवाब वाजिद अली शाह के शासन में एक बार ऐसा हुआ कि होली और मुहर्रम संयोग से एक ही दिन पड़ गए । होली खुशी का त्योहार है, जबकि मुहर्रम मातम का दिन है । इसलिए हिंदुओं ने मुसलमानों की भावनाओं का सम्मान करते हुए होली न खेलने का फैसला किया ।
लेकिन जब ये बात नवाब वाजिद अली शाह को पता चली तो उन्होंने ऐसा निर्णय लिया कि सब अवाक रह गए ।
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जब एक ही दिन मुहर्रम और होली पड़ गई.....
वाजिद अली शाह ने हिंदुओं से पूछा कि आखिर वे इस साल होली क्यों नहीं खेलना चाहते । जवाब में हिंदुओं ने बताया कि वे मुहर्रम की वजह से ऐसा कर रहे हैं । इसके बाद वाजिद अली शाह ने कहा चूंकि हिंदुओं ने मुसलमानों की भावनाओं का सम्मान किया है, इसलिए अब ये मुसलमानों का फर्ज है कि वो भी हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करें ।
नवाब वाजिद अली शाह ने इसके बाद घोषणा करवाकर सबको सूचित किया कि पूरे अवध में उसी दिन होली मनाई जाएगी । खास बात यह कि वो खुद इस होली में हिस्सा लेने के लिए पहुंचेंगे ।
नवाब वाजिद अली शाह की प्रसिद्ध ठुमरी भी है
नवाब वाजिद अली शाह अपनी इस घोषणा के बाद पहले व्यक्ति थे जो होली खेलने वालों में सबसे पहले शामिल हुए । नवाब वाजिद अली शाह की प्रसिद्ध ठुमरी भी है-
मोरे कन्हैया जो आए पलट के, अबके होली मैं खेलूँगी डटके
उनके पीछे मैं चुपके से जाके, रंग दूंगी उन्हें भी लिपटके' ।
नवाब वाजिद अली शाह 'ठुमरी' संगीत विधा के जन्मदाता के रूप में जाने जाते हैं । उनके दरबार में हर रोज संगीत का जलसा हुआ करता था । इनके समय में ठुमरी को कत्थक नृत्य के साथ गाया जाता था ।
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इस प्रसिद्ध ठुमरी को गाते हुए सबको अलविदा कहा था
नवाब वाजिद अली शाह ने कई बेहतरीन ठुमरियां रची । माना जाता है कि अवध पर कब्जा करते समय अंग्रेजों ने जब नवाब वाजिद अली शाह को देश निकाला दे दिया था तो उन्होने
'बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय्' इस प्रसिद्ध ठुमरी को गाते हुए सबको अलविदा कहा था । वाजिद अली शाह अमजद अली शाह के पुत्र थे । ये लखनऊ और अवध के नवाब रहे । इनके बेटे बिरजिस कद्र अवध के अंतिम नवाब रहे ।