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इंसानियत का रिश्ता: बेजुबानों का सहारा है रेहान का घर

raghvendra
Published on: 22 Nov 2019 7:34 AM GMT
इंसानियत का रिश्ता: बेजुबानों का सहारा है रेहान का घर
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तेज प्रताप सिंह

गोंडा: प्रकृति से दूर होते जा रहे इंसान ने आज पक्षियों के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी है। तालाबों और वेटलैंड्स के किनारे उगे पेड़ों को काटा जा रहा है। वेटलैंड्स को कालोनियों में बदल दिया गया है। प्रवासी पक्षी और स्थानीय पक्षियों को अब बमुश्किल ही जगह मिल रही है। बेजुबानों से नफरत करने वालों के बीच कुछ ऐसे भी लोग हैं जो न केवल उनका दु:ख-दर्द समझते हैं बल्कि उनके संरक्षण के लिए अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई खर्च करने से भी पीछे नहीं हटते। ऐसे ही लोगों में रेहान सिद्दीकी भी हैं जो इन बेज़ुबान जीवों से इंसानियत का रिश्ता बनाए हुए हैं। पक्षियों से उनका रिश्ता इस कदर गहरा है कि आज उन्हें पक्षी मित्र के रूप में भी जाना जाता है। पशु-पक्षियों के प्रति उनके मन में जो संवेदनशीलता है, उसकी प्रमुख वजह वह अपनी परवरिश को मानते हैं।

ननिहाल से मिली प्रेरणा

शहर के जिगरगंज मोहल्ले में इरशाद हुसैन के घर जन्मे और पले-बढ़े रेहान सिद्दीकी ने स्नातक की पढ़ाई की और फिर पेंट का व्यवसाय शुरू किया। आज भी वे चौक स्थित अपनी पेंट की दुकान पर दिन भर काम करते हैं, लेकिन उनकी इस पहचान से उनके जानने वाले लोग ही वाकिफ हैं। बाकी हर किसी के लिए वे पक्षी मित्र हैं, जो खुद तो चिडिय़ों के संरक्षण पर काम कर ही रहे हैं। रेहान बताते हैं कि वे बचपन में लखनऊ के नक्खास स्थित अपने ननिहाल जाते थे। वहां पक्षियों की बाजार लगती थी। सुबह उठकर वे बाजार में पहुंच जाते और विभिन्न प्रजातियों की चिडिय़ों को देखा करते। यहीं से उन्हें भी चिडिय़ों के बीच रहने का शौक लग गया। रेहान बताते हैं कि वे जब 10 साल के थे तो उनके घर पर भी एक देशी प्रजाति का पालतू तोता था, जिसकी उम्र करीब 50 वर्ष थी। तोता बीमार हुआ और अचानक मर गया। उस दिन उनके घर में खाना नहीं बना। इस घटना ने उनके मन में पक्षियों के प्रति प्रेम पैदा कर दिया। उन्होंने किशोरावस्था से ही पक्षियों को पालना शुरू कर दिया।

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बेजुबानों की सुख-सुविधा का ख्याल

अपने 30 साल के सफर में इसी तरह के छोटे-बड़े प्रयासों से रेहान अब तक डेढ़ हजार से भी अधिक चिडिय़ों और सैकड़ों बिल्लियों को पाल चुके हैं। चिडिय़ा के अलावा वे बिल्लियों और कुत्तों के संरक्षण का भी कार्य कर रहे हैं। इस कार्य के पीछे उनका सिर्फ एक ही उद्देश्य है कि जिस प्रकृति और पर्यावरण ने उन्हें जीवन दिया है, वे भी प्रकृति द्वारा उपहार स्वरुप प्रदत्त बेजुबानों को संरक्षण प्रदान कर उस प्रकृति को कुछ वापस कर पाएं। रेहान ने अपने घर को इन पक्षियों के अनुकूल बनाया। घर के अंदर बड़े-बड़े पिजड़े बनवाए। लान में पेड़ों की बेलें लगाई ताकि पक्षियों को तीखी धूप न लगे। गर्मियों में कूलर लगाकर भी गर्मी से बचाते हैं। जबकि ठंड से बचने के लिए पिजड़ों को पालीथीन से बंद कर अंदर सौ-सौ वाट के बल्ब लगाए जाते हैं। छोटी चिडिय़ों के रहने के लिए मिट्टी के घोंसले, पानी पीने और दाना खिलाने के लिए खास तरह के पात्र भी रखे हैं। रेहान बताते हैं कि उनके यहां कबूतर, आस्ट्रेलियन ब्रीड के चार दर्जन से अधिक बजड़ी तोतों समेत कई विदेशी प्रजातियों की सैकड़ों फेंच चिडिय़ा हैं। बिल्लियां शाकाहारी हैं और पक्षियों के साथ घुल मिलकर रहती हैं।

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सैकड़ों पक्षियों, जानवरों की बचाई जान

रेहान जैसे लोग वाकई अनमोल है जो अपना हर दिन पक्षियों के साथ बिता रहे हैं। घायल पक्षी को लाकर उसका इलाज कराकर उन्हें मुक्त कर देना रेहान की दिचर्या में शामिल है। अब तक वे कौआ, गौरैया, तोता, गिलहरी समेत 100 से ज्यादा पक्षियों को जीवनदान दे चुके हैं। इसके अलावा दर्जनों बीमार कुत्तों और बिल्लियों का भी वे इलाज करा चुके हैं। रेहान को जहां भी भी इस तरह के असहाय पक्षी मिलते हैं, वे उन्हें अपने साथ अपने घर ले आते हैं। वे उन्हें डाक्टर को दिखाते हैं और समुचित इलाज कराकर ठीक होते ही उन्हें छोड़ देते हें। इससे उन्हें काफी संतोष मिलता है। इसके अलावा लावारिस मौत मरने वाले पक्षियों और जानवरों का अंतिम संस्कार भी करते हैं। उनके इन सभी कार्यों में उनकी पत्नी तंजीम फातिमा और दो बेटे अब्दुल रहीम और करीम उनका बराबर साथ देते हैं। रेहान की अनुपस्थिति में तंजीम ही घर में रह रही बिल्लियों और पक्षियों को संभालती हैं। इस परिवार को जितनी हमदर्दी इंसनों से है उतनी ही इन बेजुबानों से भी।

विदेशी फूड व सीजनल फलों का इंतजाम

रेहान के शेल्टर में इस समय परसियन प्रजाति की कई बिल्लियां और लगभग पांच दर्जन से ज्यादा विदेशी पक्षी हैं, जिन्हें खाने का हर सामान मिलता है। इनके लिए दुनिया भर में मशहूर बेल्जियम की एक कंपनी का फूड सप्लीमेंट मंगाते है। सीजन के सारे फल और साग सब्जियां भी दी जाती है। समय-समय पर उनका हेल्थ चेकअप भी होता है, ताकि सभी स्वस्थ बने रहें। खाना, दवा व अन्य खर्चे आदि मिलाकर शेल्टर के संचालन में हर महीने भारी-भरकम रकम खर्च होती है, जिसे वे खुद ही वहन करते हैं।

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पशु-पक्षी सुखद जीवन का हिस्सा

अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने के साथ-साथ इन बेजुबान पक्षियों का इंसान के जीवन में महत्व बताते हुए 45 वर्षीय रेहान ने कहा कि जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं, हम प्रकृति को भूलते जा रहे हैं। ये पशु-पक्षी हमारे सुखद जीवन का हिस्सा हैं। हम इंसान इनके लिए घरों में दाना-पानी देते हैं, बगीचे लगाते हैं और इसके बदले में ये पक्षी इंसानों के लिए हानिकारक उन बैक्टीरिया और वायरस आदि को खाते हैं। हम इन पक्षियों को अपने परिवेश से निकाल देंगे तो यह मानव जाति के लिए गंभीर खतरा है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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