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प्रयागराज: त्रिपौलिया में आज भी कायम है ठंडई पीने-पिलाने की परंपरा

प्रसिद्ध साहित्यकार धर्मवीर भारती ने भांग को लेकर त्रिपौलिया के बारे में लिखा है कि अगर एक किलो भांग पिसी तो तीन पाव में त्रिपौलिया और एक पाव में बाकी शहर। गर्मी से निपटने के लिए आज भी त्रिपौलिया में कुछ लोगों ने ठंडई पीने-पिलाने की परंपरा कायम रखी है।

Roshni Khan
Published on: 2 Jun 2019 8:09 AM GMT
प्रयागराज: त्रिपौलिया में आज भी कायम है ठंडई पीने-पिलाने की परंपरा
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प्रयागराज: भीषण गर्मी के बीच राहत के लिए एसी, कूलर, शरबत और आइसक्रीम को त्रिपौलिया की ठंडई मानों बराबरी की चुनौती देती है जो उस जमाने से लू की काट बनी हुई है जब कहर बरपाती गरमी से निपटने के लिए आधुनिक साधन नहीं थे।

प्रसिद्ध साहित्यकार धर्मवीर भारती ने भांग को लेकर त्रिपौलिया के बारे में लिखा है कि अगर एक किलो भांग पिसी तो तीन पाव में त्रिपौलिया और एक पाव में बाकी शहर। गर्मी से निपटने के लिए आज भी त्रिपौलिया में कुछ लोगों ने ठंडई पीने-पिलाने की परंपरा कायम रखी है।

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प्रयागराज के जीरो रोड स्थित त्रिपौलिया की इस परंपरा के बारे में कांग्रेस के नेता बाबा अवस्थी ने बताया कि ठंडई पीने-पिलाने का शौक इस शहर की जीने की पुरानी कला है। जब बिजली, फ्रिज आदि नहीं थे, उस समय लू की काट ठंडई हुआ करती थी।

उन्होंने बताया कि इस विधा के सबसे बड़े जानकार फिरोज गांधी हुआ करते थे.. वह ठेठ इलाहाबादी थे। जब वह इलाहाबाद में होते थे तो नियमित तौर पर त्रिपौलिया आकर भांग, ठंडई बूटी का सेवन करते थे।

अवस्थी ने बताया कि लाल बहादुर शास्त्री के खिलाफ इलाहाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले पंडित राधेश्याम पाठक और खुद शास्त्री जी त्रिपौलिया आकर ठंडई का आनंद उठाते थे। उस दौर में आनंद के लिए न तो होटल हुआ करते थे और न बीयर पीने की परंपरा थी। तब मनोरंजन का यही माध्यम हुआ करता था।

त्रिपौलिया में ठंडई तैयार की परंपरा जीवित रखने वाले मुन्ना पाठक ने बताया कि आज घरों से सिलबट्टा बाहर हो गया है और महिलाओं के हाथ में वह ताकत नहीं रह गई कि वे सिलबट्टे पर कुछ पीस सकें। इससे ठंडई तैयार करने की विधा भी लुप्त होने के कगार पर है।

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उन्होंने बताया कि भांग को घोटने में दोनों हाथ भर जाते हैं। सबसे कठिन है सौंफ और पोस्ते के दाने की पिसाई। दो-ढाई हजार बार की रगड़ के बाद ठंडई के लायक सामग्री तैयार होती है।

हाल ही में सिविल लाइंस में त्रिपौलिया के लोगों ने लू फेस्टिवल का आयोजन किया जिसमें पारंपरिक तरीके से ठंडई तैयार कर लोगों को इसका स्वाद चखाया गया।

अवस्थी ने बताया कि चौक, त्रिपौलिया, अय्यापुर, लोकनाथ में आज भी लोग लू से घबराते नहीं, बल्कि 47-48 डिग्री सेल्सियस तापमान में लू का आनंद उठाते हैं। यह लू और तापमान भी ईश्वर का प्रसाद है। इससे डर कर एसी कमरे में जाने वाले लोगों को लू ‘चांप’ लेती है।

त्रिपौलिया में बनने वाली ठंडई के बारे में उन्होंने बताया कि इसमें कच्ची मलाई फेंटकर इसमें खरबूज और तरबूज के बीज को घोंटकर और पोस्ते का पुट देकर ठंडई तैयार की जाती है। इसमें केसर की झरी ऊपर से डाली जाती है। इसे पीते ही शरीर में शीतलता का एहसास होता है।

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अवस्थी ने कहा कि नई पीढ़ी यह जाने कि हमारे बुजुर्गों ने लू की काट के लिए जो तमाम उपक्रम दिए हैं, उनका मुकाबला कोल्ड ड्रिंक आदि नहीं कर सकते।

मुन्ना पाठक का मानना है कि बरगदही अमावस से 10 दिन तक लू और गर्मी बहुत भयानक पड़ती है। यह भीषड़ गर्मी गंगा दशहरा पर समाप्त होती है। उस लू से बचने के लिए यह ठंडई बहुत कारगर है। ठंडई भांग के साथ और बगैर भांग के भी तैयार होती है।

Roshni Khan

Roshni Khan

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