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यहां 100 वर्षों के बाद दिखी 'ग्राउंड आर्किड’ की ये दुर्लभ प्रजाति ..

दुधवा टाइगर रिजर्व के अलग-अलग घास के मैदानों में अनुश्रवण कार्य में लगी टीम ने अत्यंत दुर्लभ प्रजाति की वनस्पति ‘ग्राउंड आर्किड’ को खोज निकाला है। इसका वानस्पतिक नाम ‘यूलोफिया ऑब्ट्यूस’ है। जो आर्किड की एक प्रजाति है और आर्किडेसी परिवार की सदस्य है।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 15 July 2020 9:01 PM IST
यहां 100 वर्षों के बाद दिखी  ग्राउंड आर्किड’ की ये दुर्लभ प्रजाति ..
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लखनऊ: दुधवा टाइगर रिजर्व के अलग-अलग घास के मैदानों में अनुश्रवण कार्य में लगी टीम ने अत्यंत दुर्लभ प्रजाति की वनस्पति ‘ग्राउंड आर्किड’ को खोज निकाला है। इसका वानस्पतिक नाम ‘यूलोफिया ऑब्ट्यूस’ है। जो आर्किड की एक प्रजाति है और आर्किडेसी परिवार की सदस्य है। दुधवा अधिकारियों की इस सफलता पर पर्यावरणीय विज्ञान एवं प्रबंधन विभाग उत्तर-दक्षिण विश्वविद्यालय ढाका (बांग्लादेश) के वनस्पति शास्त्री मो. शरीफ हुसैन सौरभ ने जर्मनी से फोन कर बधाई दी है। ये वनस्पति सिर्फ जल प्लावित घास के मैदानों में पाई जाती है। वनस्पति शास्त्रियों के मुताबिक ये दुर्लभ प्रजाति पिछले 100 वर्षों से अधिक समय से देखने को नहीं मिली है।

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पर्यावरणीय विज्ञान एवं प्रबंधन विभाग उत्तर-दक्षिण विश्वविद्यालय ढाका के वनस्पति शास्त्री मो. शरीफ हुसैन सौरभ, वैकाल टील प्रोडक्शन रायल बोटोनिक्ल गार्डन ढाका के रोनाल्ड हालदार और इंग्लैंड के आन्द्रे शूटमैन ने अपने संयुक्त शोध पत्र में बताया है कि यह वनस्पति बांग्लादेश में वर्ष 2008 व 2014 में देखी गई लेकिन वहां इसके फूलों का रंग अलग था। पुराने रिकॉर्ड में उत्तरी भारत व नेपाल में इसके पाए जाने का उल्लेख मिलता है। भारत व नेपाल में इस वनस्पति पाए जाने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। इस प्रजाति को आखिरी बार पीलीभीत में 1902 में देखा गया था। यह अत्यंत दुर्लभ प्रजाति का वनस्पति है।

दुधवा टाइगर रिजर्व के क्षेत्रों में घास के मैदानों के मेनटेनेंस के काम में लगी टीम के सदस्यों को इस दुर्लभ प्रजाति को खोजने का श्रेय जाता है। इस दल में दुधवा पार्क के मुख्य वन संरक्षक संजय कुमार, फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक, कर्तनिया घाट फाउंडेशन के सदस्य फजलुर रहमान, विश्व प्रकृति निधि के समन्यवक मुदित गुप्ता और यश पाठक शामिल हैं। दुधवा नेशनल पार्क करीब 884 वर्ग किमी में फैला हुआ है। यहां पक्षियों की लगभग 400 प्रजातियों के अलावा, हिरन, बाघ, तेन्दुए, और 1984-85 में पुनर्वासित किए गये गैंडे की प्रजातियां पाई जाती हैं।

विलुप्त प्रजाति

ग्राउंड आर्किड को आईयूसीएन (अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ) की रेड डाटा लिस्ट में भी संकटग्रस्त व विलुप्त होती प्रजातियों की श्रेणी में रखा गया है। वनस्पति शास्त्री मोहम्मद शरीफ हुसैन ने जर्मनी से दुधवा के फील्ड डायरेक्टर को फोन कर ‘यूलोफिया आब्ट्यूसा की खोज पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा है कि इस वनस्पति के फल के बारे में कहीं उल्लेख नहीं मिलता जबकि स्थानीय लोगों द्वारा बताया गया है कि ‘यूलोफिया आब्ट्यूसा में फल लगते हुए उन लोगों ने स्वयं देखा है। मो. शरीफ ने अनुरोध किया है कि ‘यूलोफिया आब्ट्यूसा का संरक्षण किया जाए और जैसे ही इसमें फल आए तो उसे सुरक्षित रखा जाए। बताया जाता है कि 19वीं सदी में गंगा नदी के मैदानी इलाकों से वनस्पति वैज्ञानिक इस प्रजाति को यहां ले आए थे।

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ऑर्किड

ऑर्किड वनस्पति जगत के सुंदर पुष्प हैं जिनमें अदभुत रंग-रूप, आकार एवं आकृति तथा लंबे समय तक ताज़ा बने रहने का गुण होता है। अनूठे आकार और अलंकरण के साथ ऑर्किड में जटिल पुष्प संरचना होती है। यह जैव-परागण में सहायता प्रदान करती है तथा इसे अन्य पौधों के समूहों से क्रमिक रूप से श्रेष्ठ बनाती है। भारत में आर्किड की लगभग 1300 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। डेंड्रोबियम, फेलेनोप्सिस, ऑन्किडियम और सिंबिडियम, जैसे ऑर्किड फूलों की खेती हेतु काफी लोकप्रिय हैं।

दुधवा पार्क के एफडी संजय पाठक कहते हैं कि दुधवा में आर्किड प्रजाति का पाया जाना यह साबित करता है कि यहां के घास के मैदानों के स्वास्थ्य की दशा बेहतर है। टाइगर रिजर्व में वनस्पतियों का अच्छी तरह संरक्षण किया जाता है।



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Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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