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राज्यसभा चुनाव: कब होती है हार्स ट्रेडिंग की एंट्री, यूपी में नजर आ रहे आसार
हार्स ट्रेडिंग एक ऐसा शब्द है जो उस समय चर्चा में आता है जब विधायकों की खरीद फरोख्त की बात होती है। अब यूपी में जब राज्यसभा का चुनाव होने जा रहा है तो यहषब्द एक बार फिर प्रासंगिक हो गया है।
लखनऊ। यूपी में इन दिनों राज्यसभा की दस सीटों के लिए चुनावी प्रक्रिया षुरू हो चुकी है। दस सीटों के लिए 11 उम्मीदवारों के मैदान में आ जाने के बाद विधायक अपने लिए ‘उचित जगह’ की तलाश में जुट गए है। बसपा के पास आवष्यक वोट न हो पाने और निर्दलीय प्रत्याषी प्रकाष बजाज के उतरने से इस चुनाव में हार्स ट्रेडिंग की संभावना काफी बढ गयी है।
हार्स ट्रेडिंग
हार्स ट्रेडिंग एक ऐसा शब्द है जो उस समय चर्चा में आता है जब विधायकों की खरीद फरोख्त की बात होती है। अब यूपी में जब राज्यसभा का चुनाव होने जा रहा है तो यहषब्द एक बार फिर प्रासंगिक हो गया है।
आइए आपको बताते हैं हार्स ट्रेडिंग के बारे में
'हार्स ट्रेडिंग' का शाब्दिक अर्थ होता है घोड़ो की खरीद। जिसे व्यापारी बोली लगाकर खरीदते हैं। यह शब्द कैम्ब्रिज अंग्रेजी शब्दकोश से लिया गया है। अक्सर इसका इस्तेमाल राजनीतिक खरीद फरोख्त के दौरान होती है। यह शब्द अठारहवी शताब्दी के आसपास प्रचलन में आया जब घोडो की व्यापारी इनकी खरीद फरोख्त किया करते थें। साथ ही अच्छे घोडो की नस्ल पाने के लिए कई तरह की कूटनीति का भी इस्तेमाल किया करते थें। यहां तक कि घोडों के व्यापारी अपने घोडों को कई बार छिपा भी देते थें फिर अपने मनचाहे दामों पर व्यक्तिगत तौर पर खरीद फरोख्त करते थें।
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राजनीति में हार्स ट्रेडिंग का प्रवेश
अक्सर हार्स ट्रेडिंग शब्द का इस्तेमाल राजनीति में तभी किया जाता है जब विधायकों की खरीद फरोख्त होनी हो और राज्यसभा विधानपरिषद के चुनाव हो अथवा सरकार अल्पमत में हो। जब राजनीति में नेता दल बदलते हैं, या फिर किसी चालाकी के कारण कुछ ऐसा खेल रचते हैं अथवा दल बदलने का काम करते हे तब इसे 'हार्स ट्रेडिंग' कहा जाता है। यह शब्द मीडिया की तरफ से उपजा हुआ शब्द है। हांलाकि देश में दल बदल को लेकर पहले से कानून बना हुआ है। बावजूद इसके जब भी कोई सरकार अल्पमत के कारण संकट में होती है तब तब विधायकों की खरीद फरोख्त को लेकर इस शब्द का प्रयोग खूब किया जाता है।
विधायक ने 15 दिनों के अन्दर ही तीन बार पार्टी बदली
भारत में इस विदेशी शब्द का इस्तेमाल दबे स्वर में हुआ करता था। जानकार बतातें है कि 1967 के चुनावों में हरियाणा के एक विधायक ने 15 दिनों के अन्दर ही तीन बार पार्टी बदली थी। जब तीसरी बार में वो लौट कर कांग्रेस में आए तब उनके बारे में कहा गया कि यह विधायक हार्स ट्रेडिंग का शिकार हो गए है। इसके बाद सत्तर से लेकर अस्सी तक देश मे संसद और विधायकों की खरीद फरोख्त चलती रही। लेकिन जब देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी बने तो उन्होंने अगले साल ही 1985 में संविधान के 52वें संशोधन में दल-बदल विरोधी कानून पारित करवाया। किसी भी पार्टी के लोगों की संख्या उनकी पार्टी की कुल संख्या के दो-तिहाई से अधिक नहीं हो सकते, ऐसा होने पर सभी को अयोग्य ठहराया जा सकता है।
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रिपोर्ट- श्रीधर अग्निहोत्री
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