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One Nation-One Election:यूपी में भाजपा को उठाना पड़ेगा सबसे बड़ा रिस्क, योगी सरकार का अभी लंबा कार्यकाल बाकी
One Nation One Election Effect in UP: वन नेशन-वन इलेक्शन की स्थिति में भाजपा को उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा रिस्क उठाना पड़ेगा क्योंकि योगी सरकार का अभी लंबा कार्यकाल बाकी है।
One Nation One Election Effect in UP: वन नेशन-वन इलेक्शन की दिशा में मोदी सरकार की ओर से कदम बढ़ाए जाने के बाद सियासी हल्कों में सबसे ज्यादा चर्चा उत्तर प्रदेश को लेकर हो रही है। उत्तर प्रदेश को सियासी नजरिए से सबसे अहम माना जाता है और सियासी हल्कों में यह बात हमेशा सुनी जाती है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। वन नेशन-वन इलेक्शन के प्रस्ताव पर सहमति बनने के बाद उत्तर प्रदेश में भी विधानसभा चुनाव कराने होंगे जबकि यहां डेढ़ साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सत्ता में वापसी करने की बड़ी कामयाबी हासिल की थी। वन नेशन-वन इलेक्शन की स्थिति में भाजपा को उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा रिस्क उठाना पड़ेगा क्योंकि योगी सरकार का अभी लंबा कार्यकाल बाकी है।
वैसे मुख्यमंत्री के रूप में अपनी दूसरी पारी खेल रहे योगी आदित्यनाथ ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर प्रतिक्रिया जताते हुए इसे स्वागत योग्य कदम बताया है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए गठित कमेटी का अध्यक्ष बनाए जाने का भी स्वागत किया। उन्होंने कहा कि विकास के लिए एक साथ चुनाव कराया जाना जरूरी है। इसलिए इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए।
2022 में भाजपा को मिली थी बड़ी जीत
उत्तर प्रदेश में पिछले साल फरवरी-मार्च के दौरान विधानसभा चुनाव की सियासी जंग लड़ी गई थी। इस चुनाव में भाजपा की अगुवाई वाला गठबंधन 273 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रहा था। भाजपा ने अकेले 255 सीटों पर जीत हासिल की जबकि अपना दल (सोने लाल) ने 12 सीटों पर कब्जा किया। निषाद पार्टी को 6 सीटों पर जीत हासिल हुई। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी का गठबंधन 125 सीटें ही हासिल कर सका।
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समाजवादी पार्टी को 111 सीटों पर जीत मिली जबकि सहयोगी दल सुभासपा को छह और राष्ट्रीय लोकदल को आठ सीटों पर जीत हासिल हुई थी। सुभासपा ने अब समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ते हुए भाजपा से हाथ मिला लिया है। इस चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली थी जबकि बसपा तो सिर्फ एक सीट पर ही सिमट गई थी।
37 साल बाद योगी ने किया था कमल
पिछले विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सियासी कद और बढ़ गया क्योंकि योगी ने कई सारे मिथक तोड़ते हुए 37 साल बाद भारतीय जनता पार्टी को यूपी की सत्ता पर लगातार दूसरी बार काबिज करने का इतिहास बना दिया। 37 साल पहले कांग्रेस ने बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की थी।
इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निर्धारित पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करते हुए फिर से भाजपा की सत्ता में वापसी करते हुए पार्टी को ऐतिहासिक तोहफा दिया था। यूपी में यह कमाल सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और बसपा मुखिया मायावती जैसे कद्दावर नेता भी नहीं दिखा सके थे। योगी की इस उपलब्धि की पूरे देश के सियासी हल्कों में खूब चर्चा हुई थी।
सबसे बड़े सूबे में सबसे बड़ा चुनावी रिस्क
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 और विधानसभा की 403 सीटें हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान भी सबसे बड़ी सियासी जंग उत्तर प्रदेश में ही लड़ी जाती है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को दिल्ली की सत्ता पर मजबूती से स्थापित करने में उत्तर प्रदेश की ही सबसे बड़ी भूमिका थी। इसलिए वन नेशन-वन इलेक्शन पर यदि सहमति बनी तो उत्तर प्रदेश में भाजपा को सबसे बड़ा चुनावी रिस्क उठाना पड़ेगा। प्रधानमंत्री मोदी की ओर से इस दिशा में पहला किए जाने से साफ है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व यह रिस्क उठाने के लिए तैयार दिख रहा है।
प्रदेश में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री के रूप में अपनी दूसरी पारी खेल रहे हैं और उनके दूसरे कार्यकाल में करीब डेढ़ वर्ष का वक्त ही बीता है। अभी उनका साढ़े तीन वर्ष का कार्यकाल बचा हुआ है। लोकसभा चुनाव के साथ राज्य में विधानसभा चुनाव कराने की स्थिति में भाजपा को उत्तर प्रदेश में काफी पहले चुनाव कराने होंगे जबकि राज्य की मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल फरवरी-मार्च 2027 तक का है। यही कारण है कि सियासी हल्कों में उत्तर प्रदेश को लेकर नई चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है।
सीएम योगी ने किया पहल का स्वागत
मोदी सरकार की ओर से की गई इस पहल पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिक्रिया भी सामने आ गई है। उन्होंने कहा कि वन नेशन-वन इलेक्शन की दिशा में उठाया गया कदम अभिनंदनीय प्रयास है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इसके लिए गठित समिति का अध्यक्ष बनाए जाने का भी स्वागत किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि विकास कार्यों के लिए यह कदम जरूरी है क्योंकि बार-बार चुनाव होने से विकास कार्यों की राह में बाधाएं पैदा होती हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव की प्रक्रिया में डेढ़ महीने से अधिक का समय लग जाता है। इसलिए लोकसभा, विधानसभा और अन्य सभी चुनावों को एक साथ कराया जाना जरूरी है।