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यहां हर रात होती है श्रीकृष्ण रासलीला, देखने वाला हो जाता है पागल

 शाम होते ही निधिवन को बंद करके लोगों को यहां से बाहर निकाल दिए जाते हैं क्योंकि माना जाता है कि यहां प्रत्येक रात को श्री कृष्ण आकर गोपियों संग रासलीला करते हैं। यदि कोई व्यक्ति इन्हें देखता है तो वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है या उसकी मृत्यु हो जाती है।

suman
Published on: 17 Aug 2019 2:36 AM GMT
यहां हर रात होती है श्रीकृष्ण रासलीला, देखने वाला हो जाता है पागल
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जयपुर: भारत में ऐसे कई स्थान हैं जहां रहस्यमयी और चमत्कारों की कहानियां सुनने को मिलती हैं। वृंदावन भी इन्ही में एक है, जहां भगवान कृष्ण का बचपन गुजरा था। वहीं पर निधि वन है जहां माना जाता है कि प्रत्येक रात को श्रीकृष्ण देवी राधा और गोपियों के संग रासलीला करते हैं। शाम होते ही निधिवन को बंद करके लोगों को यहां से बाहर निकाल दिए जाते हैं क्योंकि माना जाता है कि यहां प्रत्येक रात को श्री कृष्ण आकर गोपियों संग रासलीला करते हैं। यदि कोई व्यक्ति इन्हें देखता है तो वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है या उसकी मृत्यु हो जाती है। कहते हैं कि एक भक्त निधिवन की झाडियों में छुपा था। सुबह देखने पर वह बेहोश था और उसका मानसिक संतुलन बिगड़ चुका था।

निधिवन में तुलसी के पेड़ हैं। यहां तुलसी का प्रत्येक पौधा जोड़े में है। मान्यता है कि जब श्री कृष्ण और राधा रासलीला करते हैं तो ये तुलसी के पौधे गोपियां बन जाती हैं और प्रात: होने पर तुलसी के पौधे में परिवर्तित हो जाते हैं। यहां लगे वृक्षों की शाखाएं ऊपर की ओर नहीं अपितु नीचे की ओर बढ़ती हैं। ये पेड़ ऐसे फैले हैं कि रास्ता बनाने के लिए इन पेड़ों को डंडे के सहारे रोका गया है।निधिवन के भीतर रंग महल नाम का एक छोटा मंदिर स्थित है। इससे संबंधित मान्यता है कि प्रत्येक रात को श्रीकृष्ण और देवी राधा यहां विश्राम करने आते हैं इसलिए शाम से पूर्व ही रंग महल में चंदन का पलंग, पानी का लोटा, देवी राधा के लिए श्रृंगार का सामान, प्रसाद, पान आदि रख दिया जाता है। संपूर्ण मंदिर की सजावट की जाती है। रात को निधिवन और मंदिर के कपाट बंद कर देते हैं। प्रात: 5 बजे मंदिर के कपाट खोलने पर संपूर्ण सामान फैला हुआ होता है, पान खाया हुआ और जल का पात्र खाली होता है। रंगमहल में भक्त केवल श्रृंगार का सामान ही चढ़ाते है। प्रसाद स्वरुप उन्हें भी श्रृंगार का सामान मिलता है। वन के समीप बने घरों में उस तरफ खिड़कियां नहीं बनाते। स्थानीय लोगों का मानना है कि शाम के बाद कोई इस वन की तरफ नहीं देखता। जिन लोगों ने देखने का प्रयास किया वे अंधे हो गए या फिर पागल हो गए। शाम सात बजे मंदिर की आरती का घंटा बजते ही लोग खिड़कियां बंद कर लेते हैं। कुछ लोगों ने वन की तरफ बनी खिड़कियों को ईंटों से बंद करवा दिया है।निधि वन में ही वंशी चोर राधा रानी का भी मंदिर है। यहां के महंत बताते हैं कि जब राधा जी को लगने लगा कि कन्हैया हर समय वंशी ही बजाते रहते हैं, उनकी तरफ ध्यान नहीं देते, तो उन्होंने उनकी वंशी चुरा ली। इस मंदिर में कृष्ण जी की सबसे प्रिय गोपी ललिता जी की भी मूर्ति राधा जी के साथ है।

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निधिवन में विशाखा कुंड भी है। कहते हैं कि जब श्रीकृष्ण सखियों संग रासलीला कर रहे थे तब उनकी एक सखी को प्यास लगी जिसका नाम विशाखा था। जल न मिलने पर कन्हैया ने अपनी बांसुरी से इस कुंड़ की खुदाई की और उसमें से निकले जल से विशाखा ने अपनी प्यास बुझाई। इस प्रकार यह कुंड़ विशाखा कुंड के नाम से प्रसिद्द हुआ।विशाखा कुंड के साथ ही ठा. बिहारी जी महाराज का प्राकट्य स्थल भी है। कहा जाता है कि संगीत सम्राट एवं धु्रपद के जनक स्वामी हरिदास जी महाराज ने अपने स्वरचित पदों का वीणा के माध्यम से मधुर गायन करते थे, जिसमें स्वामी जी इस प्रकार तन्मय हो जाते कि उन्हें तन-मन की सुध नहीं रहती थी। बांकेबिहारी जी ने उनके भक्ति संगीत से प्रसन्न होकर उन्हें एक दिन स्वप्न दिया और बताया कि मैं तो तुम्हारी साधना स्थली में ही विशाखा कुंड के समीप जमीन में छिपा हुआ हूं। स्वप्न के आधार पर हरिदास जी ने अपने शिष्यों की सहायता से बिहारी जी को वहा से निकलवाया और उनकी सेवा पूजा करने लगे। ठा. बिहारी जी का प्राकट्य स्थल आज भी उसी स्थान पर बना हुआ है। जहा प्रतिवर्ष ठा. बिहारी जी का प्राकट्य समारोह बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। कालान्तर में ठा. श्रीबांकेबिहारी जी महाराज के नवीन मंदिर की स्थापना की गयी और प्राकट्य मूर्ति को वहा स्थापित करके आज भी पूजा-अर्चना की जाती है। जो आज बाकेबिहारी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।

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संगीत सम्राट स्वामी हरिदास जी महाराज की भी समाधि निधि वन परिसर में ही है। स्वामी हरिदास जी श्री बिहारी जी के लिए अपने स्वरचित पदों के द्वारा वीणा यंत्र पर मधुर गायन करते थे तथा गायन करते हुए ऐसे तन्मय हो जाते की उन्हें तन मन की सुध नहीं रहती। प्रसिद्ध बैजूबावरा और तानसेन इन्ही के शिष्य थे। अपने सभारत्न तानसेन के मुख से स्वामी हरिदास जी की प्रशंसा सुनकर सम्राट अकबर इनकी संगीत कला का रसास्वादन करना चाहते थे। किन्तु स्वामी जी का यह दृढ़ निश्चय था की अपने ठाकुर के अतिरिक्त वो किसी का मनोरंजन नहीं करेंगे। इसलिए एक बार सम्राट अकबर वेश बदलकर साधारण व्यक्ति की भांति तानसेन के साथ निधिवन में स्वामी हरिदास की कुटिया में उपस्थित हुए। तानसेन ने जानभूझकर अपनी वीणा लेकर एक मधुर पद का गायन किया। अकबर तानसेन का गायन सुनकर मुग्ध हो गए। इतने में स्वामी हरिदास जी तानसेन के हाथ से वीणा लेकर स्वयं उस पद का गायन करते हुए तानसेन की त्रुटियों की और इंगित करने लगे। उनका गायन इतना मधुर और आकर्षक था की वन के पशु पक्षी भी वहां उपस्तिथ होकर मौन भाव से श्रवण करने लगे। सम्राट अकबर के विस्मय का ठिकाना नहीं रहा।

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