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काशी की बेटी: जिस पर नाज करता है पूरा बनारस, जाने कौन हैं डॉक्टर शिप्रा धर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब देश की कमान संभाली तो उन्होंने एक नारा दिया. बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ. मोदी के इस सपने को साकार कर रही हैं, उन्हीं के संसदीय क्षेत्र की एक बेटी. नाम है डॉक्टर शिप्राधर. पेशे से डॉक्टर शिप्रा धर पर आज पूरा बनारस नाज करता है. और करें भी क्यों नहीं.
वाराणसी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब देश की कमान संभाली तो उन्होंने एक नारा दिया. बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ. मोदी के इस सपने को साकार कर रही हैं, उन्हीं के संसदीय क्षेत्र की एक बेटी. नाम है डॉक्टर शिप्राधर. पेशे से डॉक्टर शिप्रा धर पर आज पूरा बनारस नाज करता है. और करें भी क्यों नहीं. डॉक्टर होने के साथ, शिप्राधर बेटियो को बचाने की एक मुहिम भी चलाती हैं. आठ सालों में उनकी ये मुहिम अब मिशन में तब्दील हो चुकी है. शिप्रा अब उन बेटियों के लिए काम करती हैं, जिन्हें दुनिया में कदम रखते ही दुत्कारा जाता है, जिनके पैदा होने पर जश्न नहीं मातम मनाया जाता है.
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बेटी होने पर नहीं लेती फीस
ऐसे वक्त में जब प्राइवेट अस्पतालों में इलाज के नाम पर लूट खसोट मची हुई है. शिप्राधर एक मिसाल बनकर उभरी हैं. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने वाली डॉक्टर शिप्राधर अपने अस्पताल में बेटी होने पर पैसे नहीं लेती. मतलब मुफ्त इलाज. यही नहीं बेटियों को गिफ्ट भी देती हैं.
अशोक बिहार स्थित उनके अस्पताल में अब तक 410 बेटियों का जन्म हो चुका है. यही नहीं गरीब बेटियों को मुफ्त शिक्षा और शादी कराने की भी जिम्मेदारी उनके कंधों पर है. शिप्राधर की इस मुहिम को बनारस में खूब सराहा जाता है. बेटियों को समर्पित इस काम के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा भी जा चुका है.
एक वाक्ये ने बदल दी अस्पताल की तस्वीर
शिप्रा धर ने डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद तय किया कि वो किसी सरकारी नौकरी को चुनने के बजाय खुद का अस्पताल खोलेंगीं. लेकिन डेढ़ साल पहले उनके अस्पताल में कुछ ऐसा हुआ, जिसने उनके जीने का अंदाज और नज़रिया ही बदल दिया. शिप्रा धर बताती हैं '' लगभग सात साल पहले एक अधेड़ महिला अपनी गर्भवती बहू के साथ मेरे अस्पताल पहुंची.
फोटो-सोशल मीडिया
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इलाज के दौरान बहू ने एक खूबसूरत बेटी को जन्म दिया. लेकिन बेटियों को बोझ समझने वाली दादी के दिल में उस बेटी के लिए कोई जगह नहीं थी. खुशी के बजाय वो महिला गुस्से से तमतमाई हुई थी. घर में बेटी पैदा होने की टीस उस महिला के जेहन में कुछ इस कदर थी कि उसने अपनी बहू के साथ ही मुझे भी जमकर ताने मारे. ''
उस महिला के तानों ने अस्पताल की तस्वीर बदल दी. इस वाक्ये के बाद डॉक्टर शिप्रा ने अस्पताल में पैदा होने वाली सभी बेटियों का इलाज मुफ्त करने की ठान ली. तब से लेकर अब तक ये सिलसिला बदस्तूर जारी है.
बेटियों के लिए अस्पताल खोलने की योजना
सिर्फ बेटियों का मुफ्त इलाज ही नहीं डॉक्टर शिप्रा लड़कियों की पढ़ाई का भी खर्च उठा रही हैं. लड़कियों को बेहतर तालीम दिलाने के लिए शिप्रा आने वाले दिनों में एक स्कूल भी खोलने की योजना बना रही हैं, ताकि हर गरीब और बेसहारा बेटी पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो सके. शिप्रा की ये मुहिम शहर के लोगों के लिए मिसाल बन गई है.
शिप्रा के इस नेक काम में मदद के लिए कई संस्थाएं भी आगे आ रही हैं. यही नहीं अब उनके अस्पताल में आने वाले लोगों की सोच भी बदल रही है. अगर शिप्रा बेटियों के लिए मुहिम चला रही हैं तो इसके पीछे उनके पति मनोज श्रीवास्तव का भी योगदान है. पत्नी के हर कदम पर साथ देने वाले मनोज श्रीवास्तव भी खुद एक डॉक्टर हैं.
पत्नी पर फक्र करते हुए मनोज कहते हैं , ''समाज में हाशिए पर जा चुकी आधी आबादी को सहारे की नहीं बल्कि मजबूत करने की जुटी हैं। बेटियों को बचाने के लिए समाज में बड़े बदलाव की जरुरत है और उनकी पत्नी इसी बदलाव की प्रतीक बनकर उभरी हैं."
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रिपोर्ट-आशुतोष सिंह