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तेज हुआ पलायनः इस एक दशक में एक करोड़ लोग बने प्रवासी मजदूर
कोराना वायरस संक्रमण के कारण देश भर में लागू लाकडाउन से दूसरे शहरों या राज्यों में काम कर रहे प्रवासी मजदूरों की अपने प्रदेश या घर वापसी पर मचे हो-हल्ले और राजनीति से आप अच्छी तरह से वाकिफ होंगे।
लखनऊ: कोराना वायरस संक्रमण के कारण देश भर में लागू लाकडाउन से दूसरे शहरों या राज्यों में काम कर रहे प्रवासी मजदूरों की अपने प्रदेश या घर वापसी पर मचे हो-हल्ले और राजनीति से आप अच्छी तरह से वाकिफ होंगे। इस दौरान यह भी सामने आया था कि अपने प्रदेश, शहर या गांव में रोजगार उपलब्ध न होने के कारण ही यह मजदूरी या करने दूसरे प्रदेशों में गए।लेकिन क्या आप यह जानते है कि हमारे देश में मजदूरों का सबसे ज्यादा पलायन वर्ष 2001 से 2011 के दशक में हुआ था। इस दौरान करीब एक करोड़ लोग हर साल अपने पैतृक स्थान से दूसरे प्रदेशों या शहरों में रोजगार की तलाश में पहुंचे।
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10 साल में करीब 09 करोड़ लोग शहर में रहने लगे
नीति आयोग द्वारा संयुक्त राष्ट्र में दी गई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2001 से 2011 के बीच ही अपने पैतृक गांव से रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों के शहरों में जाने से इसी दशक में देश के शहरों की आबादी में भी तेजी से वृद्धि हुई। वर्ष 2001 में देश में शहरों में रहने वाली आबादी 28.6 करोड़ थी लेकिन वर्ष 2011 में करीब 09 करोड़ का इजाफा हो गया और यह बढ़ कर 37.7 करोड़ हो गई।
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दरअसल, देश में बह रही उदारीकरण की बयार में उद्योग धंधों की संख्या में वृद्धि हुई। लेकिन यह वृद्धि देश के कुछ चुनिंदा प्रदेशों और शहरों में ही हुई। इसी का नतीजा था कि देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग रोजगार की तलाश में इन शहरों की ओर पलायन करने लगे। इससे शहरों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में भी वृद्धि देखने को मिली। वर्ष 2011-12 में शहरी आबादी के करीब 14 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे थे और करीब 6.33 करोड़ लोग झुग्गी-झोपड़ी वाली बस्तियों में रहते थे। अनुमान है कि अगर रोजगार के लिए पलायन की स्थिति ऐसे ही चालू रही तो वर्ष 2030 तक देश में शहरों की आबादी 60 करोड़ तक पहुंच जायेगी।
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