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दीपावली पर हर साल ऐसे उल्लू बनते हैं लोग

हर दीवाली की तरह इस दीवाली पर भी दुर्लभ वन्य प्राणी उल्लू के जीवन पर खतरा मंडराने लगा है। दीपावली पर लक्ष्मी की पूजा होती है। जिसका वाहन उल्लू है पर हर साल बड़े और अमीर लोग लक्ष्मी को अपने घर में कैद करने के लिए उनके वाहन की बलि देते हैं।

Vidushi Mishra
Published on: 23 Oct 2019 10:08 PM IST
दीपावली पर हर साल ऐसे उल्लू बनते हैं लोग
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दीपावली पर हर साल ऐसे उल्लू बनते है लोग

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ : हर दीवाली की तरह इस दीवाली पर भी दुर्लभ वन्य प्राणी उल्लू के जीवन पर खतरा मंडराने लगा है। दीपावली पर लक्ष्मी की पूजा होती है। जिसका वाहन उल्लू है पर हर साल बड़े और अमीर लोग लक्ष्मी को अपने घर में कैद करने के लिए उनके वाहन की बलि देते हैं। जिसके कारण ये उल्लू चोरी-छिपे लाखों रुपए में बेचे जाते है। इस साल दीपावली 27 अक्टूबर को है और इन दिनों उल्लूओं का बाजार बेहद गर्म हो गया है।

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तंत्र मंत्र का सहारा लेते

वैसे तो उल्लूओं के शिकार पर पूरी तरह रोक है और भारतीय वन्य जीव अधिनियम 1972 की अनुसूची 1 के अंतर्गत उल्लू संरक्षित पक्षियों की श्रेणी में आते हैं और उसे पकड़ने, बेचने, मारने पर कम से कम 3 साल जेल की सजा का प्रावधान है।

इसके बावजूद चोरी छिपे इसका शिकार हो रहा है। पर अमीर लोग अपनी अमीरी और बढाने के लिए तंत्र मंत्र का सहारा लेते है तथा तांत्रिक अपनी पूजा के दौरान उल्लू की खोपड़ी, खून, हड्डी समेत अन्य अंगों का प्रयोग करते हैं।

इन दिनों लखनऊ तथा इसके सीमावर्ती जिलों में पक्षी तस्करों के द्वारा इनकी अवैध खरीद-फरोख्त खूब हो रही है। इस समय पक्षी बाजार में एक उल्लू की कीमत रु. 10 हजार से लेकर कुछ विशेष प्रजाति वाले उल्लू को .75000 तक में बेचा जा रहा है।

जानकारों का कहना है कि दीपावली के दिन तांत्रिक तंत्र-मंत्र को जगाने का काम करते हैं। इसके लिए वह उल्लुओं की बलि देते हैं। वन अधिनियम के तहत उल्लुओं का शिकार करना दंडनीय अपराध है।

लेकिन कथित पढ़ा-लिखा और जागरूक समाज स्वार्थ और अन्धविश्वास में इस कदर डूबा है कि वह इस निरीह पक्षी की जान लेने से भी नहीं हिचकता है।

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तांत्रिकों का मानना है कि

अन्धविश्वास है कि इसका पैर धन अथवा गोलक में रखने से समृद्धि आती है। इसका कलेजा वशीभूत करने के काम में प्रयुक्त होता है। आंखों के बारे में अन्धविश्वास है कि यह सम्मोहित करने में सक्षम होता है। तांत्रिक इसके पंखों को भोजपत्र के ऊपर यंत्र बनाकर सिद्ध करते हैं।

तांत्रिकों का मानना है कि उल्लुओं की पूजा सिद्ध करने के लिए उसे 45 दिन पहले से मदिरा एवं मांस खिलाया जाता है। प्रायः उल्लुओं में यह प्रवृत्ति पाई जाती है कि वह तोता की भांति इंसानी भाषा में बात कर सकता है।

इसके लिए तांत्रिक उल्लुओं के सामने नाम या कुछ ना कुछ बोलते रहते हैं। तांत्रिक अनुष्ठान में इसके अस्थि, मंजा, पंख, आंख, रक्त से पूजा की जाती है।

पूरी दुनिया में उल्लू की प्रजातियां

देश में दिन पर दिन पक्षियों की यह प्रजाति खत्म होती जा रही हे। पूरी दुनिया में उल्लू की लगभग 225 प्रजातियां हैं। जिनमें रॉक आउल, ब्राउन फिश आउल, डस्की आउल, बॉर्न आउल, कोलार्ड स्कॉप्स, मोटल्ड वुड आउल, यूरेशियन आउल, ग्रेट होंड आउल, मोटल्ड आउल विलुप्त प्रजाति हैं। पेड़ों के ऊंचे स्थान, पठार के खोडर में उल्लू अपना निवास बनाते हैं। वहां से ये शिकारी इन्हें पकड़ कर लाते हैं और फिर इनकी मनचाही कीमत लेते हैं।

दीपावली के वक्त उल्लू की कीमत 20 गुना बढ़ जाती है। उल्लू के वजन, आकार, रंग, पंख के फैलाव के आधार पर उसका दाम तय किया जाता है। लाल चोंच और शरीर पर सितारा धब्बे वाले उल्लू का रेट 15 हजार रुपए से अधिक होता है। भारत की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार धन की देवी लक्ष्मी उल्लू पर विराजती हैं।

कुछ तांत्रिकों कहना है कि दीपावली में महानिशीथकाल में अर्धरात्रि के समय उल्लू की बलि देने से लक्ष्मी जी की कृपा होती है तथा अन्य तांत्रिक शक्तियां जागृत होती हैं। इसी अंधविश्वास की वज़ह से इन निरीह पक्षियों के अस्तित्व खतरे में है।

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Vidushi Mishra

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