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सियासी परिदृश्य: यहां तो पक्ष-विपक्ष दोनों भाजपा

raghvendra
Published on: 13 Jun 2023 2:34 PM IST (Updated on: 13 Jun 2023 3:14 PM IST)
सियासी परिदृश्य: यहां तो पक्ष-विपक्ष दोनों भाजपा
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: मुख्यमंत्री के शहर गोरखपुर में शायद पक्ष-विपक्ष दोनों भाजपा ही है। इसे सुनकर भले ही आप चौक रहे हों, लेकिन यह सौ फीसदी सही है। वैसे तो गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ की सियासी एंट्री के बाद रणनीति के तौर पर भाजपा पक्ष-विपक्ष की भूमिका निभाती रही है, लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद सियासी परिदृश्य पूरी तरह बदला-बदला है। कांग्रेस, सपा या बसपा सडक़ों पर सिर्फ रस्मी आंदोलन करती दिख रही है। भ्रष्टाचार हो या फिर जन समस्या, विरोध करने वाला चेहरा भाजपाई ही नजर आता है। पिछले 30 महीने से विपक्ष की भूमिका की बागडोर कभी योगी के करीबी रहे सदर विधायक डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल के हाथों में दिखती है तो कभी स्थानीय पार्षदों के।

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ऐसा नहीं है कि गोरखपुर में विपक्ष के आंदोलन नहीं हो रहे। गोरखपुर में योगी के खिलाफ के नारे भी लग रहे हैं, प्रतीकात्मक शव यात्राएं भी निकाली जा रही हैं मगर यह पूरी तरह रस्मी है। वर्तमान में गोरखपुर में विपक्षी सुर की बात करें तो सिर्फ एक नाम सामने आता है डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल। ये वहीं हैं जिन्हें दो दशक पूर्व आगे कर योगी आदित्यनाथ ने तत्कालीन भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री शिव प्रताप शुक्ला के खिलाफ विरोध का बिगुल फूंक दिया था। योगी न सिर्फ डॉ.राधा मोहन दास अग्रवाल को जिताने में सफल हुए बल्कि शिवप्रताप शुक्ला को नेपथ्य में डाल दिया। हालांकि बदले सियासी हालात और जातीय समीकरण में शिव प्रताप शुक्ला को मोदी मंत्रिमंडल में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री का ओहदा मिला। गोरखपुर में भ्रष्टाचार के जितने भी मामले उजागर हो रहे हैं उनकी अगुवाई सिर्फ डॉ.राधा मोहन दास अग्रवाल ही कर रहे हैं।

आरएमडी कर रहे भ्रष्टाचार का खुलासा

भ्रष्टाचार के मामलों को सत्ताधारी दल का ही नेता उजागर करे इसमें कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन सवाल यह कि विपक्ष क्यों नहीं यह काम कर रहा है। चाहे गोरखपुर विकास प्राधिकरण में लोहिया एन्क्लेव आवासीय योजना में भ्रष्टाचार का मामला हो या फिर गोरखपुर यूनिवर्सिटी में डेढ़ सौ से अधिक नियुक्तियों का। बात नंदा नगर अंडरपास के घटिया निर्माण की हो या फिर अंडरग्राउंड केबल बिछाने में हुए गोलमाल की। सभी मामलों में अगुवाई आरएमडी की ही दिख रही है। दिलचस्प यह है कि भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर कर अपनी ही सरकार की फजीहत कराने वाले डॉ.राधा मोहन दास अग्रवाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंचों पर अगली कतार में ही नजर आते हैं।

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नगर निगम में विरोध की असलियत

दरअसल, गोरखपुर में पक्ष-विपक्ष दोनों होने का फार्मूला खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ही है। गोरखपुर में महापौर की कुर्सी उसी को मिलती रही है जो योगी आदित्यनाथ का करीबी रहे हैं। चाहे सपा के टिकट पर महापौर का चुनाव हारने वाली अंजू चौधरी हों या फिर पूर्व केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री रहे शिव प्रताप शुक्ला खेमे की मानी जाने वाली डॉ.सत्या पांडेय या फिर संघ के करीब माने जाने वाले वर्तमान महापौर सीताराम जायसवाल। तीनों महापौर के चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने मंच साझा करते हुए लोगों से यही अपील की कि मुझे प्रत्याशी मानकर इन्हें वोट दें। तीनों की जीत के बाद नगर निगम में भ्रष्टाचार का विरोध भी खुद योगी ने ही किया है। बतौर सांसद भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर योगी आदित्यनाथ ने अंजू चौधरी और डॉ.सत्या पांडेय के कार्यकाल में नगर निगम पहुंच कर धरना प्रदर्शन किया। अब जब सीताराम जायसवाल महापौर हैं तब भी उन्हें योगी के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। आलम यह है कि नगर निगम लगातार बजट का रोना रो रहा है। कर्मचारियों का वेतन बांटने में भी दिक्कत हो रही है। योगी अपने करीबी पार्षदों से कहते रहते हैं कि नगर निगम भ्रष्टाचार का अड्डा है। यहां जो भी रकम भेजी जाएगी भ्रष्टाचार के भेंट चढ़ जाएगी। अनदेखी का आलम यह है कि गोरखपुर शहर की अंदरूनी सडक़ों का बुरा हाल है। नालियां चोक हैं। फागिंग मशीनें ही नहीं पूर्व की तुलना में कर्मचारियों की संख्या भी घटा दी गई है।

योगी के करीबी पार्षद कर रहे विरोध

नगर निगम का दो वर्ष का कार्यकाल पूरा होने को है, लेकिन अभी तक दस पार्षदों तक का मनोनयन नहीं हो सका है। भाजपा के पार्षद अपने कक्ष में बैठते तक नहीं हैं। उन्हें डर सताता है कि कहीं कोई नागरिक समस्या लेकर न पहुंच जाए। गोरखपुर में 10 करोड़ से बने कान्हा उपवन में गायें मर रही हैं, उन्हें सूखा भूसा खिलाया जा रहा है। यहां भी विरोध का जिम्मा योगी के करीबी पार्षद रामभुआल कुशवाहा ने उठा रखा है। गोरखपुर में सांसद भाजपा के हैं और बसपा विधायक विनय तिवारी को छोडक़र सभी विधायक भी।

बसपा विधायक विनय तिवारी ने किसी मुद्दे पर बयान भले ही दे दिया हो, लेकिन किसी मामले को लेकर सडक़ पर उतरने की जहमत नहीं उठा सके हैं। विपक्षी पार्टियों में कोई चेहरा ऐसा नहीं दिख रहा जिसमें विरोध करने की कूवत हो। कांग्रेस के निवर्तमान जिलाध्यक्ष राकेश यादव कहते हैं कि मुख्यालय के निर्देश पर बिजली, कानून व्यवस्था से लेकर अन्य मुद्दों पर आंदोलन किया गया है। सपा के निवर्तमान जिलाध्यक्ष प्रह्लाद यादव कहते हैं कि भाजपा दमनकारी नीति अपना रही है। इसके बाद भी सपा सडक़ों पर आंदोलन कर रही है। हमनें लाठियां खाई हैं, जेल भी गए हैं।

विरोधी थाम रहे भाजपा का दामन

दम तोड़ रहा विपक्ष या तो खामोश है या फिर भाजपा में शामिल होने में अपना भला समझ रहा है। तमाम नेता भाजपा की छतरी के नीचे आ गए हैं, जो नहीं गए हैं उनका मुद्दों पर समर्थन दिख रहा है। योगी आदित्यनाथ को निषाद बिरादरी से टक्कर मिलती रही है। पूर्व मंत्री जमुना निषाद का परिवार खुद भाजपा और सपा के बीच फंसा दिख रहा है। योगी की बादशाहत को चुनौती देते हुए उपचुनाव में सपा के टिकट पर जीतने वाले प्रवीन निषाद वर्तमान में संतकबीर नगर से भाजपा के सांसद है। सपा नेता रहे भानु प्रकाश मिश्रा भाजपा का दामन थाम चुके हैं। पूर्व एमएलसी और सपा नेता सीपी चंद भी भाजपा का दामन थाम चुके हैं। कभी योगी के साथ रहे और विरोधी खेमे में शामिल पूर्व विधायक विजय यादव ने खामोशी ओढ़ ली है।

विधायकों से मोर्चा ले रहे पार्षद

गोरखपुर के विधायकों और नगर निगम के पार्षदों में खूब मोर्चेबंदी हो रही है। बीते दिनों पिपराइच से भाजपा विधायक महेन्द्र पाल सिंह पर बशारतपुर में पोखरे की जमीन पर कब्जे का आरोप लगाकर भाजपा पार्षद राजेश तिवारी और गिरिजेश पाल ने मोर्चा खोल दिया था। डीएम तक शिकायत पहुंचने के बाद जांच की जद में फंसे महेन्द्र पॉल सिंह को अपने कदम वापस खींचने पड़े थे। वहीं गोरखपुर विकास प्राधिकरण में लोहिया एन्क्लेव आवासीय योजना में भ्रष्टाचार का मामला उछालने वाले डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल को भाजपा के ही पार्षद से खामोश रहने की नसीहत मिली। गोरखपुर ग्रामीण से विधायक विपिन सिंह के खिलाफ भाजपा पार्षद सौरभ विश्वकर्मा की पेशबंदी किसी से छिपी नहीं है।

सवाल उठाने वालों को मिली जुबान

इसमें कोई दो मत नहीं है कि गोरखपुर विश्वविद्यालय में हुई नियुक्तियों को लेकर सवाल हैं, लेकिन कोई भी खुलकर कुछ कहने की स्थिति में नहीं था। पर प्रो. रामअचल सिंह के खुलकर सामने आने के बाद कई सवाल उठाने वालों को जुबान मिल गई है। सवाल उठता है कि नियुक्ति में घोटाला बम फोडऩे के पीछे मंशा क्या है। सवाल उठ रहा है कि कार्यपरिषद के वरिष्ठ सदस्य प्रो. रामअचल सिंह ने लंबे इंतजार के बाद क्यों नियुक्तियों पर सवाल उठाया। सवाल उठाने के पीछे किसी विभाग विशेष की नियुक्ति है या फिर वास्तव में पूर्व कुलपति का जमीर जागा है। प्रो.रामअचल सिंह का कहना है कि कार्यपरिषद में रहते हुए भी सवाल उठाया था। सवालों का वाजिब जवाब मिलता तो मुश्किल ही कहां थी।

नियुक्ति में भ्रष्टाचार को योगी के करीबी ने उछाला

यूनिवर्सिटी में बीते दिनों डेढ़ सौ से अधिक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर की नियुक्ति में गोलमाल को लेकर सोशल मीडिया में खूब आवाज उठ रही थी, लेकिन योगी के करीबी कुलपति की कारगुजारियों को लेकर कोई बोलने वाला नहीं था। इन नियुक्तियों को लेकर पहली आवाज उठाई कार्यपरिषद सदस्य और पूर्व कुलपति रामअचल सिंह ने। प्रो.राम अचल सिंह और गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वीके सिंह दोनों योगी के करीबी हैं। प्रो.वीके सिंह ने गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। वह पूर्वांचल विवि के पूर्व कुलपति प्रो. यूपी सिंह के पुत्र हैं। प्रो.यूपी सिंह वर्तमान में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अध्यक्ष हैं। परिषद के बैनर तले ही योगी आदित्यनाथ के संरक्षण में कई शैक्षणिक संस्थानों का संचालन होता है। प्रो. रामअचल सिंह ने यूनिवर्सिटी में हुई नियुक्तियों को लेकर शिकायती पत्र नगर विधायक डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल को सौंपा है। प्रो.राम अचल सिंह संघ के पुराने कार्यकर्ता भी हैं, जो अहम पदों पर रह चुके हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि वह चाहते तो कुलाधिपति को गोपनीय पत्र लिखकर भी नियुक्ति प्रक्रिया की जांच की सिफारिश कर सकते थे। मीडिया में मामला उछालकर आखिर वह क्या संदेश देना चाह रहे हैं।

पुत्र-पुत्रियों व रिश्तेदारों की नियुक्ति का आरोप

उधर, नगर विधायक डॉ.राम मोहन दास अग्रवाल का कहना है कि अवध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तथा उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. राम अचल सिंह निर्विवाद हैं। उन्होंने लिखित आरोपों का संज्ञान लेते हुए महामहिम राज्यपाल तथा उच्च शिक्षा मंत्री से जांच की मांग की है। प्रो.राम अचल सिंह ने आरोप लगाया है कि विवि में शिक्षकों के पुत्र-पुत्रियों व रिश्तेदारों की नियुक्ति की गई है। हिंदी में प्रो. सुरेंद्र दुबे के पुत्र प्रत्यूष दुबे का चयन प्रोफेसर पद पर, प्रो.अनंत मिश्र के नाती अखिल मिश्र का चयन सहायक आचार्य पद पर हुआ है तो रसायन विज्ञान विभाग में प्रो. जीएस शुक्ल के बेटे डॉ. निखिल कांत और प्रो. एमएल श्रीवास्तव के बेटे डॉ. अखिलेश श्रीवास्तव का चयन सहयुक्त आचार्य पद पर हुआ है। दूसरे विभागों में प्रो. जितेंद्र मिश्र की बेटी डॉ. लक्ष्मी मिश्रा और प्रो. केडीएस यादव के पुत्र डॉ. कमलेश का चयन असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर हुआ है। सबसे गम्भीर आरोप हिन्दी विभाग में 61 वर्ष की उम्र पार कर चुके अरविंद त्रिपाठी की नियुक्ति को लेकर है। आकाशवाणी में सेवारत अरविंद त्रिपाठी की उम्र नियुक्ति के समय 61 वर्ष पार थी और अगले ही वर्ष उन्हें सेवानिवृत्त हो जाना है। शिक्षा विभाग में नियुक्त हुए राजेश कुमार सिंह विभाग के अध्यक्ष और डीन रह चुके प्रो. रामदेव सिंह के बेटे हैं। वहीं सहायक प्रोफेसर की पद पर चुने गए अनुपम सिंह प्रो. सुमित्रा सिंह के शोध छात्र हैं। वहीं नियुक्ति पाए दुर्गेश पाल विभाग की शिक्षिका प्रो. शोभा गौड़ के शोध छात्र हैं।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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