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विधानसभा उपचुनाव: सभी दलों की लड़ाई भाजपा से

raghvendra
Published on: 13 Jun 2023 4:56 PM GMT
विधानसभा उपचुनाव: सभी दलों की लड़ाई भाजपा से
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श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में एक बार फिर चुनाव की रणभेरी बज गयी है। प्रदेश में 11 विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव की तारीख घोषित होते ही सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच एक-दूसरे की पटखनी देने की कवायद शुरू हो चुकी है। यदि चुनावी तैयारियों को देखा जाए तो केवल बसपा ही सभी सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर पाई है जबकि सपा और कांग्रेस प्रत्याशी चयन की राह में आधा रास्ता ही तय कर पाई हैं। भाजपा ने प्रत्याशी चयन में अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। वैसे, सभी दल सत्ताधारी भाजपा से भिडऩे के लिए कमर कस रहे हैं। सभी 11 सीटों पर मुख्य लड़ाई भाजपा और विपक्षी दलों के बीच है।

11 में से नौ सीटों पर काबिज थी भाजपा

उपचुनाव वाली विधानसभा सीटों में फिरोजाबाद की टूंडला को छोडक़र बाकी सीटों पर चुनाव तिथि घोषित हो गई है। इनमें रामपुर, सहारनपुर की गंगोह, अलीगढ़ की इगलास, लखनऊ कैंट, बाराबंकी की जैदपुर, चित्रकूट की मानिकपुर, बहराइच की बलहा, प्रतापगढ़, हमीरपुर, मऊ की घोसी सीट और अंबेडकरनगर की जलालपुर सीट शामिल है।

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2019 के लोकसभा चुनाव में विधायकों के जीतने के कारण ये सीटें रिक्त हुई हैं। लोकसभा चुनाव जीतने वाले योगी सरकार के मंत्रियों सत्यदेव पचौरी, रीता बहुगुणा जोशी और एसपी सिंह बघेल की सीटें भी रिक्त हुई हैं। इसके अलावा घोसी से विधायक रहे फागू चौहान भी बिहार का राज्यपाल बनने के बाद इस्तीफा दे चुके हैं। बाकी सीटों से भाजपा के विधायक सांसद चुने जा चुके हैं। फिलहाल जिन 11 सीटों पर उपचुनाव होगाउनमें से एक सीट रामपुर समाजवादी पार्टी व दूसरी जलालपुर बसपा के कब्जे वाली थी। बाकी नौ सीटें भाजपा के पास ही थीं।

भाजपा के लिए मुश्किल रहे हैं उपचुनाव

आम चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने वाली भाजपा के लिए उपचुनाव जीतना हमेशा मुश्किल भरा साबित हुआ है। साल 2014 के बाद हुए अधिकतर उपचुनाव में भाजपा को शिकस्त मिलती रही है। वर्ष 2012 के बाद में अब तक कुल 12 विधानसभा उपचुनाव हुए हैं। भगवा पार्टी इनमें से केवल तीन लखनऊ पूर्व, नोएडा और सहारनपुर ही जीत पाई है।

लोकसभा उपचुनावों में उसका प्रदर्शन तो और भी खराब है। गोरखपुर, फूलपुर और कैराना में हुए लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को हार मिली थी। पार्टी के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह की अगुवाई में यहा पहला चुनाव होगा। पार्टी के महामंत्री संगठन सुनील बंसल के लिए भी ये उपचुनाव परीक्षा साबित होंगे। इसलिए लोकसभा चुनाव के दौरान जिन बूथों पर भाजपा को पराजय मिली थी, उन पर विशेष अभियान चलाकर स्थानीय समीकरण दुरुस्त करने की रणनीति बनाई गई है।

भाजपा में टिकट के सबसे ज्यादा दावेदार

भाजपा के लिए प्रत्याशियों का चयन करना बेहद कठिन काम साबित हो रहा है क्योंकि एक-एक सीट पर 20 से 25 दावेदारों ने दावेदारी पेश की है। हाल यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव में जिन सांसदों का टिकट कट गया था उन्होंने भी इस बार अपना दावा पेश किया है। बाराबंकी के जैदपुर में 28, लखनऊ के कैंट में 25, टूंडला में 20 दावेदारों ने दावा ठोक रखा है। कहीं-कहीं इनसे भी ज्यादा लोग टिकट मांग रहे हैं। उपचुनाव को लेकर संगठन और सरकार दोनों की ओर से पूरी ताकत झोंकी जा चुकी है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में जनसभा कर कुछ न कुछ घोषणा जरूर कर आए हैं। पार्टी ने उपचुनाव की जीत को सुनिश्चित करने के लिए काफी पहले से ही अपनी तैयारी शुरू कर दी थी। मुख्यमंत्री ने छह सितंबर को सहारनपुर में 450 करोड़ रुपये, सात सितंबर को प्रतापगढ़ में 18 अरब की 165 परियोजनाओं, सात को ही अंबेडकरनगर में 287 करोड़ रुपये, 13 सितंबर को चित्रकूट में 181 करोड़ रुपये, 14 को टुंडला में 391 करोड़ रुपये और 14 सितंबर को ही अलीगढ़ में 1135 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास कर सरकार की ढाई वर्ष की उपलब्धियों और भविष्य की योजनाओं का खाका खींचा है।

प्रत्याशियों की घोषणा में बसपा आगे

दूसरी ओर लोकसभा परिणाम से निराश हुए सपा, बसपा और कांग्रेस के लिए उपचुनाव निराशा या संजीवनी दे सकता है। चुनाव तैयारियों में बसपा मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी से काफी आगे है। बसपा ने प्रत्याशियों के नाम घोषित करने के मामले में भाजपा, कांग्रेस तथा सपा तीनों से बाजी मार ली है। पहली बार उपचुनाव लड़ रही बसपा ने जीतने के लिए दलित-ब्राह्मण-मुस्लिम समीकरण की रणनीति बनाई है। इसके साथ ही पार्टी के समर्पित और पुराने कार्यकर्ताओं पर दांव भी लगाया है। सहारनपुर की गंगोह सीट को छोडक़र पार्टी ने जिन प्रत्याशियों के नाम की घोषणा की है, उनमें आधे ब्राह्मण-मुस्लिम चेहरे ही हैं।

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पार्टी ने 11 सीटों के उपचुनाव में चार सुरक्षित सीटों इगलास, बलहा, टूंडला व जैदपुर को छोडक़र मुस्लिमों व ब्राह्मणों को तीन-तीन टिकट दिए है। उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन के लिए सपा को छोटे दलों से गठबंधन की उम्मीद थी पर अब वह उम्मीद कुछ कमजोर पड़ी है। सपाके संस्थापक सदस्यों में से एक शिवपाल सिंह यादव की एक बार फिर पार्टी में वापसी की खबरों को पार्टी के लिए अच्छा संकेत माना जा रहा है। यदि शिवपाल सिंह यादव सपा में लौटते हैं तो अखिलेश यादव को इसका लाभ मिल सकता है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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